तर्ज—जयति जय-जय माँ सरस्वती……
जयति जय जय ज्ञानमति माँ!
जयति जय माँ शारदे!।।
जयति जय जय बालसति माँ!
जयति जय श्रुतशारदे।।टेक.।।
ज्ञान गंगा से तेरे हम, ज्ञान का कुछ नीर भर लें।
तेरी गरिमा कम न होगी, कितनों की तू पीर हर ले।।
जयति जय माँ भारती!
तू जग को सच्चा प्यार दे।। जयति……।।१।।
न्याय की उत्कृष्ट गरिमा, तेरे ग्रंथों में भरी है।
त्याग की उत्कृष्ट महिमा, तेरे भावों में भरी है।।
जयति जय वागीश्वरी!
तू हम सभी को सार दे।। जयति……।।२।।
तुम हो इस युग की विशल्या, ब्राह्मी का अवतार हो।
ज्ञानमति इस युग की पहली, ज्ञान का भण्डार हो।।
जयति जय श्रुतदेवते!
तू ‘‘चन्दना’’ को तार दे।। जयति……।।३।।