(गुरुओं के आहार के पश्चात् बोलने वाला भजन)
तर्ज—माई रे माई……
आओ रे आओ, खुशियाँ मनाओ, यह है मंगल बेला।
मेरे घर का कण-कण पावन, गुरु चरणों से बनेगा।।
बोलो जय जय जय, बोलो जय जय जय।।टेक.।।
बड़े पुण्य से गुरुओं के, आहार का अवसर आता।
साधु मुनी आर्यिका को, भक्ती से पड़गाया जाता।।
चौक बनाकर घर के आगे…….
चौक बनाकर घर के आगे, लगा भक्ति का मेला।
मेरे घर का, कण-कण पावन, गुरु चरणों से बनेगा।।
बोलो जय जय जय, बोलो जय जय जय।।१।।
निरन्तराय आहार कराकर, मन में खुशी हुई है।
मानो आज मुझे कोई, निधि ही अनमोल मिली है।।
जय-जयकार करो अब गुरु की…….
जय-जयकार करो अब गुरु की, अवसर बड़ा रंगीला।
मेरे घर का, कण-कण पावन, गुरु चरणों से बनेगा।।
बोलो जय जय जय, बोलो जय जय जय।।२।।
यह आहार की महिमा, शास्त्रों में बतलाई जाती।
पंचाश्चर्य वृष्टि करने, देवों की टोली आती।।
भोजन भी अक्षय हो जाता…….
भोजन भी अक्षय हो जाता, उस दिन उस चौके का।
मेरे घर का, कण-कण पावन, गुरु चरणों से बनेगा।।
बोलो जय जय जय, बोलो जय जय जय।।३।।
शक्ती के अनुसार दान दे, अपना पुण्य बढ़ाओ।
इस अवसर पर अपने घर में, मंगलाचार कराओ।।
जीवन मंगलमयी सदा हो…….
जीवन मंगलमयी सदा हो, अपना और सभी का।
मेरे घर का, कण-कण पावन, गुरु चरणों से बनेगा।।
बोलो जय जय जय, बोलो जय जय जय।।४।।