तर्ज-पंखिड़ा……….
वंदना……………वंदना………….
वंदना करूँ मैं गणिनी ज्ञानमती की।
बीसवीं सदी की पहली बालसती की।।वंदना……..
इनके मात-पिता का, गुणानुवाद मैं करूँ।
इनकी जन्मभूमि का भी, साधुवाद मैं करूँ।।
मिलके आओ, मिलके गाओ, मिलके करो जी।
वन्दना चरण में करके, पुण्य भरो जी।।वंदना…।।१।।
इनके ज्ञान की प्रशंसा, सारी दुनिया करती है।
इनके नाम की प्रशंसा, पुस्तकों में मिलती है।।
मिलके आओ, मिलके गाओ, मिलके करो जी।
वंदना चरण में करके, पुण्य भरो जी।।वंदना….।।२।।
वीर के युग की ये, लेखिका पहली हैं।
ढाई सौ ग्रंथों की, लेखिका साध्वी हैं।।
मिलके आओ, मिलके गाओ, मिलके करो जी।
वंदना चरण में करके, पुण्य भरो जी।।वंदना….।।३।।
इनके वात्सल्य में, माँ की ममता भरी।
इनके सानिध्य में, मुझको समता मिली।।
मिलके आओ, मिलके गाओ, मिलके करो जी।
वंदना चरण में करके, पुण्य भरो जी।।वंदना….।।४।।
इनके तप त्याग में, लाभ लेते सभी।
‘‘चन्दना’’ भाग्य से, भक्ति करते सभी।।
मिलके आओ, मिलके गाओ, मिलके करो जी।
वंदना चरण में करके, पुण्य भरो जी।।वंदना….।।५।।
तर्ज-फूलों सा चेहरा तेरा……….
इस युग की माँ शारदे, तू धर्म की प्राण है।
ज्ञानमती नाम है, ज्ञान की तू खान है, चारित्र परिधान है।।टेक.।।
महावीर प्रभु के शासन में अब तक,
कोई भी नारी न ऐसी हुई।
साहित्य लेखन करने की शक्ति,
तुझमें न जाने वैâसे हुई।।
शास्त्र पुराणों में, भक्ति विधानों में, तेरा प्रथम नाम है विश्व में-२
कलियुग की माँ भारती, पूनो का तू चांद है,
ज्ञानमती नाम है, ज्ञान की तू खान है, चारित्र परिधान है।।
इस युग…………….।।१।।
तीर्थंकरों की जन्मभूमि का,
उत्थान माता तुमने किया।
हस्तिनापुरी में जंबूद्वीप को,
साकार माता तुमने किया।।
तीर्थ अयोध्या की, कीर्ति प्रसारित की, मस्तकाभिषेक आदिनाथ का हुआ-२
तू जग की वागीश्वरी, धरती का सम्मान है,
ज्ञानमती नाम है, ज्ञान की तू खान है, चारित्र परिधान है।।
इस युग………………।।२।।
गणिनी शिरोमणि तेरी तपस्या,
का लाभ इस वसुधा को मिला।
चारित्र चक्री गुरु के सदृश ही,
‘‘चंदना’’ इक पुष्प जग में खिला।
पुष्प महकता है, चाँद चमकता है, ज्ञानमती माता के रूप में-२
युग युग तू जीती रहे, हम सबके अरमान हैं,
ज्ञानमती नाम है, ज्ञान की तू खान है, चारित्र परिधान है।।
इस युग………।।३।।