तर्ज-माई रे माई…………..
आओ रे आओ खुशियाँ मनाओ, उत्सव सभी मनावो।
प्रभु को केवलज्ञान हुआ है, समवसरण रचवाओ।।
बोलो रे जय जय जय…………………..।।टेक.।।
पुरिमतालपुर के उपवन में, ज्ञान हुआ जब प्रभु को।
इन्द्राज्ञा से धनपति ने, रच डाला समवसरण को।।
नभ में अधर विहार करें वे, दर्शन कर सुख पाओ।
प्रभु को केवलज्ञान हुआ है, समवसरण रचवाओ।।
बोलो रे जय जय जय…………………..।।१।।
चरण कमल तल स्वर्णकमल की, रचना इन्द्र करे हैं।
सोने में होती सुगंधि है, यह साकार करे हैं।।
उन जिनवर के दर्शन करने, भव्य सभी आ जावो।
प्रभु को केवलज्ञान हुआ है, समवसरण रचवाओ।।
बोलो रे जय जय जय…………………..।।२।।
बीस हजार हाथ ऊपर है, समवसरण की रचना।
अंधे-लूले-लंगड़े-रोगी, चढ़कर कभी थकें ना।।
यही ‘चन्दनामती’ प्रभू की, महिमा सब मिल गाओ।
प्रभु को केवलज्ञान हुआ है, समवसरण रचवाओ।।
बोलो रे जय जय जय…………………..।।३।।