तर्ज-कांची हो कांची रे…………….
आया है आया पार्श्वनाथ का महोत्सव, करना है काम दिल खोल के।
आया तृतीय सहस्राब्दी महोत्सव, पारस प्रभू की जय बोल के।।टेक.।।
तेइसवें तीर्थंकर पारसनाथ प्रभो,
अश्वसेन वामा माँ के लाल प्रभो।
माता-पिता धन्य हुए, जिनवर के जन्म से,
बैठे थे भण्डार खोल के।। आया है……।।१।।
चिन्तामणि संकटमोचन कहते सभी,
पारस प्रभु की भक्ति मन से करते सभी।
जिसको जब कष्ट हुआ, भक्ती से नष्ट हुआ,
पारस की जय-जय बोल के।।आया है…..।।२।।
अपने-अपने नगरों में भी उत्सव करो,
पारसनाथ जन्म का महोत्सव करो।
तीर्थ बनारस के बाद, अहिच्छत्र पार्श्वनाथ,
सम्मेदगिरि की जय बोल के।।आया है…..।।३।।
गणिनीप्रमुख ज्ञानमती माताजी हैं,
ऐसी प्रेरणाएं सदा देती हैं वे।
‘‘चन्दना’’ तभी हमें, ज्ञान प्राप्त होता है,
बढ़ते कदम सबको जोड़ के।।आया है…..।।४।।
तर्ज-कभी तू…………….
चलो वाराणसि चलना है, वहाँ पर उत्सव करना है।
प्रभु पारस के चरणों में, सभी को वन्दन करना है।।
जय पारसनाथ प्रभो, जय पारसनाथ प्रभो-२।।टेक.।।
नागयुगल को एक बार, प्रभु ने महामंत्र सुनाया।
दोनों ने धरणेन्द्र और पद्मावति का पद पाया।।
पद्मावती का पद पाया……..
प्रभु पार्श्व बालयति को, शत वन्दन सब कर लो।
उनकी यादों में वाराणसि में, उत्सव भी कर लो।।
चलो वाराणसि.।।१।।
एक बार वाराणसि में, युवराज पार्श्वप्रभु जी ने।
एक दूत से नगरि अयोध्या, का वर्णन सुन करके।।
हाँ वर्णन सुन करके……
वृषभेश्वर तीर्थंकर, का वैभव सुन करके।
तत्क्षण वैरागी बनकर, दीक्षा ली जा करके।।
चलो वाराणसि.।।२।।
उन्हीं पार्श्वप्रभु का तृतीय, सहस्राब्दि महोत्सव आया।
गणिनी ज्ञानमती जी का, आशीर्वाद जब पाया।।
आशीर्वाद जब पाया…..
‘‘चन्दनामती’’ प्रभु से, कुछ सीख ग्रहण कर लें।
जीवन में समता और धैर्य का, पाठ स्वयं पढ़ लें।।
चलो वाराणसि.।।३।।
तर्ज-जहाँ डाल-डाल…………….
श्री पार्श्वनाथ प्रभु का तृतीय सहस्राब्दि महोत्सव आया,
जन-जन में खुशियाँ लाया।।टेक.।।
है धन्य धरा इस भारत की, जहाँ उत्सव होते रहते।
तब महापुरुष के जीवन से, सब परिचित होते रहते।
सब परिचित………………..
गणिनी माता श्री ज्ञानमती ने इसका बिगुल बजाया,
जन-जन में खुशियाँ लाया।।१।।
श्री ऋषभदेव से महावीर तक, चौबिस तीर्थंकर हैं।
इनमें से पारसनाथ नाम के, तेईसवें जिनवर हैं।
तेइसवें जिनवर………………
पितु अश्वसेन वामा माता से, जन्म जिन्होंने पाया,
जन-जन में खुशियाँ लाया।।२।।
अट्ठाइस सौ इक्यासीवाँ यह जन्मकल्याणक उत्सव।
प्रारंभ हुआ है जन्मभूमि वाराणसि से ये महोत्सव।।
वाराणसि से………………..
‘‘चन्दनामती’’ स्वर्णिम प्रकाश को लिए वर्ष यह आया,
जन-जन में खुशियाँ लाया।।३।।