तर्ज – सुहानी जैनवाणी…………
दिगम्बर प्राकृतिक मुद्रा, विरागी की निशानी है।
कमण्डलु पिच्छिधारी नग्न, मुनिवर की कहानी है।।
दिशाएं ही बनीं अम्बर, न तन पर वस्त्र ये डालें।
महाव्रत पाँच समिति और, गुप्ती तीन ये पालें।।
त्रयोदश विध चरित पालन, करें जिनवर की वाणी है।
कमण्डलु……….।।१।।
बिना बोले ही इनकी शान्त, छवि ऐसा बताती है।
मुक्ति कन्यावरण में यह ही, मुद्रा काम आती है।।
मोक्षपथ के पथिकजन को, यही वाणी सुनानी है।
कमण्डलु………।।२।।
यदि मुनिव्रत न पल सकता, तो श्रावक धर्म मत भूलो।
देव-गुरु-शास्त्र की श्रद्धा, परम कर्तव्य मत भूलो।।
यही बस ‘‘चन्दनामति’’ इन, सभी गुरूओं की वाणी है।
कमण्डलु………..।।३।।