रचयित्री-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती
तर्ज—धीरे-धीरे बोल कोई…..
दर्शन कर लो जिनवर का, उपवासों का फल मिलता।
करो वन्दन प्रभु के सामनें, मनवाञ्छित कार्य सभी बने।।दर्शन….।।
जैसे सूरज अंधकार जग का हरे।
हर मानव के मन में उजियाला भरे।।
वैसे ही जिनसूर्य तिमिर मन का हरे।
सम्यग्दर्शन का प्रकाश मन में भरे।।
जिनचन्द्र का, जिनसूर्य का-२,
दर्शन पापों को काटता, दर्शन देता सुख शाश्वता।
दर्शन कर लो जिनवर का, उपवासों का फल मिलता।।१।।
जिनमंदिर नवदेव में है इक देवता।
चैत्यभक्ति में गणधर देव ने है कहा।।
इसी तरह जिनप्रतिमा भी है देवता।
जिनके दर्शन से पद मिलता देव का।।
जिनचन्द्र का, जिनसूर्य का-२,
दर्शन पापों को काटता, दर्शन देता सुख शाश्वता।
दर्शन कर लो जिनवर का, उपवासों का फल मिलता।।२।।
इक मेंढक प्रभु वीर के दर्शन को चला।
कमल पुष्प भक्ति से मुख में ले चला।।
पथ में ही मरकर वो देवता बन गया।
वही ‘‘चन्दनामती’’ प्रेरणा बन गया।।
जिनचन्द्र का, जिनसूर्य का-२,
दर्शन पापों को काटता, दर्शन देता सुख शाश्वता।
दर्शन कर लो जिनवर का, उपवासों का फल मिलता।।३।।