तर्ज-अच्छा सिला दिया…….
विश्व के प्रथम राजा ऋषभदेव हैं,
वे तो सभी देवताओं के भी देव हैं-२।।विश्व के…….।।०।।
उन्होंने ही जनता को सब कुछ सिखाया था,
राजाओं को उनका राजधर्म भी बताया था।
कर्मभूमि के ये आदिब्रह्मा देव हैं,
वे तो सभी देवताओं के भी देव हैं।।विश्व के……..।।१।।
भौंरा जैसे फूल से पराग चूस लेता है,
किन्तु उसे मुरझाने कभी नहीं देता है।
वैसे ही प्रजा से राजा टैक्स तो लेवे,
किन्तु उसे कभी कष्ट नहीं होने देवे।
यही शिक्षा दी प्रभु ने तभी देव हैं,
वे तो सभी देवताओं के भी देव हैं।।विश्व के…………।।२।।
ये ही प्रभु हम सभी के पिता और माता हैं।
ये ही तो हैं बंधु और ये ही सखा-भ्राता हैं।।
ये ही धन सम्पत्ती व विद्या के प्रदाता हैं
ये ही तो प्रभो! मेरे जीवन के प्रदाता हैं।।
‘‘चन्दनामती’’ अयोध्या के ये देव हैं,
ये तो सभी देवताओं के ही देव हैं।।विश्व के……..।।३।।
रचयित्री-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती
तर्ज—नगरी हो अयोध्या सी ……….
प्रभु ऋषभ जहाँ जनमें, खेले जहाँ बचपन में,
मरुदेवी के आंगन में, वह नगरि अयोध्या है।।१।।
जहाँ राज्य किया प्रभु ने, जहाँ त्याग किया प्रभु ने,
चले तप करने वन में, वह नगरि अयोध्या है।।२।।
श्री भरत जहाँ जनमें, चक्रीश प्रथम बन के,
यशस्वति माता से, वह नगरि अयोध्या है।।३।।
जहाँ ब्राह्मी-सुन्दरि ने, विद्या सीखी पितु से,
उनकी भी जनमभूमी, वह नगरि अयोध्या है।।४।।
प्रभु अजित व अभिनन्दन, सुमती-अनन्त भगवन्,
जिस भूमी पर जनमें,वह नगरि अयोध्या है।।५।।
कई बार धनद आए, रत्नों को बरसाएं,
जिनमाता के आंगन में, वह नगरि अयोध्या है।।६।।
उस तीर्थ अयोध्या में, श्री ज्ञानमती माँ ने,
इतिहास रचाया है, उसे स्वर्ग बनाया है।।७।।
इसलिए ‘‘चन्दनामती’’, पावन है यह धरती,
इसकी यात्रा कर लो,वह नगरि अयोध्या है।।८।।
रचयित्री-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती
तर्ज—हम जैन कुल में जन्मे हैं…….
हम भरत के भारत में हैं, अभिमान करो रे,
हम वीर के शासन में है, श्रद्धान करो रे
अभिमान करो रे, श्रद्धान करो रे
हम भरत के भारत में हैं, अभिमान करो रे…….।।टेक.।।
जहाँ आत्मा की प्रभा में रत रहते हैं मुनिगण-२
जहाँ स्वात्मा की साधना के गूंजते हैं स्वर-२
उसी धरा पे जन्मे हैं, हम अभिमान करो रे-२
हम भरत के भारत में हैं, अभिमान करो रे…….(१)
जहाँ सीता आदि महासतियों ने जनम लिया-२
जहाँ गणिनी माता ज्ञानमती ने जनम लिया-२
उसी देश में रहते हैं हम, अभिमान करो रे-२
हम भरत के भारत में हैं, अभिमान करो रे…….(२)
भरतराज प्रभु की प्रतिमा जहाँ जहाँ आज हैं-२
गूंजता वहाँ से भरत सिद्धप्रभु का त्याग है-२
‘चन्दनामती’ उस त्याग का गुणगान करो रे-२
हम भरत के भारत में हैं, अभिमान करो रे…….(१)