-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती
अरे, जग जा रे चेतन! नींद से,
तुझे सतगुरु आये जगावन को।।टेक.।।
काल अनादी से इस जग में-२
भ्रमण करे तू चारों गति में-२।
अरे, मोह नींद को दूर भगा,
तुझे सतगुरु आये जगावन को।।१।।
मानुष तन दुर्लभ है जग में-२,
सदुपयोग इसका तू कर ले-२।
अरे, विषय कषाय को त्याग दे,
तुझे सतगुरु आये जगावन को।।२।।
पर का कुछ उपकार भी कर ले-२,
सज्जन का सत्कार भी करले-२।
अरे, कर ले आतम ध्यान भी,
तुझे सतगुरु आये जगावन को।।३।।
सात व्यसन का त्याग तू कर दे-२,
पाँच पाप भी मन से तज दे-२।
अरे, धर्म में कर अनुराग रे,
तुझे सतगुरु आये जगावन को।।४।।
कहे ‘‘चन्दनामती’’ सभी से-२,
कर लो मैत्री भाव सभी से-२।
अरे, भज ले प्रभु का नाम रे,
तुझे सतगुरु आये जगवान को।।५।।