-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती
तर्ज-मनिहारों का रूप……….
शारद माता का रूप दिखाया,
ज्ञान का तूने अलख जगाया।।टेक.।।
दीक्षा लेती न थीं क्वांरी कन्या यहाँ,
बीसवीं सदी में तुमने प्रथम पद लिया।
ज्ञानमति नाम तब तूने पाया, ज्ञान का तूने अलख जगाया।
।। शारद….।।१।।
कोई साहित्य रचना न की साध्वी ने,
सैकड़ों ग्रंथ अब रच दिए मात ने।
कुन्दकुन्द का पथ दरशाया, ज्ञान का तूने अलख जगाया।
।। शारद…..।।२।।
जैन भूगोल रचना नहीं थी कहीं,
मात्र प्राचीन ग्रंथों में वह थी कही।
जम्बूद्वीप का रूपक दिखाया, ज्ञान का तूने अलख जगाया।
।। शारद…..।।३।।
जिनवरों की जनमभूमि विकसित न थीं,
प्रेरणा उनके उद्धार की माँ ने दी।
ऋषभ-महावीर नाम गुंजाया, ज्ञान का तूने अलख जगाया।
।। शारद…..।।४।।
जैन संस्कृति की तू इक धरोहर है मां,
युग युगों तक जिए तू कहे ‘‘चन्दना’’।
धरती चाहे सदा तेरी छाया, ज्ञान का तूने अलख जगाया।
।। शारद…..।।५।।