-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती
सरयू के तट पर बन गया है,
जिनमंदिर निराला।
मंदिर निराला, अयोध्या में प्यारा…………
सरयू के तट पर बन गया है,
जिनमंदिर निराला।।टेक.।।
जिनवर अनन्तनाथ का मंदिर,
जन्मस्थली जहाँ है टोंक सुन्दर।
भक्तों ने वहीं पे बनाया है,
जिनमंदिर निराला।।सरयू.।।१।।
मूंगा मणी सम प्रतिमा विराजीं,
मंद मंद वे हैं मुस्करातीं।
सबके हृदय को भाया है,
जिनमंदिर निराला।।सरयू.।।२।।
ऋषभदेव उद्यान निकट में,
जिन संस्कृति को कहता है जग में।
उपहार में जग ने पाया है,
जिनमंदिर निराला।।सरयू.।।३।।
गणिनीप्रमुख ज्ञानमती माताजी,
चन्दनामती ये प्रेरणादात्री।
तभी तीर्थ ने नया पाया है,
जिनमंदिर निराला।।सरयू.।।४।।
-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती
तर्ज—धीरे-धीरे बोल कोई सुन ना ले……
प्रभु अनन्तनाथ जन्मभूमि को नमूँ,
भूमि को नमूँ, जन्मभूमि को नमूँ।।
शुभ तीर्थ अयोध्या धाम है, जहाँ मंदिर बना महान है।।प्रभु अनन्त.।।टेक.।।
माता जयश्यामा को स्वप्न दिखे जहाँ,
सिंहसेन पितु दान किमिच्छक दें जहाँ।
धनकुबेर ने रत्नवृष्टि की थी जहाँ,
उत्सव करने इन्द्र स्वयं आये जहाँ।।
उस तीर्थ को, वन्दन करो-२,
शुभ तीर्थ अयोध्या धाम है, जहाँ मंदिर बना महान है।।प्रभु अनन्त.।।१।।
गणिनी माता ज्ञानमती की प्रेरणा,
पाकर तीरथ में आई नवचेतना।
धरती का यदि स्वर्ग तुम्हें है देखना,
इसकी छवि ‘‘चंदनामती’’ बस देखना।।
उस तीर्थ को, वंदन करो-२
शुभ तीर्थ अयोध्या धाम है, जहाँ मंदिर बना महान है।।प्रभु अनन्त.।।२।।
-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती
तर्ज-माई रे माई……….
शाश्वत तीर्थ अयोध्या में फिर, गूँज उठी शहनाई।
कुछ ही वर्षों बाद जहाँ, खुशियों की बेला आई।।
शाश्वत जन्मभूमि की जय, जिनवर जन्मभूमि की जय.।।टेक.।।
तीर्थ अयोध्या पुण्यभूमि है, पाँच प्रभू जहाँ जनमे।
जयश्यामा अरु सिंहसेन जी, हर्षित हैं निज मन में।।
इन्द्रों की टोली स्वर्गों से, इसी धरा पर आई।
कुछ ही वर्षों बाद जहाँ, खुशियाँ की बेला आई।।
शाश्वत जन्मभूमि की जय, जिनवर जन्मभूमि की जय.।।१।।
गणिनी ज्ञानमती माता की, मिली प्रेरणा सबको।
जीर्णोद्धार विकास तीर्थ का, करो कराओ भक्तों।।
इसी भावना के कारण, उत्सव की घड़ियाँ आईं।
कुछ ही वर्षों बाद जहाँ, खुशियों की बेला आई।।
शाश्वत जन्मभूमि की जय, जिनवर जन्मभूमि की जय.।।२।।
तीर्थंकर प्रभु सर्व अरिष्ट, निवारक माने जाते।
भौतिक सम्पति पाने हेतू, भक्त शरण में आते।।
इसीलिए ‘‘चंदनामती’’, उन प्रभु की महिमा गाई।
कुछ ही वर्षों बाद जहाँ, खुशियों की बेला आई।।
शाश्वत जन्मभूमि की जय, जिनवर जन्मभूमि की जय.।।३।।
-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती
तर्ज—मेरे अंगने में……
अनन्तनाथ प्रभु का जनम हुआ आज है।
अयोध्या में खुशियों का छाया साम्राज्य है।। टेक.।।
अयोध्या की धरती रतनमयी हो रही।
पन्द्रह महिने से यहाँ रत्नवृष्टि हो रही ।।
सारे नर नारी-२, करें जयकार हैं।। आदिनाथ……।।१।।
पूर्व दिशा सूरज को पाकर लाल हुई।
माता तीर्थंकर को पाके निहाल हुई।।
स्वर्गों में भी बाजे-२, बजे शंखनाद है।। आदिनाथ……।।२।।
नरकों में भी क्षण भर को शांति मानो छा गई।
सारी धरती ‘चंदनामती’ बधाई गा रही।
मानो आज सबको-२, मिला साम्राज्य है।। आदिनाथ……।।३।।
-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती
तर्ज—दिल्ली का कुतुबमीनार देखो….
देखो देखो देखो, जन्मभूमि देखो,
अनन्तनाथ टोंक का विकास देखो, अयोध्यापुरी का प्रकाश देखो।
सारे जगत में इस तीर्थ का, पैâला है नाम तुम आज देखो।।
हो देखो देखो, अयोध्या देखो-२ ।।टेक.।।
कहते हैं जिनशासन का, पहला शाश्वत तीर्थ यही।
तीर्थंकर भगवन्तों के, जन्म सदा होते हैं यहीं।।
उनकी ही महिमा का सार देखो, तीरथ अयोध्या विकास देखो।
सारे जगत में इस तीर्थ का, पैâला है नाम तुम आज देखो।।
हो देखो देखो, अयोध्या देखो.।।१।।
वर्तमान चौबीसी के, पाँच तीर्थंकर जन्मे हैं।
उनके पाँचों टोंक यही, पुण्य कथानक कहते हैं।।
उन सबका होगा विकास देखो, जिनवर के गुण का प्रकाश देखो।
सारे जगत में इस तीर्थ का, पैâला है नाम तुम आज देखो।।
हो देखो देखो, अयोध्या देखो.।।२।।
ज्ञानमती माताजी की, मिली प्रेरणा है सबको।
शाश्वत तीर्थ अयोध्या का, खूब प्रचार करो भक्तों।।
‘‘चन्दनामती’’ यह प्रयास देखो, जिनमत का होगा प्रकाश देखो।
सारे जगत में इस तीर्थ का, पैâला है नाम तुम आज देखो।।
हो देखो देखो, अयोध्या देखो.।।३।।
-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती
तर्ज-मेरी तो पतंग कट गई रे…………..
प्रभु तीर्थनाथ का, श्री अनन्तनाथ का, मस्तकाभिषेक हो रहा है,
प्रभु का जयजयकार हो रहा है।।टेक.।।
आदितीर्थ अयोध्यापुरी में।
अनन्तनाथ जनम की नगरी में।।
उन प्रभु की है विशाल प्रतिमा।
तीर्थ अयोध्या की है जो गरिमा।।
उन्हीं तीर्थनाथ का, श्री अनन्तनाथ का, मस्तकाभिषेक हो रहा है,
प्रभु का जयजयकार हो रहा है।।१।।
गणिनीप्रमुख ज्ञानमती माता।
अयोध्या पधारीं सुनो गाथा।।
मस्तकाभिषेक प्रथा डाली।
निधियाँ कई तीर्थ को दे डाली।।
उन्हीं तीर्थनाथ का, प्रभु आदिनाथ का, मस्तकाभिषेक हो रहा है,
प्रभु का जयजयकार हो रहा है।।२।।