तर्ज—सपने में……
प्रभु गर्भकल्याण में बरसे रतन की धारा रे।
कहे धनकुबेर भी, धन्य है भाग्य हमारा रे।।टेक.।।
इक पुण्यशालिनी माँ जब, देखे सोलह सपने तब।
तीर्थंकर सुत को पाती, निज जन्म धन्य कर पाती।।
उस समय पिता का, खुल जाता भण्डारा रे।
कहे धनकुबेर भी, धन्य है भाग्य हमारा रे।। प्रभु…।।१।।
त्रय ज्ञान सहित तीर्थंकर, आते हैं माँ के गरभ जब।
माँ की महिमा बढ़ जाती, वे प्रश्न सहज सुलझातीं।।
अज्ञान तिमिर हर देतीं ज्ञान उजारा रे।
कहे धनकुबेर भी, धन्य है भाग्य हमारा रे।। प्रभु…।।२।।
प्रभु गर्भकल्याण मनाएं, हम भी ऐसा फल पाएं।
अब ऐसी माँ से जन्में, जो देखे सोलह सपने।।
‘‘चंदनामती’’ यह उत्सव कितना प्यारा रे।
कहे धनकुबेर भी, धन्य है भाग्य हमारा रे।। प्रभु…।।३।।
तर्ज—मंदिर में बाज रहे घंटे……
स्वर्गों में बाज उठे बाजे, इन्द्रों ने मुकुट झुकाए हैं।
जिनवर का जनम हुआ भू पर, धनपति ने रतन लुटाए हैं।। टेक.।।
देवों का परिकर लेकर, इन्द्र-इन्द्राणी आए हैं-२ ।
देखा जो शिशु तीर्थंकर, नेत्र हजार बनाये हैं।
सुन्दरता लखकर प्रभुवर की, फिर भी तृप्ती ना पाये हैं।। जिनवर……।।१।।
स्वर्गों के वस्त्राभूषण, इन्द्राणी ने पहनाए हैं।
रत्नों के पलने में फिर, जिनवर को सभी झुलाए हैं।।
प्रभु के संग खेलने को, सबके मन ललचाए हैं।। जिनवर……।।२।।
माता का प्रभु दूध न पीते, फिर भी तो बलशाली हैं।
स्वर्गों से भोजन आता है, महिमा यही निराली है।।
‘चंदनामती’ उन प्रभुवर के, मात-पिता हर्षाये हैं।। जिनवर……।।३।।
तर्ज – नानी तेरी मोरनी को………..
चलो बच्चों! चलो मिलके खेल खेलेंगे।
अपने प्रभु के साथ मिलके खेल खेलेंगे।।
अच्छे बच्चों! प्यारे बच्चों! सुन्दर अवसर आया है।
तीर्थंकर बालक ने तुमको अपना मित्र बनाया है।।
चलो बच्चों! चलो मिलके खेल खेलेंगे।
अपने प्रभु के साथ मिलके खेल खेलेंगे।।१।।
छुक छुक गाड़ी रेल चलाओ आंख मिचौली खेलो अब।
जिनवर राजा खड़े हैं देखो खेल कबड्डी खेलो अब।।
चलो बच्चों! चलो मिलके खेल खेलेंगे।
अपने प्रभु के साथ मिलके खेल खेलेंगे।।२।।
तीर्थंकर हैं राजकुंवर ये इनकी महिमा न्यारी है।
इन पर तो ‘‘चन्दनामती’’ इनकी माता बलिहारी हैं।।
चलो बच्चों! चलो मिलके खेल खेलेंगे।
अपने प्रभु के साथ मिलके खेल खेलेंगे।।३।।
तर्ज-लिया प्रभू अवतार…………..
लगा प्रभू दरबार, जय जयकार जय जयकार जय जयकार।
भरा यहाँ भण्डार, जय जयकार जय जयकार जय जयकार।।
आज खुशी है आज खुशी है, हमें खुशी है तुम्हें खुशी है।
खुशियाँ अपरम्पार, जय जयकार………..।।लगा……….।।१।।
पुष्प और रत्नों की वर्षा, सुरपति करते हरषा-हरषा।
बजे दुन्दुभी सार, जय जयकार………..।।लगा……….।।२।।
इन्द्र ने आकर वासुपूज्य का, राज्यपट्ट अभिषेक किया है।
सबको हर्ष अपार, जय जयकार………..।।लगा……….।।३।।
प्रभु ने राजनीति सिखलाई, धर्मनीति की बात बताई।
धर्म ही जग में सार, जय जयकार………..।।लगा……….।।४।।
आवो हम सब प्रभु गुण गावें, धन्य ‘चन्दनामति’ हो जावें।
सब जग मंगलकार, जय जयकार………..।।लगा……….।।५।।
तर्ज—जइयो न लला…………..
जाएगा कहाँ, मेरा लाल मुझे छोड़ के।
माता-पिता सबसे, ममता को तोड़ के।।टेक.।।
ये सारा वैभव बेटा, तेरी तो माया है।
सारी धरा पर बेटा, तेरी ही छाया है।।
कैसे जाएगा इनसे, मुखड़े को मोड़ के।
जाएगा कहाँ, मेरा लाल मुझे छोड़ के।।१।।
ऐसा क्या सोचा तूने, तुझको क्या हो गया।
मेरा ये राजा बेटा, वैरागी हो गया।।
महलों के सुख को कैसे , जाएगा छोड़ के।
जाएगा कहाँ, मेरा लाल मुझे छोड़ के।।२।।
तर्ज-एक परदेशी…………..
तीर्थंकर मुनिराज का आहार हो रहा,
देखो चारों ओर जयजयकार हो रहा।।
महामुनी का प्रथम पारणा, प्रथम बार जब हुआ महल में।।हुआ…।।
पंचाश्चर्य की वृष्टि हुई है, चौके का भोजन अक्षय हुआ है।।
अक्षय….।।
भक्ती में विभोर सब संसार हो रहा,
देखो चारों ओर जयजयकार हो रहा।।प्रभू……..।।१।।
इन्द्र देव सब नगरी में आकर, पंचाश्चर्य की वृष्टि करते।
वृष्टि करते….।।
दान की महिमा को देख देखकर, राजा के पुण्य का वर्णन करते।।वर्णन करते..।।
राजा के महलों में मंगलाचार हो रहा,
देखो चारों ओर जयजयकार हो रहा।।प्रभू……..।।२।।
सब मिलकर इस पुण्य घड़ी में, आहार दान की खुशियाँ मनाओ।
गुरु को आहार दे ‘चन्दनामति’, सबको खीर का प्रसाद खिलाओ।।
प्रसाद खिलाओ।।
आज कैसा धर्म का प्रचार हो रहा,
देखो चारों ओर जयजयकार हो रहा।।प्रभू……..।।३।।
तर्ज-माई रे माई…………..
आओ रे आओ खुशियाँ मनाओ, उत्सव सभी मनावो।
प्रभु को केवलज्ञान हुआ है, समवसरण रचवाओ।।
बोलो रे जय जय जय…………………..।।
चम्पापुर के उपवन में जब, ज्ञान हुआ था प्रभु को।
इन्द्राज्ञा से धनपति ने, रच डाला समवसरण को।।
नभ में अधर विहार करें वे, दर्शन कर सुख पाओ।
प्रभु को केवलज्ञान हुआ है, समवसरण रचवाओ।।
बोलो रे जय जय जय…………………..।।१।।
चरण कमल तल स्वर्णकमल की, रचना इन्द्र करे हैं।
सोने में होती सुगंधि है, यह साकार करे हैं।।
उन जिनवर के दर्शन करने, भव्य सभी आ जावाे।
प्रभु को केवलज्ञान हुआ है, समवसरण रचवाओ।।
बोलो रे जय जय जय…………………..।।२।।
बीस हजार हाथ ऊपर है, समवसरण की रचना।
अंधे-लूले-लंगड़े-रोगी, चढ़कर कभी थकें ना।।
यही ‘चन्दनामती’ प्रभू की, महिमा सब मिल गाओ।
प्रभु को केवलज्ञान हुआ है, समवसरण रचवाओ।।
बोलो रे जय जय जय…………………..।।३।।
तर्ज-माई रे माई…….
जिनवर का निर्वाण महोत्सव, मिलकर सभी मनाएँ।
आओ इस भारत वसुधा पर, अगणित दीप जलाएँ।।
प्रभू की जय जय जय, प्रभू की जय जय जय जय जय।।
कर्म अघाती नाश प्रभू जी, मोक्षधाम में पहुँचे।
तीनलोक के अग्रभाग में, सिद्धशिला पर तिष्ठे।।
अष्टापद से मोक्ष पधारे, ऋषभदेव जिनवर जी।।
तब स्वर्गों से इन्द्रों ने आ, दीप असंख्य जलाए।
आओ इस भारत वसुधा पर, अगणित दीप जलाएँ।।
प्रभू की जय जय जय, प्रभू की जय जय जय जय जय।।१।।
ऋषभदेव से महावीर तक, हैं चौबिस तीर्थंकर।
इन सबका उपदेश एक ही, धर्म अहिंसा हितकर।।
जिओ और जीने दो सबको, यह संदेश सुनाएँ।
आओ इस भारत वसुधा पर, अगणित दीप जलाएँ।।
प्रभू की जय जय जय, प्रभू की जय जय जय जय जय।।२।।
सिद्धक्षेत्र की भक्ती करके, हम भी सिद्ध बनेंगे।
जब तक सिद्ध नहीं बनते, तब तक प्रभु भक्ति करेंगे।।
सभी ‘चन्दनामती’ खुशी से, यही भावना भाएँ।
आओ इस भारत वसुधा पर, अगणित दीप जलाएँ।।
प्रभू की जय जय जय, प्रभू की जय जय जय जय जय।।१।।
तर्ज-रंग बरसे भीगे चुनर वाली…………..
रंग छलके ज्ञान गगरिया से रंग छलके……
हो………रंग छलके ज्ञान गगरिया से रंग छलके…..हो……।।टेक.।।
जग को होली का रंग सुहाता-२
तुमको सुहाती ज्ञान गंग, जगत तरसे रंग छलके…..हो…..।।१।।
जग को सुहाती, जयपुर की चुनरिया-२
तुम्हें भाती चरित्र चुनरिया, जो मन हरषे रंग छलके….हो……।।२।।
जग को सुहाते, रत्नन के गहने-२
तुम्हें भाते ज्ञान के गहने, रतन बरसे रंग छलके……हो……।।३।।
जग को सुहाती, विषयां की लाली-२
तुमहो सुहाती जिनवाणी, जगत झलके रंग छलके…..हो….।।४।।
कहे ‘चन्दना’ सब मिल आओ-२
हम भी सुनें जिनवाणी, ज्ञान बरसे रंग छलके…..हो……।।५।।
तर्ज-सपने में …………..
जिनवर का महामस्तकाभिषेक निराला है।
क्या सुन्दर लगती पंचामृत की धारा है।।टेक.।।
जब जल की धारा पड़ती, चन्दा के किरण सम लगती।
शीतल हो जाती धरती, पावन होते नरतन भी।।
हैं पुण्यवान वे जो करते जलधारा है।
क्या सुन्दर लगती पंचामृत की धारा है।।१।।
जब दूध से न्वहन करें हम, क्षीरोदधि स्मरण करें हम।
ऊपर से नीचे बहती, तब दुग्धमयी हो धरती।।
प्रभु तन पर कर लो तुम भी दूध की धारा है।
क्या सुन्दर लगती पंचामृत की धारा है।।२।।
जब दही की धारा पड़ती, मोती की लड़ियाँ लगती।
सर्वौषधि कलश ढुराएं, हम तन को स्वस्थ बनाएँ।।
केशर से प्रभु का रंग केशरिया प्यारा है।
क्या सुन्दर लगती पंचामृत की धारा है।।३।।
करो शांतिधारा प्रभु पर, हो जावे शांति धरा पर।
‘‘चंदनामती’’ जिन भक्ती, सबके भवकल्मष हरती।।
कलियुग में प्रभु भक्ती ही एक सहारा है।
क्या सुन्दर लगती पंचामृत की धारा है।।४।।
तर्ज—चलो मिल सब……
चलो सब मिल यात्रा कर लो, तीर्थयात्रा का फल वर लो।
चौबिस तीर्थंकर की सोलह, जन्मभूमि नम लो।। चलो.।। टेक.।।
ऋषभ-अजित-अभिनंदन-सुमती, अरु अनंत जिनवर।
नगरि अयोध्या में जन्मे, जो तीरथ है शाश्वत।।
अयोध्या को वंदन कर लो,
ऋषभदेव की जन्मभूमि का रूप नया लख लो।। चलो…।।१।।
श्रावस्ती में संभव, कौशाम्बी में पद्मप्रभू।
वाराणसि में श्री सुपार्श्व-पारस प्रभु को वंदूँ।।
चन्द्रपुरि तीरथ को नम लो,
जहाँ चन्द्रप्रभु जी जन्मे वह रज सिर पर धर लो।।चलो…।।२।।
पुष्पदन्त काकन्दी, शीतल भद्दिलपुर जन्मे।
श्री श्रेयांसनाथ तीर्थंकर, सिंहपुरी जन्मे।।
तीर्थ चम्पापुर को नम लो,
वासुपूज्य की पंचकल्याणक भूमि इसे समझो।।चलो…।।३।।
कम्पिलजी में विमलनाथ, प्रभु धर्म रतनपुरि में।
हस्तिनापुर में शांति-कुंथु-अर, तीर्थंकर जन्मे।।
चलो मिथिलापुरि को नम लो,
मल्लिनाथ-नमिनाथ जन्मभूमी वंदन कर लो।। चलो…।।४।।
राजगृही में मुनिसुव्रत, नेमी शौरीपुर में।
कुण्डलपुर में चौबिसवें, महावीर प्रभू जन्मे।।
तीर्थ से भवसागर तिर लो,
जिनवर जन्मभूमि दर्शन कर, जन्म सफल कर लो।। चलो…।।५।।
गणिनी ज्ञानमती जी की, प्रेरणा मिली भक्तों।
सभी जन्मभूमी जिनवर की, जल्दी विकसित हों।।
पुण्य का कोष सभी भर लो,
तीर्थ वंदना से हि ‘‘चन्दना’’ आत्मशुद्धि कर लो।। चलो…।।६।।