रचयित्री-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती
तर्ज—सारे जग का तू सरताज …………..
सारे जग में तेरी धूम-बाबा हो बाबा,
सारे जग में तेरी धूम-बाबा हो बाबा।
सबसे ऊँची तेरी प्रतिमा, मांगीतुंगी तीर्थ की महिमा,
बढ़ गई ज्ञानमती की गरिमा।।सारे.।।
तीर्थंकर प्रथम इस धरा के हो तुम।
कर्मयुग के प्रभो आदिब्रह्मा हो तुम।।
तुमने मोक्षमार्ग बतलाया, जग को जीवनकला सिखाया,
आदिब्रह्मा तू कहलाया।।सारे.।।१।।
मांगीतुंगी में प्रतिमा तेरी बन गई।
ज्ञानमति माता की प्रेरणा मिल गई।।
दुनिया भर में सबसे ऊँची, मूरति देखो बनी अनूठी,
इनसे सुन्दर छवी न दूजी।।सारे.।।२।।
बड़ी प्रतिमा की सब ओर जयकार है।
नाभिनन्दन को मेरा नमस्कार है।।
बढ़ गई जिनशासन की कीरत, धन्य है मांगीतुंगी तीरथ,
बन गई तेरी सुंदर मूरत।।सारे.।।३।।
युग युगों तक अमर जैनशासन हुआ।
‘चन्दनामती’ अमर जैन आगम हुआ।।
आगम का प्रमाण दरशाया, मूर्ति सांगोपांग बनाया,
जैनीध्वज नभ में लहराया।।सारे.।।४।।