तर्ज-राम जी की निकली सवारी……..
ऋषभदेव की मूर्ति प्यारी, बनी पर्वत पे ऊँची निराली-निराली।
धरती से छत्तिस सौ फुट ऊँचाई, पर मिली अखंड शिला एक प्यारी।
ऋषभदेव की मूर्ति प्यारी……।।टेक.।।
है ऐतिहासिक निर्वाण भूमि।
निन्यानवे कोटि मुनि सिद्धभूमी।।
महाराष्ट्र का सम्मेदशिखर है।
श्री मांगीतुंगी तीरथ प्रवर है।।
प्राचीन तीरथ, मुनियों की कीरत, बतलाती है वह धरती निराली।
ऋषभदेव की मूर्ति प्यारी……।।१।।
गणिनीप्रमुख ज्ञानमती माताजी ने।
कर ध्यान एवं तपस्या गिरी पे।।
दी प्रेरणा मूर्ति निर्माण होवे।
जिनसंस्कृति कीर्तीमान होवे।
गुरुप्रेरणा से, भक्तों के धन से, साकार हुई योजना यह निराली।
ऋषभदेव की मूर्ति प्यारी……।।२।।
हुई कार्य सिद्धी बन गई प्रतिमा।
है एक सौ आठ फुट ऊँची प्रतिमा।।
सब मिल किया मंत्र का जाप्य भक्तों।
निर्विघ्न हुआ ‘चंदना’ कार्य भक्तों।
देखो प्रभू को, छवि उनकी निरखो, पर्वत पे प्रगट हुई है प्रतिमा प्यारी।
ऋषभदेव की मूर्ति प्यारी……।।५।।