तर्ज-माई रे माई……..
मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र पर, स्वर्णिम अवसर आया।
युग की सबसे ऊँची प्रतिमा, बनने का क्षण आया।।
बोलो जय जय जय, प्रभू की जय जय जय जय जय।।टेक.।।
जहाँ कभी श्री पद्म-शैल ने मोक्षधाम पाया था।
निन्यानवे कोटि मुनियों ने भी शिवपद पाया था।।
उस पर्वत पर ऋषियों ने……..
उस पर्वत पर ऋषियों ने भी, आतमध्यान लगाया।
युग की…………।।१।।
वही ध्यान की परम्परा, जीवन्त हुई है अब फिर।
गणिनीप्रमुख ज्ञानमति का, चौमास हुआ तीरथ पर।।
सन् उन्निस सौ छियानवे में, उनका चिन्तन आया।
युग की…………।।२।।
इस अद्भुत निर्माण को करके, सबने पुण्य कमाया।
स्वस्थ चिरायू बने ‘‘चंदनामती’’ सफल की काया।।
कोष खोल दिया सबने अपना…….
कोष खोल दिया सबने अपना, है यह चंचल माया।
युग की…………।।३।।