तर्ज-सोनागिरि में ……
सबसे ऊँची प्रतिमा के गुण गाना है।
ऋषभदेव का नाम हमें चमकाना है।।
ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा मिली, मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र को निधी मिली।।
सबसे ऊँची……।।टेक.।।
निन्यानवे करोड़ मुनियों को मिली मुक्ती।
श्रीपद्म व श्रीशैल ने पाई जहाँ सिद्धी।।
तुंगीगिरी पर आज उनकी मूर्तियां दिखतीं।
मानो तपस्या कर रही हैं मूर्तियां उनकी।।
ऊपर चढ़कर वंदन करने जाना है, ऋषभदेव का नाम हमें चमकाना है।।१।।
सन् उन्निस सौ छियानवे का वर्षायोग था।
गणिनी माता ज्ञानमती का संघ था वहाँ।।
उनके वर्षायोग में संयोग बना ऐसा।
सोने में मानो आ गई सुगंधी के जैसा।।
बदल गया उस तीरथ का नजराना है, ऋषभदेव का नाम हमें चमकाना है।।२।।
अब प्रतीक्षा की घड़ी परिपूर्ण हो गईं।
वृषभेश की प्रतिमा जी बनकर पूर्ण हो गई।।
प्रभु पंचकल्याणक महा जिनबिम्ब का हुआ।
अरु मस्तकाभिषेक प्रभुवर का प्रथम हुआ।।
यही ‘‘चन्दनामति’’ इतिहास बताना है, ऋषभदेव का नाम हमें चमकाना है।।३।।