-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती
तर्ज-माई रे माई……….
पुष्पदंत प्रभु जन्मभूमि में, गूँज उठी शहनाई।
सौ-सौ वर्षों बाद जहाँ, खुशियों की बेला आई।।
जिनवर पुष्पदंत की जय, उनकी जन्मभूमि की जय.।।टेक.।।
काकंदी वह पुण्यभूमि है, पुष्पदंत जहाँ जनमे।
जयरामा सुग्रीव मात-पितु हर्षे थे निज मन में।।
इन्द्रों की टोली स्वर्गों से, काकंदी में आई।
सौ-सौ वर्षों बाद जहाँ, खुशियाँ की बेला आई।।
जिनवर पुष्पदंत की जय, उनकी जन्मभूमि की जय.।।१।।
गणिनी ज्ञानमती माता की, मिली प्रेरणा सबको।
जीर्णोद्धार विकास तीर्थ का, करो कराओ भक्तों।।
इसी भावना के कारण, उत्सव की घड़ियाँ आईं।
सौ-सौ वर्षों बाद जहाँ, खुशियों की बेला आई।।
जिनवर पुष्पदंत जय, उनकी जन्मभूमि की जय.।।२।।
पुष्पदंत प्रभु शुक्र-अरिष्ट, निवारक माने जाते।
भौतिक सम्पति पाने हेतू, भक्त शरण में आते।।
इसीलिए ‘‘चंदनामती’’, उन प्रभु की महिमा गाई।
सौ-सौ वर्षों बाद जहाँ, खुशियों की बेला आई।।
जिनवर पुष्पदंत जय, उनकी जन्मभूमि की जय.।।३।।