-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती
तर्ज—पंखिड़ा………
पंखिड़ा तू उड़ के जाना स्वर्गपुरी में।
कहना इन्द्र से कि चलो मध्यलोक में।।पंखिड़ा……।।टेक.।।
मध्यलोक में श्री जिनवरों के नाथ जन्मे हैं।
उनके माता-पिता और तीनों लोक हरषें हैं।।
पूजा करो, भक्ति करो, वन्दना करो।
भक्ति करके प्रभु की आत्मशक्ति को भरो।।पंखिड़ा……।।१।।
देखो मध्यलोक में ही सारे तीर्थक्षेत्र हैं।
प्रभु के मोक्ष से पवित्र यहीं सिद्धक्षेत्र हैं।।
पूजा करो, भक्ति करो, वन्दना करो।
भक्ति करके प्रभु की आत्मशक्ति को भरो।।पंखिड़ा……।।२।।
मध्यलोक में सदा ही साधु-सन्त रहते हैं।
विश्वशांति का सदा ही वे प्रयत्न करते हैं।।
पूजा करो, भक्ति करो, वन्दना करो।
भक्ति करके प्रभु की आत्मशक्ति को भरो।।पंखिड़ा……।।३।।
स्वर्गपुरि से देव-इन्द्र मध्यलोक आते हैं।
‘‘चंदनामती’’ वे जिनवरों के गीत गाते हैं।।
पूजा करो, भक्ति करो, वन्दना करो।
भक्ति करके प्रभु की आत्मशक्ति को भरो।।पंखिड़ा……।।४।।