तर्ज-तेरे हाथों की…..
मेरा भाग्य सितारा चमका, मिला अवसर प्रथम न्हवन का।
कि मैं तो निहाल गया, मुझे मिल गया रतन खजाना,
कि मैं तो मालामाल हो गया।।
श्री ऋषभगिरी पर्वत पर, मांगीतुंगी तीरथ पर।
देखो कमाल हो गया, बनी इक सौ आठ फुट प्रतिमा।।
कि वैâसा चमत्कार हो गया।।मेरा.।।टेक.।।
ऋषभगिरी एक पर्वत है ऊँचा, मांगीतुंगी है तीरथ अनूठा।
वहाँ ज्ञानमती माताजी, इक दिन ध्यानस्थ हुई थीं,
तभी उन्हें ज्ञान हो गया,
बने पूर्वमुखी जिन प्रतिमा, जो दिव्य उपहार हो गया।।१।।
भारतीय संस्कृति के आद्य प्रणेता, ऋषभदेव प्रभु हैं जग के नेता।
असि मसि षट् क्रिया बताईं, जीवन की कला सिखाई।।
तो सबको ज्ञान हो गया,
जानी जिसने इनकी महिमा, उसे ही विश्वास हो गया।।२।।
जग का महा जिनबिम्ब प्रथम है, दिव्य कलश से न्हवन प्रथम है।
महाभाग्यशाली हैं कमल जी सौभाग्यवती अनुपमा जी,
आरा को अवसर प्राप्त हो गया,
महामस्तकाभिषेक प्रथम से, कि दुनिया में नाम हो गया।।३।।
पुण्य और यश वृद्धिंगत हो, धन धान्य ऐश्वर्य सुख संपत्ति हो।
इस पुण्य की है बड़ी महिमा, इसे लेने में आगे रहना।।
इसी से बड़ा काम हो गया,
‘‘चन्दनामती’’ यह पर्वत, जगत का पुण्यधाम हो गया।।४।।