तर्ज—काली तेरी चोटी है……
आदिनाथ स्वामी का जनम कल्याण है।
अयोध्यापुरी में देखो कैसी धूमधाम है।।
सारा जग करता जिनके चरणों में नमन,
तीर्थंकर हैं प्रथम।। टेक.।।
पिता नाभिराय मरुदेवी के महल में।
आये हैं ऋषभदेव महाप्रभु बनके।।
बज रही बधाई मरुदेवी आंगन,
तीर्थंकर हैं प्रथम।।१।।
शचि इन्द्राणी का भाग्य खिला है।
जिन्हें प्रभुजी का पहला दर्श मिला है।।
मायामयी बालक को सुलाया माँ के पास में।
माताजी को निद्रामग्न कर दिया आपने।।
इन्द्र हुआ प्रभुजी को देख के मगन,
तीर्थंकर हैं प्रथम।।२।।
पांडुकशिला पे, प्रभु न्हवन किया था।
क्षीरसागर से प्रासुक, जल को भरा है।।
शचि फिर उनको, सजाती है खुशी से।
पालने में प्रभु को, झुलाती है खुशी से।।
इन्द्र करे ताण्डव, नृत्य वहाँ झूम के।
सभी ‘‘चन्दनामती’’ भक्ती में विभोर हैं।।
नाभिराय नगरी में लुटाते हैं रतन,
तीर्थंकर हैं प्रथम।।३।।