तर्ज—तीरथ करने चली……
दीक्षा लेकर बने महामुनि, मोक्षमार्ग बतलाने को।
ऋषभदेव ने करी तपस्या, धर्म तीर्थ प्रगटाने को।। टेक.।।
राज्य भोग के बाद प्रभू ने, जब दीक्षा स्वीकार किया।
चार हजार अन्य राजाओं, ने भी सब कुछ त्याग दिया।।
लेकिन सब पथभ्रष्ट हुए, जब मिला न कुछ भी खाने को।
मिला न कुछ भी खाने को।। दीक्षा लेकर……।।१।।
ऋषभ प्रभू ने देख समस्या, अपना ध्यान समाप्त किया।
वैâसे चले मुक्ति का मारग, मन में यही विचार किया।।
चले जैन मुनियों की तब, आहार क्रिया बतलाने को।
आहार क्रिया बतलाने को।। दीक्षा लेकर……।।२।।
उन्हें देख अज्ञानीजन, भोजन वस्त्रादिक लाते थे।
कोई धन वैभव कन्या, ला लाकर उन्हें दिखाते थे।।
मंद मंद मुस्काते प्रभु, चल देते राह बताने को।
चल देते राह बताने को।। दीक्षा लेकर……।।३।।
एक वर्ष उनतालिस दिन, पश्चात् हस्तिनापुर पहुँचे।
तब नवधा भक्ती करने श्रेयांस सोमप्रभ थे प्रगटे।।
दिया प्रथम आहार इक्षुरस, अक्षय संपति पाने को।
अक्षय संपति पाने को।। दीक्षा लेकर……।।४।।
अक्षय तृतिया पर्व उसी दिन, से जग में विख्यात हुआ।
जैन साधुओं की आहार, क्रिया का तब से ज्ञान हुआ।।
वही क्रिया ‘चंदनामती’, दिखला दो सभी जमाने को।
दिखला दो सभी जमाने को।। दीक्षा लेकर……।।५।।