श्री भरत चक्रवर्ती राज्य का संचालन करते हुए अपनी आवश्यक क्रियाओं में देवपूजा, गुरुओं का आहारदान, व्रत और शील आदि पालन में कुशल थे। छ्यानवे हजार रानियों के बीच में रहते हुए अध्यात्म प्रिय-आत्मा के ध्यान आदि में कुशल थे।एक समय ‘कल्पद्रुम’ नाम के अनुष्ठान को करते हुए प्रजा को खूब ही किमिच्छक दान बांटा था। अतिशयरूप से भगवन्तों के मंदिर बनवाकर उनमें रत्नों की प्रतिमाएं विराजमान करायी थीं। अतिशयरूप से भगवन्तों की प्रतिमाओं का अभिषेक करते रहते थे।