त्वचा मस्तिष्क का दर्पण है या मन का आईना, जो कुछ हम सोचते हैं या महसूस करते हैं उसका त्वचा पर सीधा असर पड़ता है। रोमांच होने पर रोंगटे खड़े होने वाली बात इसका एक छोटा सा उदाहरण है। किसी विशेषज्ञ ने त्वचा को इंद्रियों का एंटिना कहा है। खुश होने पर त्वचा चमकने लगती है,शर्म महसूस होने पर चेहरा गुलाबी हो जाता है,किसी परेशानी में चेहरे पर दाने उभर आते हैं और रोने पर चेहरे की मांसपेसियां तन जाती हैं। रोमछिद्र सिकुड जाते हैं त्वचा की सतह से रक्त निचुड़ सा जाता है और वह सफेद सी दिखने लगती है। उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया, भय से पीला पड़ गया, दुख से सफेद हो गया या नीला पड़ गया ये सारे मुहावरे त्वचा की इतनी संवेदन शीलता के कारण ही गढ़ लिये गये हैं।
भावनाओं और मानसिक तनाव
भावनाओं और मानसिक तनाव के कारण कई त्वचा रोग जैसे दाने, चकते, झाईयां या एक्जिमा हो सकता है। चेहरे पर असमंय झुर्रियां पड़ सकती हैं तथा बाल सफेद हो सकते हैं। हमारे मस्तिष्क और त्वचा का संबंध भ्रूण अवस्था से ही कायम हो जाता है। इस अवस्था में एक्टोडर्म और एंडोडर्म जो दो तत्व होते हैं, उनमें से पहले वाला शरीर की भीतरी रचना करता है और दूसरा मस्तिष्क और त्वचा को बनाता है। इसीलिए शरीर के किसी अन्य भाग की अपेक्षा इन दोनों में अधिक घनिष्ट संबंध होता है और इसलिए मस्तिष्क के सिग्नलों को त्वचा फौरन ग्रहण करती है और उस पर उसका असर दिखलायी पड़ता है। आवाज की ध्वनि से भी तेज रफ्तार से त्वचा मस्तिष्क के संदेशों को ग्रहण करती है। आमतौर पर हम त्वचा को केवल एक ऊपरी आवरण समझकर ,उसे चमकाने और जवान रखने के प्रयत्न में लगे रहते हैं लेकिन यह नहीं जानते कि यह एक बेहद संवेदनशील भावनात्मक बैरोमीटर है। आमतौर पर जब कभी त्वचा सूखी सी लगती है तो हम मौसम, किसी प्रसाधन या अपने हाजमे को कोसने लगते हैं लेकिन इन सबके साथ—साथ अन्य कारण जो होते हैं, वे हैं तनाव , नर्वसनेस , उदासी और चिंता। इन सबके कारण त्वचा के रोम छिद्र सिकुड़ जाते हैं।रक्त का संचार यानी आक्सीजन और पौषक तत्वों का प्रवाह , दूसरी ओर मुड़ जाता है। पसीना अधिक आने लगता है तथा कोशिकाएं नष्ट होने लगती है। त्वचा में रासायनिक और भौतिक परिवर्तन होने लगते है। त्वचा की प्राकृतिक नमी कम होती जाती है, तेल अधिक बनने लगता है और इन सभी कारणों से दाग , धब्बे, पगड़ी धारियां, पड़ने लगते है त्वचा बुझी, निस्तेज और झुर्रीदार नजर आने लगती है। जब मन प्रसन्न रहता है तो त्वचा भी तनावरहित रहती है। रोम छिद्र खुले रहते हैं। रक्त प्रवाह ठीक रहता है और चेहरे पर स्वास्थ्य की आभा दमकती है। तेल का उत्पादन सामान्य होता है, मांसपेशियां तनाव रहित रहती हैं। त्वचा चिकनी, जवान नजर आती है।
इन सभी बातों के आधार
इन सभी बातों के आधार पर ही तो कहा जाता है कि खुश रहिये। विशेषज्ञ भी कहते हैं कि उम्र का ताल्लुक दिमाग से होता है। शोध के अनुसार आपकी भावनायें रक्तसंचार, नसों का संतुलन, हाजमे और हार्मोनल सा्रव को प्रभावित करती है । क्रोध को ही लीजिए । किसी भी अन्य कारण की अपेक्षा क्रोध आपकी उम्र मिनटों में बढ़ा देता है। झगड़े के बाद जरा शीशे में अपना चेहरा देखिये आपको फौरन पता लग जायेगा। देखिये छोटी सी बात है, उदासी, दुख या निराशा से चेहरा लटक जाता है और खुशी से चमकने लगता है। अब बताइये जो चीज लटकी है वह भली लगेगी या जो चीज दमक रही है? खुशी उम्र घटाती है यानी उम्र के निशान चेहरे पर बहुत धीरे उभरते हैं, आदमी बहुत समय तक जवान दिख सकता है। दुख और चिंता से वही हाल होता है कि भरी जवानी मांझा ढीला । त्वचा के रंग रूप और स्वास्थ्य पर हार्मोंस का भी बड़ा असर होता है। हार्मोन शरीर में एक प्रकार की स्वनिर्मित औषधि होती है, जब कभी तनाव अधिक होता है तो यह जरूरत से ज्यादा बनने लगते हैं और जिसका प्रतिकूल प्रभाव त्वचा पर दिखने लगता हैं । एक्ने को बढ़ावा देने वाला टेस्टोस्टेरोन हार्मोन भावात्मक तनाव के कारण अपना उत्पादन बढ़ा देता है और मुंहासे बढ़ जाते हैं। मुंहासों पर तो तनाव का सीधा असर पड़ता ही है । तनाव का सीधा असर सेक्स ग्रंथियों , मासिक चक्र और हार्मोंस पर भी पड़ता है। ऑस्ट्रोजन ही त्वचा को सुंदर , पुष्ट, लचीला और जवान रखता है। मनोपॉज के साथ आस्ट्रोजनं बनना भी बंद हो जाता है इसलिए त्वचा सूखी और झूर्रीदार नजर आती है।
त्वचा और प्रेम
स्विस युवा डाक्टर ईवार पोपाव के अनुसार संतुलित संतोषदायक सेक्स और प्रेम दोनों ही मन मस्तिष्क को सुकून देते हैं इसलिए इनका भी गहरा असर पड़ता है। प्रेम त्वचा को जवान रखने में सहायक होता है। जो प्यार करते हैं वे भीड़ में अलग ही नजर आते हैं। उनकी प्रसन्नता और संतोष चेहरे का नूर बनकर झलकता है। सुखी परिवारिक जीवन का उपभोग करने वाले पति पत्नी का एक दूसरे तथा जमाने की नजरों में इतने आकर्षक और चुस्त इसीलिए नजर आते हैं कि उनका भावात्मक संसार व्यवस्थित है और उनकी त्वचा पर इसका अनुकूल असर पड़ता है। शरीर के भावात्मक वेंद्र हाइपोथेलेमस से उन्हें जो संकेत मिलते हैं वे सब त्वचा के अनुकूल पड़ते हैं। आपकी त्वचा, मस्तिष्क के हाथ में खतरे की घंटी है जब कुछ गड़बड़ होने लगती है तोे त्वचा विकृत होकर इस खतरे की तत्काल सूचना देती है। भावनाओं और त्वचा का गहरा संबंध है। यदि कभी आप देखें कि शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने पर भी आपकी त्वचा बेजान सी है या वह विकृत हो रही है तो संभव है कि आपका अपने स्वास्थ्य एवं शरीर के प्रति लापरवाही ही है। जिसका सीधा सा असर आपकी त्वचा एवं चेहरे पर पड़ता एवं दिखाई देता है। आपका किसी प्रकार का डर चाहे वो प्रेम में किसी को खोने का हो, आपकी इच्छा के मन मुताबिक काम का ना होने का हो , इसका असर ही आप के उपर पड़ता है।
उपचार:
हमारे अच्छा खायें— अच्छा सोचें, बहुत सारी अच्छी सी नींद लें और सदा ही मुस्कुराते रहें। तकलीफ सभी को किसी ना किसी प्रकार की होती ही है पर हिम्मत से और समझदारी से उसका सामना करते हुये ऊपर दिये गये उपचार को करते हैं तो देखें आप की त्वचा कितनी प्रकाशमय रहती है।