[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:सूक्तियां ]] == भिक्षु : == न सत्कृतिमिच्छति न पूजां, नोऽपि न वन्दनकं कुत: प्रशंसाम्। स संयत: सुव्रतस्तपस्वी, सहित आत्मगवेषक: स भिक्षु:।।
—समणसुत्त : २३४
जो सत्कार, पूजा और वन्दना तक नहीं चाहता, वह किसी से प्रशंसा की अपेक्षा कैसे करेगा ? (वास्तव में) जो संयत है, सुव्रती है, तपस्वी है और आत्मगवेषी है, वही भिक्षु है।