‘‘काश ! मुझे माँ आने देती, जीवन सफल बनाने देती। दूनिया को चमकाने देती,जीने का एक मौका देती।।’’
मानवीयता का हृास — २१वीं सदी के भारत की सबसे प्रमुख समस्या है— ‘भ्रूण हत्या’ । हमारा भारत देश धर्म प्रधान देश माना जाता है, जहाँ पर एक चींटी को मारना भी अपराध है, पाप है, वहाँ पर गर्भपात जैसी समस्या विकराल रूप धारण कर रही है। इंसानी जिन्दगी सस्ती हो गई है। भ्रूण हत्या जैसा जघन्य पाप करते समय व्यक्ति तनिक भी दु:खी नहीं होता है। बच्चा भगवान का रूप होता है। लेकिन मैं आप सभी से पूछती हूँ कि क्या सचमुच बेटियाँ अभिशाप हैं? जहाँ एक ओर हमारे ग्रंथों में संस्कृत श्लोकों में कहा गया कि— ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: ।’ जहाँ स्त्रियों की पूजा की जाती है वहाँ ईश्वर का निवास होता है, लेकिन जहाँ भ्रूण हत्या की जाए वहाँ कौन निवास करता होगा……सम्भवत: भगवान तो नहीं।
दहेज समस्या
मात्र दहेज के लिए भ्रूण हत्या क्या औचित्य है ? यह अवधारण नारी के अस्तित्व को ही खोखला नहीं कर रही, अपितु एक विनाश को निमंत्रण दे रही हैं। इस कारण लड़की को जन्म के पूर्व ही मार दिया जाए।यहाँ यह उक्ति चरितार्थ होती है ‘न रहेगा बांस न बजेगी बाँसुरी’। इस व्रूर हत्या को अंजाम देने के लिए डॉक्टर भी बिकाऊ होकर रह गए हैं। ऐसे डॉक्टरों के लिए यह कहना ठीक होगा—
‘‘कलियुग के डॉक्टर, बिक गये चंद रुपयों में। न मान है, उन्हें माँ बेटियों का, न लाज है, उनकी आँखों में’’
आधुनिकता की होड़
यह सत्य है कि वर्तमान में अध्यात्म और अन्तदर्शन की भावना कम होती जा रही है, चरित्र का पतन, नैतिक मूल्यों का हृास , संयम का खत्म होना भौतिकता की चमक—दमक को बढ़ावा, इन सभी बातों को आधुनिकता का नाम दिया जा रहा है, मीडिया के उन्मुक्त, अश्लील सीरियल आदि नई पीढ़ी को समय से पहले परिपक्व एवं विकारपूर्ण बना रहे है परिणामस्वरूप यौन—अपराधों की समस्या, अस्वीकार्य गर्भ, एक ही परिणति पर आकर ठहरते हैं, वह है भ्रूण हत्या। इन सभी अनैतिक आचरणों से बचना ही समस्या का निराकरण है ।हो सके तो हमारे देश के चिर —परिचित संत—समुदायों को आगे आकर सामाजिक चेतना जाग्रत करने वाले उपदेश देना होगे। हम बूचड़खानों का विरोध करते हैं, परन्तु घर—घर चल रहे खुले बूचड़खाने को कौन रोकेगा? जानवरों की हत्या तो संसार में आने के बाद होती है। लेकिन तुम तो असहाय जीव की हत्या गर्भ में ही कर देते हो, ऐसा करने में एक माँ की ममता शर्मशार नहीं होती? क्यों नारी—नाारी की दुश्मन बनती जा रही है, वह स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का कार्य कर रही है। एक नन्हीं—सी कली को खिलने से पहले ही रौंद देना एक जुर्म है, जिसका इस जहाँ में कोई प्रायश्चित नहीं है। भ्रूण हत्या हिंसा का नग्न तांडव है, इसके लिए केवल नारी ही नहीं , बल्कि डॉक्टर, और समाज सभी जिम्मेदार हैं। यदि देश की कोख से कत्ल का सिलसिला यूं ही निरंतर चलता रहा तो , यह मसला समाज को ही नहीं अपितु समुची दुनियां को तबाही के कटघरे में ला खड़ा करेगी। अंत में मैं आपसे यह कहना चाहती हूँ कि— नि:स्सन्देह भ्रूण हत्या नारी समाज के दिव्य ललाट पर एक कलंक है। समय की पुकार यही है कि नारी समाज को अपने मातृत्व की पहचान देना होगी, उसका मातृत्व कलंकित न हो इसके लिए उसे ठोस कदम उठाना होंगे। आज की नारी शिक्षित है, सक्षम है, अगर वह यह दृढ़ संकल्प कर ले कि उसकी कोख में पलने वाला उसी का अंश है चाहे लड़का हो या लड़की उसे जन्म देगी तो कोई भी ताकत उसे मजबूर नहीं कर सकती है।
अत: मेरी प्यारी बहनो। ‘‘उठो ! हम ये प्रण लेगे ये पाप नहीं होने देंगे। एक नन्ही पाक, सुगन्धित कली को यूं नहीं सोने देगे।’’