सिद्धान् सर्वान् नमस्कृत्य, सर्वसौख्यप्रदायकान्।
नवग्रहस्य शान्त्यर्थं, नवतीर्थंकरान् स्तुवे।।१।।
ज्योतिर्वासी देवों में सूर्य, चन्द्र ग्रहों में से सात ऐसे मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु ये नवग्रह माने गये हैं। व्यक्तियों के जन्म कुण्डली आदि में जब ये ग्रह उच्च स्थान में रहते हैं तो शुभ माने जाते हैं और जब अशुभ स्थान में होते हैं तब अशुभ फल देने वाले कहे जाते हैं। यद्यपि ये ज्योतिर्वासी देव किसी का भी कुछ हित-अहित नहीं करते हैं, मात्र निमित्त बनते हैं।
नवग्रहशांति स्तोत्र को पढ़ने की एवं नवग्रह शांति विधान को करने की परंपरा जैन समाज में हमेशा से चली आ रही है। ज्योतिषी पंडितों के कहे अनुसार किसी की जन्मकुंडली में कौन से ग्रहों का अशुभ योग चल रहा है, यह जानकर जैन बंधु भी गुरुओं के पास आकर शांति का उपाय पूछते हैं तब उन्हें उन-उन ग्रहों के स्वामी तीर्थंकर भगवंतों की पूजा करने का एवं मंत्र जपने का उपाय बताया जाता है। यह व्यवस्था प्राचीन है आज की नहीं है। यद्यपि ये ग्रह-सूर्य, चंद्रमा, शनि आदि किसी का कुछ भी बिगाड़ या सुधार नहीं करते हैं। ये सब अपनी-अपनी गति से गमन कर रहे हैं, फिर भी ये संसारी लोगोें के सुख-दुःख में निमित्त अवश्य बन जाते हैं। जैसे कोई श्रेष्ठी व्यापारिक कार्य के लिए प्रस्थान कर रहे हैं, सामने यदि मोर नाचते हुए दिख जाए या मंगल कलश आदि शकुन दिख जावे तो व्यापार में लाभ हो जाता है, जिस कार्य के लिए प्रस्थान है उस कार्य की सिद्धि हो जाती है। यदि इससे विपरीत किसी के प्रस्थान के समय सामने बिल्ली आ जावे, रोने लगे आदि, तो प्रस्थान करने वालों के कार्यों की सिद्धि न होकर हानि देखी जाती है। इसमें न तो मोर ने कुछ सोचा, न कुछ किया। न बिल्ली ने कुछ सोचा, न किया। ये निमित्त मात्र हैं। वैसे ही इन ग्रहों की गति का योग समझना चाहिए। फिर भी अशुभ योग की शांति के लिए तीर्थंकर भगवंतों की पूजा ही सक्षम है।
लगभग दश वर्ष पूर्व मेरे मन में नवग्रहशांति जिनमंदिर को बनवाने की भावना जाग्रत हुई थी। तब मैंने इस विषय में ग्रंथों का अवलोकन शुरू किया। एक ग्रंथ में नवग्रह यंत्र उपलब्ध हुआ जो कि नव भगवंतों का था, देखकर प्रसन्नता हुई। तभी मैंने उस आधार से ताम्रपट्ट पर ‘नवग्रहशांतियंत्र’ में नव भगवंतों के चरण बनवाये जो कि अनेक मंदिरों में विराजमान किये गये। पुन: हस्तिनापुर त्रिमूर्ति मंदिर में एक अष्ट दल का कमल बनवाकर उस पर कर्णिका समेत धातु के ५-५ इंची के नव भगवान विराजमान कराये। मांगीतुंगी में सुधबुध गुफा के पास भी मेरी प्रेरणा से नवग्रह शांति के भगवंतों के नव चरण विराजमान हुए हैं।
पुन: भगवान महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर में नंद्यावर्त महल परिसर में एक ‘नवग्रहशांति जिनमंदिर’ बनाया गया। इसमें नव भगवान विराजमान किये गये हैं। जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर में भी नवग्रह शांति जिनमंदिर की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा दिनाँक ७ से ११ फरवरी २००८ तक सम्पन्न हुई है। यहाँ अष्टधातु में निर्मित नवग्रह के अरिष्ट को दूर करने वाले नव तीर्थंकर भगवन्तों की बड़ी-बड़ी प्रतिमाएँ सुन्दर कमलासनों पर विराजमान की गई हैं। साथ ही प्रयत्न करने पर दक्षिण से ्नावग्रह के स्वामी नव प्रतिमाओं का एक चित्र भी प्राप्त हुआ। यह चित्र ‘भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ’ भाग-५, कर्नाटक पुस्तक में भी उपलब्ध हुआ है। इन्हीं नव भगवन्तों के नव-नव मंत्र भी उपलब्ध हुए हैं। उन्हें यहाँ दे रहे हैं।मैंने सन् १९९९ में इन नवग्रहों के नव भगवंतों का ‘नवग्रहशांति विधान’ आर्यिका चंदनामती से बनवाया है जो कि अत्यन्त महत्वपूर्ण है।चौबीस तीर्थंकरों से संबंधित ‘नवग्रहशांति स्तोत्र’ है और एक विधान में नवग्रहों की शांति हेतु नव तीर्थंकरों के नाम हैं-