मंगलाचरण
जंबूवृक्षादिशाखासु, परिवारद्रुमेष्वपि।
जिनालया जिनार्चाश्च, तांस्ता नौमि शिवाप्तये।।१।।
शंभु छंद
जंबूवृक्षादिक दश तरु हैं, इनके परिवार वृक्ष भी हैं।
छत्तीस लाख तेतालिस सहस, एक सौ बीस सर्व तरु हैं।।
दशतरु में अकृत्रिम मंदिर, परिवारवृक्ष में देवभवन।
इस सब में जिनगृह जिनप्रतिमा, इन सबको मैं नित करूँ नमन।।२।।
जंबूद्वीप में बीचों बीच में सुदर्शनमेरु पर्वत है। इसके दक्षिण और उत्तर में देवकुरु और उत्तरकुरु नाम से दो उत्तम भोगभूमि हैं। पूर्व और पश्चिम में विदेह क्षेत्र हैं।।उत्तरकुरु भोगभूमि में जंबूवृक्ष है। यह अनादिनिधन पृथ्वीकायिक रत्नमयी है। फिर भी इनके पत्ते रत्नमयी होते हुए भी हवा के झकोरे से हिलते हैं। इस वृक्ष की बड़ी-बड़ी चार शाखाएँ हैं। इस जंबूवृक्ष की उत्तर की शाखा पर अकृत्रिम जिनमंदिर है।
जंबूद्वीप में अकृत्रिम जिनमंदिर अठत्तर हैं। उन्हीं में इनकी गणना है। इसके चारों ओर बारह वेदिकाओं के अंतराल में जंबूवृक्ष के परिवार वृक्ष हैं। इन वृक्षों में भी शाखाओं पर देवों के भवन बने हुए हैं उनके गृहों में भी जिनमंदिर हैं, अतः एक जंबूवृक्ष के परिवार वृक्ष १,४०,११९ हैं तो उतने ही व्यंतर देवों के गृह में जिनमंदिर हैं। इसी प्रकार ‘देवकुरु’ भोगभूमि में शाल्मली वृक्ष है। उसका भी वर्णन इसी के समान है। इनके प्रमुख व्यंतर देवों के नाम आदरदेव एवं अनादरदेव हैं।
धातकीखण्ड में धातकी-धात्री अर्थात् आंवले के वृक्ष हैं। धातकीखंड में दक्षिण-उत्तर में इष्वाकार पर्वत के निमित्त से पूर्वधातकी एवं पश्चिमधातकी ऐसे दो भेद हो गए हैं। पूर्वधातकीखंड में विजयमेरु व पश्चिमधातकी खंड में अचलमेरु पर्वत हैं। अतः वहाँ दो धातकीवृक्ष व दो शाल्मली वृक्ष हैं। इनके परिवार वृक्षों की संख्या दूनी-दूनी है।
इसी प्रकार पुष्करार्धद्वीप में दक्षिण-उत्तर में इष्वाकार पर्वत के निमित्त से पूर्व पुष्करार्ध व पश्चिमपुष्करार्ध ऐसे दो खंड हो गए हैं। इनमें भी मंदरमेरु व विद्युन्मालीमेरु पर्वत हैं। वहाँ पर भी उत्तरकुरु व देवकुरु भोगभूमि में पुष्करवृक्ष व शाल्मलीवृक्ष हैं। धातकीवृक्ष से वहाँ के वृक्ष के परिवार वृक्ष दूने-दूने हो गए हैं।
इस प्रकार- १. जंबूवृक्ष, २. शाल्मलीवृक्ष, ३. धातकीवृक्ष, ४. शाल्मलीवृक्ष, ५. धातकीवृक्ष, ६. शाल्मलीवृक्ष, ७. पुष्करवृक्ष, ८. शाल्मलीवृक्ष, ९. पुष्करवृक्ष व १०. शाल्मलीवृक्ष। इन दस वृक्षों की एक-एक शाखा पर अकृत्रिम जिनमंदिर हैं। इनकी संख्या मध्यलोक के ४५८ अकृत्रिम मंदिरों में आ जाती हैं। तथा इनके जो परिवार वृक्ष हैं उन पर जो परिवार देव रहते हैं। उनके भवनों में जो जिनमंदिर हैं, उनकी गणना व्यंतरदेवों के जिनमंदिरों में आती हैं। इस बात का हमें और आपको ध्यान रखना है।
जंबूवृक्ष की उत्तर शाखा पर मंदिर है। शेष तीन दिशाओं की शाखाओं पर आदर और अनादर नाम के व्यंतर देवों के भवन हैं। परिवार वृक्षों में इन्हीं देव के परिवार देव हैं । ‘सिद्धांतसारदीपक’ आदि ग्रन्थों में जंबूवृक्ष का स्वामी अनावृत नाम का व्यंतर देव माना है। शाल्मलीवृक्ष की दक्षिण शाखा पर सिद्धायतन-जिनमंदिर है। व शेष तीन दिशा की शाखाओं पर वेणु एवं वेणुधारी देव रहते हैं। परिवार वृक्षों में इन्हीं देवों के परिवार देव रहते हैं। इसी प्रकार धातकीवृक्ष व शाल्मलीवृक्ष के अधिपति प्रियदर्शन व प्रभास नाम के व्यंतर देव हैं। पुष्करार्धद्वीप में पुष्करवृक्ष व शाल्मलीवृक्षों के अधिपति व्यंतर देव हैं। इनके नाम पद्म व पुण्डरीक हैं। इन वृक्षों की उत्तर व दक्षिण शाखा पर जिनमंदिर तथा शेष तीन शाखाओं पर एवं परिवार वृक्षों पर व्यंतर देव रहते हैं।इन वृक्षों के पत्ते-पत्ते या डाल-डाल पर भगवान की प्रतिमाएँ नहीं हैं यह बात ध्यान में रखना है।इन सभी दश सिद्धायतन अकृत्रिम जिनमंदिरों को उनमें विराजमान प्रतिमाओं को मेरा कोटि-कोटि नमस्कार होवे। तथा ढाई द्वीप के इन दश वृक्षों की तथा परिवारवृक्षों के देवभवनों की कुल संख्या छत्तीस लाख तेतालिस हजार एक सौ बीस है उनमें से दश घटाकर शेष ३६,४३,११० परिवार वृक्षों के जिनमंदिर, और जिनप्रतिमाओं को भी मेरा कोटि-कोटि नमस्कार होवें।