पूजा एक रासायनिक क्रिया है। इससे मंदिर के भीतरी वातावरण की पी. एच. वेल्यू (तरल पदार्थ नापने की इकाई) कम हो जाती है। जिससे व्यक्ति के पी. एच. वेल्यू पर असर पड़ता है। यह आयनिक क्रिया है जो शारीरिक रसायन को बदल देती है। यह क्रिया बीमारियों को ठीक करने में सहायक होती है। दवाईयों से भी यही क्रिया कराई जाती है। जो मंदिर जाने से होती है।
पुराने सभी मंदिर धरती के धनात्मक (पॉजिटिव) ऊर्जा के केन्द्र है। ये मंदिर आकाशीय ऊर्जा के केन्द्र ग्रिड है। व्यक्ति मंदिर में नंगे पाँव जाता है, इससे शरीर अर्थ हो जाता है, र्मूित के जब हाथ जोड़ता है तो शरीर का ऊर्जा चक्र चलने लगता है। जब सिर झुकातें हैं तो र्मूित से परार्वितत होने वाली पृथ्वी और आकाशिय तंरगे मस्तक पर पड़ती हैं और मस्तिष्क पर मौजूद आज्ञा चक्र पर असर डालती हैं। इससे शान्ति मिलती है तथा सकारात्मक विचार आते हैं। जिससे व्यक्ति में हल्कापन आता है। ==
मंदिर जी में शिखर होते हैं। शिखर की भीतरी सतह से टकराकर ऊर्जा तरंगे व ध्वनि तरंगे व्यक्ति के ऊपर पड़ती हैं, ये परार्वितत किरण तरंगे मानव शरीर आवृत्ति बनाये रखने में सहायक होती है। व्यक्ति का शरीर इस तरह से धीरे—धीरे मंदिर के भीतरी वातावरण से सामंजस्य स्थापित कर लेता है, इस तरह व्यक्ति असीम सुख का अनुभव करता है।