आप अपने प्लाट की दिशा खुली रखें। वहाँ स्कूटर, कार रखें। मकान में बड़ी—बड़ी खिड़कियाँ , कूलर और चाहे आप अपना फ्रिज रखें। टेबल के उत्तर पश्चिम में जिन कागजों को जल्दी निपटाना हो, जिनका पेमेन्ट जल्दी करना हो, सारे बिल—टेलीफोन, बिजली, पानी पेमेन्ट – रजिस्टार आदि रखें।
दक्षिण पश्चिम (नैऋत्य कोण)
भारी व बंद होना चाहिए। आप अपनी प्लाट के दक्षिण पश्चिम में भारी व उँची दीवार बनायें और उस हिस्से को थोड़ा भारी रखें, उसका ढलान उत्तर पूर्व की ओर रखें । वहाँ पर बड़े—बड़े पेड़ लगा सकते हैं । मकान के दक्षिण पश्चिम में बार्डरोब बनायें। घर के भारी समान, अलमारी, बक्से, अनाज के ड्रम सब दक्षिण में रखें। टेबल के ऊपर दक्षिण पश्चिम में रजिस्टर, डायरियां रखें। किसी भी प्लाट का, मकान का मुख्य भाग ब्रह्म स्थान होता है, यह हिस्सा खुला होना चाहिए। इसलिए प्लाट, मकान व कमरे के मध्य में भारी सामान नहीं होना चाहिए। ज्यादातर लोग ड्राइंग रूम के मध्य भाग में सेन्टर टेबल रखते हैं व कमरे के मध्य में छत पर रोलिंग फैन लगाते हैं। दोनों ही गलत हैं। इससे कमरे का ब्रह्म स्थान दूषित होता है और कई तरह की समस्यायें खड़ी होती है। यदि आपके घर में या कमरे में छत के बिल्कुल मध्य स्थल में छत का पंखा हैं और कमरे के मध्य में सेन्टर टेबिल रखी हो, तो थोड़ा सा उसको सरका कर उसके दोष को दूर किया जा सकता है। आपका किचन किसी भी जगह हो, आप उसी जगह के दक्षिण पूर्व (अग्निकोण) में गैस का चूल्हा रख दें। गैस के पास पानी का मटका या बाल्टी न रखें। खाना बनाते समय आपका मुँह पूर्व में रहे। किचन के उत्तर पूर्व में (ईशानकोण) पानी भर कर रखें, रात को किचन व मंदिर में अंधेरा न रखें । किचन में सपेद रंग ही रखें। परिवार के सदस्यों का मुँह खाना खाते समय पूर्व या उत्तर में रखें। आपके मकान में या कमरे में उत्तर पूर्व में मंदिर, पानी रखें। कमरे के उत्तर पूर्व में पानी का पोस्टर या एक गुलदस्ता रखें। फिश पोट रखने से धन लाभ होता है, घर में शांति रहती है। आप अपने घर में जितने भी कमरे हैं, उन कमरों की उत्तर पूर्व में सफाई रखें। भारी सामान, टेबल, अलमारी, बक्से, टी.वी. ना रखें। आप अपने घर के दक्षिण पूर्व (अग्निकोण ) में टी.वी. रखें।
भूखण्ड के किस प्रकार के कोण पर बनाये सु:ख समृद्धि देने वाला आलीशान मकान
भूमि चयन में भूखण्ड का आकार महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उदाहरणार्थ, आकार यदि चौकोर हो तो भी अच्छा परन्तु उसकी चौड़ाई एवं लम्बाई का अनुपात १:२ से ज्यादा नहीं होना चाहिए त्रिकोण, गोल या बहुकोणीय भूमि खरीदनी नहीं चाहिए, क्योंकि इससे अस्थिरता का निर्माण होता है । गौमुखी स्थान शुभ होता है उसे पसन्द किया जा सकता है । परन्तु उसके रास्ते दक्षिण—पश्चिम की ओर हों लेकिन उत्तर—पूर्व की ओर न हों। बाघमुखी जमीन जिसका अगला हिस्सा चौड़ा हो अथवा पिछला संकीर्ण हो ऐसी भूमि भी पसन्द नहीं करनी चाहिए। इसके अलावा अच्छे—बुरे भूखण्ड के लिए भूखण्ड के कोण भी बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।
भूखण्ड के कोण का महत्व
१. यदि ईशान कोण ९०० से कम हो और वायव्य कोण ९०० से अधिक हो तो भूखण्ड उत्तम माना जाता है।
२. यदि वायव्य कोण ९०० से कम हो और ईशान कोण ९०० से ज्यादा हो, अग्नि तथा नैऋत्य कोण ९०० के हों तो भूखण्ड अच्छा नहीं माना जाता। ऐसे भूखण्ड में हिंसक प्रवृत्ति बढ़ती है तथा कुकर्मों से अर्थ लाभ होता है। ऐसे भूखण्ड में वायव्य दिशा का क्रोस दूर करना जरूरी है।
३. यदि अग्नि कोण ९०० से कम और नैऋत्य ९०० से ज्यादा हो, इसके अलावा ईशान और वायव्य ९०० के हों तो ऐसा भूखण्ड अशुभ माना जाता है और वह भय, क्लेश, दु:ख, चिंता उत्पन्न कर सर्वनाश की ओर खींच ले जाता है।
४. यदि नैऋत्य कोण ९०० से कम ओर अग्नि ९०० से अधिक हो, उसके अलावा ईशान और वायव्य कोण ९०० के हों तो ऐसा भूखण्ड खराब होता है।ऐसे भूखण्ड में राक्षसी प्रवृत्ति होती है तथा मानसिक शोक व चिंता का कारण बनता है तथा अकस्मात आत्महत्या की संभावनाएँ होती हैं।
५. यदि वायव्य और ईशान कोण ९०० से ज्यादा हो और नैऋत्य तथा अग्नि ९०० से कम हो तो ऐसे भूखण्ड को बाघमुख कहा जाता है । ऐेसे भूखण्ड में बसने वाले का जीवन बड़ा कष्टमय होता है। धननाश होता है वह आदमी दु:खी हो जाता है।
६. जब ईशान तथा वायव्य कोण ९०० से कम जबकि अग्नि तथा नैऋत्य ९०० से ज्यादा है, ऐसा भूखण्ड भी अशुभ है। ऐसे प्लाट में हमेशा बीमारी, गलत रास्ता पर खर्च होता है और पापकर्म होता है।
७. यदि ईशान तथा अग्नि कोण ९०० से कम तथा वायव्य और नैऋत्य ९०० से ज्यादा हो तो ऐसा भूखण्ड गौमुखी कहा जाता है। ऐसे भूखण्ड में बसने वाले को बहुत धन मिलता है परन्तु अनावश्यक खर्च होने से धन स्थिर नहीं रहता।