तात्पर्यवृत्ति-बहु है आदि में जिनके वे बहु आदि अर्थ विशेष हैं। उनके बहु, बहुविध, क्षिप्र, अनि:सृत, अनुक्त, ध्रुव और इनके प्रतिपक्षी-अल्प, अल्पविध, अक्षिप्र, नि:सृत, उक्त और अध्रुव ये बारह भेद हैं। इनमें प्रत्येक के अवग्रह आदि चार अर्थ विशेष को ग्रहण करने वाले होते हैं अत: उनके अड़तालिस भेद हो गये अर्थात् बहु आदि बारह से अवग्रह आदि चार को गुणित करने से अड़तालिस भेद हो जाते हैं। प्रत्येक इन्द्रिय के प्रति ये भेद संभव होने से इन्हें छह इंद्रियों से गुणा करने से अर्थ के प्रति दो सौ अठ्यासी भेद हो जाते हैं।
व्यंजन के प्रति अवग्रह ही होता है। चक्षु और मन से रहित चार इन्द्रियों से बहु आदि बारह को गुणित करने से अड़तालिस भेद हो जाते हैं क्योंकि व्यंजन में ईहा आदि असंभव हैं अर्थात् व्यंजनावग्रह के अड़तालिस भेद हो गये हैं। अव्यक्त शब्दादि समूह का व्यंजनावग्रह होता है।