(तिलोयपण्णत्ती से)
पायारपरिगदाइं वरगोउरदारतोरणाइं पि।
अब्भंतरम्मि भागे महोरगाणं च चेट्ठंति।।२५।।
पाठान्तरम् ।
णयरेसुं रमणिज्जा पासादा होंति विविहविण्णासा।
अब्भंतरचेत्तरया णाणावररयणणियरमया।।२६।।
दिप्पंतरयणदीवा समंतदो विविहधूवधडजुत्ता।
वज्जमयवरकवाडा वेदीगोउरदुवारजुदा।।२७।।
पणुहत्तरि चावािंण उत्तुंगा सयधणूणि दीहजुदा।
पण्णासदंडरुंदा होंति जहण्णम्मि पासादा।।२८।।
७५। १००। ५०।
पासादावारेसुं बारस चावाणि होंति उच्छेहो।
पत्तेक्कं छण्णाहं अवगाढं तं पि चत्तारि।।२९।।
१२। ६। ४।
पणुवीसं दोण्णि सया उच्छेहो होदि जिट्ठपासादा।
दीहं तिसयधणूिंण पत्तेक्कं सद्ध विक्खंभो।।३०।।
२२५। ३००। १५०।
ताण दुवारुच्छेहो दंडा छत्तीस होदि पत्तेक्कं।
अट्ठारस विक्खंभो बारस णियमेण अवगाढं१।।३१।।
दं. ३६। १८। १२।
(तिलोयपण्णत्ती से)
वेदी के अभ्यन्तर भाग में प्राकार से वेष्टित एवं उत्तम गोपुरद्वार व तोरणों से संयुक्त ऐसे महोरग देवों के (भवन) स्थित हैं।।२५।। पाठान्तर। नगरों में विविध प्रकार की रचनाओं से युक्त, अनेक उत्तमोत्तम रत्नसमूहों से निर्मित, अभ्यन्तरभाग में चैत्य तरुओं से सहित, चारों ओर प्रदीप्त रत्नदीपकों से सुशोभित, विविध प्रकार के धूपघटों से युक्त, वङ्कामय कपाटों से संयुक्त और वेदी व गोपुरद्वारों से सहित रमणीय प्रासाद हैं।।२६-२७।। ये प्रासाद जघन्यरूप से पचहत्तर धनुष ऊँचे, सौ धनुष लंबे और पचास धनुषप्रमाण विस्तारयुक्त हैं।।२८।। ऊँचाई ७५; लंबाई १००; विस्तार ५० धनुष। इन प्रासादों के द्वारों में प्रत्येक की ऊँचाई बारह धनुष, व्यास छह धनुष और अवगाढ़ चार धनुषप्रमाण है।।२९।।
ऊँचाई १२; व्यास ६; अवगाढ़ ४ धनुष। उत्कृष्ट प्रासादों में प्रत्येक की ऊँचाई दो सौ पच्चीस धनुष, लम्बाई तीन सौ धनुष और विष्कंभ इससे आधा अर्थात् एक सौ पचास धनुषप्रमाण है।।३०।। ऊँचाई २२५; लम्बाई ३००; वि. १५० धनुष। उत्कृष्ट प्रासादों के द्वारों में प्रत्येक द्वार की ऊँचाई छत्तीस धनुष, विष्कंभ अठारह धनुष और अवगाढ़ नियम से बारह धनुष प्रमाण है।।३१।। ऊँचाई ३६; वि. १८, अव. १२ धनुष।
भावार्थ—चैत्यवृक्ष का अर्थ है कि जिनवृक्षों की कटनी पर चैत्य अर्थात् जिनप्रतिमाएँ हैं उन्हें ही चैत्यतरु—चैत्यवृक्ष कहते हैं।