कितने ही मनुष्य उपदेश से, कितने ही स्वभाव से, कितने जातिस्मरण से, कितने ही जिनेन्द्र भगवान के कल्याणक आदि को देखने से, कितने ही जिनबिम्ब दर्शन से सम्यक्त्व को ग्रहण करते हैं। कर्मभूमि में मनुष्य देशव्रत, महाव्रत आदि ग्रहण करके सिद्धगति को भी प्राप्त कर लेते हैं।
जितने क्षेत्र, नदी पर्वत आदि जम्बूद्वीप में हैं। पूर्वधातकी खंड में उतने ही हैं एवं पश्चिम धातकीखंड में भी उतने ही हैं अत: दुगने हो गये हैं, ऐसे ही पूर्व पुष्करार्ध में उतने तथा पश्चिम पुष्करार्ध में उतने ही हैं ऐसे ढाई द्वीप के पाँचों मेरु संबंधी सभी क्षेत्र आदि को ५ से गुणाकर देने से पाँचगुणी संख्या हो जाती है विशेषता इतनी है कि धातकीखंड और पुष्करार्ध में दो-दो इष्वाकार पर्वत हैं उन पर एक-एक जिन मंदिर होने से इन ३९० जिन भवन में उन ४ जिनमंदिर की संख्या मिला लीजिये तथा मानुषोत्तर पर्वत के ४ जिन भवनों की संख्या मिला लेने से ३९०±४±४·३९८ जिनभवन हो जाते हैं। मनुष्य लोक के इन सभी जिनभवनों को हमारा बारंबार नमन होवे।