जम्बूद्वीप, धातकीखंड और अर्ध पुष्कर द्वीप ऐसे ढाई द्वीप और लवणसमुद्र, कालोद समुद्र इन दो समुद्रों के भीतर मानुषोत्तर पर्वत पर्यंत ही मनुष्य पाये जाते हैं अत: इस ४५००००० लाख योजन प्रमाण व्यास वाले क्षेत्र को ‘मानुष क्षेत्र’ कहते हैं एवं इस मानुषोत्तर पर्वत के आगे मनुष्य नहीं जा सकते हैं इसीलिये इसका नाम भी सार्थक है। मनुष्य क्षेत्र की परिधि १४२३०२४९ योजन से कुछ कम है। मनुष्य के ४ भेद हैं सामान्य, पर्याप्त, स्त्रीवेदी मनुष्य, अपर्याप्त मनुष्य। ये चारों प्रकार के मनुष्य इस ‘मानुषलोक’ में ही उत्पन्न होते हैं। पर्याप्त मनुष्य राशि का प्रमाण २९ अंक प्रमाण हैं यथा-१९८०७०४०६२८५६६०८४३९८३८५९८७५८४ ऐसे २९ अंक प्रमाण है।
स्त्रीवेदी मनुष्य की राशि भी २९ अंक प्रमाण है। यथा-५९४२११२१८८५ ६९८२५३१९५१५७९६२७५२ (तिलोयप.पृ.५२४)
अंतर्द्वीपज, कुभोगभूमिज मनुष्य सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यात गुणे मनुष्य १० कुरु क्षेत्रों में हैंं। इनसे संख्यात गुणे हरिवर्ष और रम्यक क्षेत्रों में हैं। इनसे संख्यात गुणे हैरण्यवत, हैमवतक्षेत्रों में, इनसे संख्यात गुणे भरत, ऐरावत क्षेत्रों में और इनसे भी संख्यात गुणे मनुष्य विदेह क्षेत्रों में हैं।
लब्धपर्याप्तक मनुष्य इनसे असंख्यात गुणे हैं। लब्ध्यपर्याप्तक से विशेष अधिक सामान्य मनुष्य राशि है। पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्त के भेद से मनुष्य तीन प्रकार के होते हैं। एक सौ सत्तर १७० आर्यखंडों में तीनों प्रकार के मनुष्य होते हैं, भोगभूमि, कुभोगभूमि और सभी म्लेच्छ खंडों में १७०²५·८५० अर्थात् ८५० म्लेच्छ खंडों में भी लब्ध्यपर्याप्त नहीं रहते हैं।
जिन मनुष्यों की आहार शरीर आदि ६ पर्याप्तियाँ पूर्ण नहीं हुुई हैं किन्तु होने वाली हैं वे निर्वृत्यपर्याप्त हैं, जिनकी पर्याप्तियाँ पूर्ण हो गई हैं वे पर्याप्त हैं। यह पर्याप्त अवस्था गर्भ में ही अंतर्मुहूर्त में हो जाती हैं। जिनकी पर्याप्तियाँ पूर्ण नहीं होती हैं और नियम से मर जाते हैं ऐसे क्षुद्रभव धारण करने वाले जीव लब्ध्यपर्याप्तक हैं इनके मनुष्यगति, मनुष्य आयु कर्म का उदय है किन्तु ये अत्यंत दयनीय संमूर्छन होते हैं स्त्रियों की कुक्षि, कक्ष आदि में जन्म लेते रहते और मरते रहते हैं।