-स्थापना-
दर्शन से जिनके कटते हैं पाप, पूजन से मिटते हैं सब संताप,
मूरत सुहानी है-तेरी महावीरा, छवि जगन्यारी है-प्रभु महावीरा।।टेक.।।
भक्ति करके तेरी, मैं संताप मन का मिटाऊँ।
अपने मन में तेरी, प्रतिमा नाथ वैâसे बिठाऊँ।।
तुम भगवन्, अतिपावन,
महिमा निराली है-तेरी महावीरा, छवि जग न्यारी है-तेरी महावीरा।।१।।
आज इस मण्डल पर, स्थापित करूँ नाथ! तुमको।
अपने मन मंदिर में, स्थापित करूँ नाथ! तुमको।।
तुम भगवन्, अतिपावन,
महिमा निराली है-तेरी महावीरा, छवि जग न्यारी है-प्रभु महावीरा।।२।।
ॐ ह्रीं मनोकामनासिद्धिकारक श्रीमहावीरजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं मनोकामनासिद्धिकारक श्रीमहावीरजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं मनोकामनासिद्धिकारक श्रीमहावीरजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
-अष्टक (स्रग्विणी छंद)-
क्षीरसिन्धु नीर को मैं भरूँ भृंग में।
तीन धारा करूँ वीर पद पद्म में।।
वीर महावीर वर्धमान की अर्चना।
पूर्ण करती सभी की मनोकामना।।१।।
ॐ ह्रीं मनोकामनासिद्धिकारक श्रीमहावीरजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
काश्मीर की सुगन्धियुक्त केशर लिया।
घिस के नाथ चरण में उसे चर्चिया।।
वीर महावीर वर्धमान की अर्चना।
पूर्ण करती सभी की मनोकामना।।२।।
ॐ ह्रीं मनोकामनासिद्धिकारक श्रीमहावीरजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
वासमती के धुले तंदुलों को लिया।
श्रीजिनेन्द्र के निकट पुंज को चढ़ा दिया।।
वीर महावीर वर्धमान की अर्चना।
पूर्ण करती सभी की मनोकामना।।३।।
ॐ ह्रीं मनोकामनासिद्धिकारक श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
भाँति भाँति के गुलाब पुष्प मैंने चुन लिया।
पुष्पमाल को बनाय प्रभु के पद चढ़ा दिया।।
वीर महावीर वर्धमान की अर्चना।
पूर्ण करती सभी की मनोकामना।।४।।
ॐ ह्रीं मनोकामनासिद्धिकारक श्रीमहावीरजिनेन्द्राय कामबाणविनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
शुद्ध नैवेद्य को बनाय थाल भर लिया।
स्वस्थता की प्राप्ति हेतु प्रभु समीप धर लिया।।
वीर महावीर वर्धमान की अर्चना।
पूर्ण करती सभी की मनोकामना।।५।।
ॐ ह्रीं मनोकामनासिद्धिकारक श्रीमहावीरजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
स्वर्णथाल में जले रत्नदीप जगमगे।
आरती उतारते ही मोह का तिमिर भगे।।
वीर महावीर वर्धमान की अर्चना।
पूर्ण करती सभी की मनोकामना।।६।।
ॐ ह्रीं मनोकामनासिद्धिकारक श्रीमहावीरजिनेन्द्राय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
धूप कर्पूर मिश्रित जला अग्नि में।
नाथ चाहूँ जलाना आज कर्म मैं।।
वीर महावीर वर्धमान की अर्चना।
पूर्ण करती सभी की मनोकामना।।७।।
ॐ ह्रीं मनोकामनासिद्धिकारक श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
सेव अंगूर अमरूद भर थाल में।
पादपद्म में चढ़ाय नाऊं निज भाल मैं।।
वीर महावीर वर्धमान की अर्चना।
पूर्ण करती सभी की मनोकामना।।८।।
ॐ ह्रीं मनोकामनासिद्धिकारक श्रीमहावीरजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जलफलादिक अष्टद्रव्य को सजाय के।
‘‘चन्दनामती’’ अनर्घ्यपद मिले चढ़ाय के।।
वीर महावीर वर्धमान की अर्चना।
पूर्ण करती सभी की मनोकामना।।९।।
ॐ ह्रीं मनोकामनासिद्धिकारक श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।
-अथ श्री मनोकामनासिद्धि विधान मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्-
—समुच्चय जाप्य—
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय विश्वशांतिकराय सर्वसौख्यं कुरु कुरु ह्रीं नम:।
१. ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धिभावनाबलेन तीर्थंकरपदप्राप्त श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
२. ॐ ह्रीं विनयसंपन्नताभावनाबलेन तीर्थंकरपदप्राप्त श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
३. ॐ ह्रीं शीलव्रतेषु अनतिचारभावनाबलेन तीर्थंकरपदप्राप्त श्रीमहावीर-जिनेंद्राय नम:।
४. ॐ ह्रीं अभीक्ष्णज्ञानोपयोगभावनाबलेन तीर्थंकरपदप्राप्त श्रीमहावीर-जिनेंद्राय नम:।
५. ॐ ह्रीं संवेगभावनाबलेन तीर्थंकरपदप्राप्त श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
६. ॐ ह्रीं शक्तितस्त्यागभावनाबलेन तीर्थंकरपदप्राप्त श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
७. ॐ ह्रीं शक्तितस्तपोभावनाबलेन तीर्थंकरपदप्राप्त श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
८. ॐ ह्रीं साधुसमाधिभावनाबलेन तीर्थंकरपदप्राप्त श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
९. ॐ ह्रीं वैयावृत्यकरणभावनाबलेन तीर्थंकरपदप्राप्त श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
१०. ॐ ह्रीं अर्हद्भक्तिभावनाबलेन तीर्थंकरपदप्राप्त श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
११. ॐ ह्रीं आचार्यभक्तिभावनाबलेन तीर्थंकरपदप्राप्त श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
१२. ॐ ह्रीं बहुश्रुतभक्तिभावनाबलेन तीर्थंकरपदप्राप्त श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
१३. ॐ ह्रीं प्रवचनभक्तिभावनाबलेन तीर्थंकरपदप्राप्त श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
१४. ॐ ह्रीं आवश्यक-अपरिहाणिभावनाबलेन तीर्थंकरपदप्राप्त श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
१५. ॐ ह्रीं मार्गप्रभावनाभावनाबलेन तीर्थंकरपदप्राप्त श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
१६. ॐ ह्रीं प्रवचनवत्सलत्वभावनाबलेन तीर्थंकरपदप्राप्त श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
१७. ॐ ह्रीं मातु: ऐरावतहस्तिस्वप्नप्रदर्शकाय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
१८. ॐ ह्रीं मातु: महावृषभस्वप्नप्रदर्शकाय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
१९. ॐ ह्रीं मातु: िंसहस्वप्नप्रदर्शकाय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
२०. ॐ ह्रीं मातु: मालायुगलस्वप्नप्रदर्शकाय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
२१. ॐ ह्रीं मातु: लक्ष्मीस्वप्नप्रदर्शकाय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
२२. ॐ ह्रीं मातु: चन्द्रस्वप्नप्रदर्शकाय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
२३. ॐ ह्रीं मातु: सूर्यस्वप्नप्रदर्शकाय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
२४. ॐ ह्रीं मातु: कलशयुगलस्वप्नप्रदर्शकाय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
२५. ॐ ह्रीं मातु: मीनयुगलस्वप्नप्रदर्शकाय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
२६. ॐ ह्रीं मातु: सरोवरस्वप्नप्रदर्शकाय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
२७. ॐ ह्रीं मातु: समुद्रस्वप्नप्रदर्शकाय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
२८. ॐ ह्रीं मातु: िंसहासनस्वप्नप्रदर्शकाय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
२९. ॐ ह्रीं मातु: देवविमानस्वप्नप्रदर्शकाय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
३०. ॐ ह्रीं मातु: धरणेंद्रभवनस्वप्नप्रदर्शकाय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
३१. ॐ ह्रीं मातु: रत्नराशिस्वप्नप्रदर्शकाय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
३२. ॐ ह्रीं मातु: निर्धूम-अग््िनास्वप्नप्रदर्शकाय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
३३. ॐ ह्रीं स्वेदरहितजन्मातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
३४. ॐ ह्रीं मलरहितजन्मातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
३५. ॐ ह्रीं क्षीरसमरुधिरजन्मातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
३६. ॐ ह्रीं वज्रऋषभनाराचसंहननजन्मातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
३७. ॐ ह्रीं समचतुरस्रसंस्थानजन्मातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
३८. ॐ ह्रीं अनुपमरूपजन्मातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
३९. ॐ ह्रीं सुगंधशरीरजन्मातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
४०. ॐ ह्रीं अष्टोत्तरसहस्रलक्षणजन्मातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
४१. ॐ ह्रीं अनंतबलजन्मातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
४२. ॐ ह्रीं प्रियहितमधुरवचनजन्मातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
४३. ॐ ह्रीं गव्यूतिशतचतुष्टयसुभिक्षताकेवलज्ञानातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
४४. ॐ ह्रीं आकाशगमनकेवलज्ञानातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
४५. ॐ ह्रीं प्राणिवधाभावकेवलज्ञानातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
४६. ॐ ह्रीं कवलाहाराभावकेवलज्ञानातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
४७. ॐ ह्रीं उपसर्गाभावकेवलज्ञानातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
४८. ॐ ह्रीं चतुर्मुखकेवलज्ञानातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
४९. ॐ ह्रीं छायारहितकेवलज्ञानातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
५०. ॐ ह्रीं नेत्रनिमीलनरहितकेवलज्ञानातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
५१. ॐ ह्रीं सर्वविद्यास्वामिकेवलज्ञानातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
५२. ॐ ह्रीं नखकेशवृद्धिरहितकेवलज्ञानातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
५३. ॐ ह्रीं दिव्यध्वनिकेवलज्ञानातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
५४. ॐ ह्रीं सर्व-ऋतुफलपुष्पादिदेवकृतातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
५५. ॐ ह्रीं धूलिकंटकादिनिवारणदेवकृतातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
५६. ॐ ह्रीं सर्वजनमैत्रीभावदेवकृतातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
५७. ॐ ह्रीं रत्नमयीभूमिदेवकृतातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
५८. ॐ ह्रीं गंधोदकवृष्टिदेवकृतातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
५९. ॐ ह्रीं फलभारनम्रशालिदेवकृतातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
६०. ॐ ह्रीं सर्वजनपरमानंददेवकृतातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
६१. ॐ ह्रीं अनुकूलवायुदेवकृतातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
६२. ॐ ह्रीं जलभरितकूपादिदेवकृतातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
६३. ॐ ह्रीं निर्मलाकाशदेवकृतातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
६४. ॐ ह्रीं सर्वजनरोगशोकबाधारहितदेवकृतातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
६५. ॐ ह्रीं धर्मचव्रâचतुष्टयदेवकृतातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
६६. ॐ ह्रीं चरणकमलतलस्वर्णकमलरचनादेवकृतातिशयसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
६७. ॐ ह्रीं अशोकवृक्षप्रातिहार्यसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
६८. ॐ ह्रीं छत्रत्रयप्रातिहार्यसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
६९. ॐ ह्रीं िंसहासनप्रातिहार्यसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
७०. ॐ ह्रीं द्वादशगणवेष्टितप्रातिहार्यसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
७१. ॐ ह्रीं देवदुंदुभिप्रातिहार्यसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
७२. ॐ ह्रीं सुरपुष्पवृष्टिप्रातिहार्यसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
७३. ॐ ह्रीं भामंडलप्रातिहार्यसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
७४. ॐ ह्रीं चतु:षष्टिचामरप्रातिहार्यसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
७५. ॐ ह्रीं अनंतज्ञानगुणसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
७६. ॐ ह्रीं अनंतदर्शनगुणसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
७७. ॐ ह्रीं अनंतसौख्यगुणसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
७८. ॐ ह्रीं अनंतवीर्यगुणसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
७९. ॐ ह्रीं क्षुधामहादोषरहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
८०. ॐ ह्रीं तृषामहादोषरहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
८१. ॐ ह्रीं भयमहादोषरहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
८२. ॐ ह्रीं क्रोधमहादोषरहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
८३. ॐ ह्रीं िंचतामहादोषरहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
८४. ॐ ह्रीं जरामहादोषरहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
८५. ॐ ह्रीं रागमहादोषरहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
८६. ॐ ह्रीं मोहमहादोषरहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
८७. ॐ ह्रीं रोगमहादोषरहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
८८. ॐ ह्रीं मृत्युमहादोषरहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
८९. ॐ ह्रीं स्वेदमहादोषरहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
९०. ॐ ह्रीं विषादमहादोषरहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
९१. ॐ ह्रीं मदमहादोषरहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
९२. ॐ ह्रीं रतिमहादोष्ारहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
९३. ॐ ह्रीं विस्मयमहादोषरहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
९४. ॐ ह्रीं निद्रामहादोषरहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
९५. ॐ ह्रीं जन्ममहादोषरहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
९६. ॐ ह्रीं अरतिमहादोषरहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
९७. ॐ ह्रीं इन्द्रकृतवीर-वर्द्धमाननामप्राप्ताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
९८. ॐ ह्रीं मुनिद्वयकृतसन्मतिनामप्राप्ताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
९९. ॐ ह्रीं संगमदेवकृतमहावीरनामप्राप्ताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
१००. ॐ ह्रीं रूद्रकृतमहतिमहावीरनामप्राप्ताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
१०१. ॐ ह्रीं महायोगीश्वरगुणसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
१०२. ॐ ह्रीं द्रव्यसिद्धगुणसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
१०३. ॐ ह्रीं अदेहगुणसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
१०४. ॐ ह्रीं अपुनर्भवगुणसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
१०५. ॐ ह्रीं ज्ञानैकचिद्गुणसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
१०६. ॐ ह्रीं जीवघनगुणसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
१०७. ॐ ह्रीं स्वात्मोपलब्धिरूपसिद्धनामसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
१०८. ॐ ह्रीं लोकाग्रगामुकगुणसहिताय श्रीमहावीरजिनेंद्राय नम:।
-पूर्णार्घ्य-दोहा-
गुण अनंत प्रभु आप के, वैâसे वरणूं नाथ।
पूरण अर्घ्य चढ़ाय के, मैं भी बनूँ सनाथ।।१।।
ॐ ह्री शताष्टगुणसमन्विताय मनोवाञ्छितफलप्रदाय श्रीमहावीर-जिनेन्द्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं मनोवाञ्छितफलप्रदाय श्री महावीरजिनेन्द्राय नमः।
-शंभु छन्द-
जय जय तीर्थंकर महावीर, तुम सर्वसिद्धि के दाता हो।
जय जय जिनवर हे नाथ! वीर, तुम तो शिवमार्ग विधाता हो।।
जय जय सन्मति! अतिवीर प्रभो! तुम सम्यक्बुद्धि प्रदाता हो।
जय जय हे वर्धमान भगवन्! तुम आत्मशक्ति के दाता हो।।१।।
महावीर से दश भव पूर्व सिंह, पर्याय में सम्बोधन पाया।
फिर अणुव्रत धारण कर क्रम क्रम से, देव मनुज का भव पाया।।
उत्थान किया निज जीवन का, तो जग का भी उत्थान हुआ।
जिसने तुमसे शिक्षा पाई, उसका ही जनम महान हुआ।।२।।
कुण्डलपुर नंद्यावर्त महल में, चैत्र शुक्ल तेरस तिथि को।
राजा सिद्धारथ की रानी, त्रिशला ने जन्मा इक सुत को।।
वह ही संसार प्रसिद्ध हुआ, चौबिसवाँ तीर्थंकर बन कर।
नहिं उनके बाद हुआ कोई, इस भरतक्षेत्र में तीर्थंकर।।३।।
इसलिए इन्हें अंतिम तीर्थंकर, कहा गया इस भारत में।
लेकिन आगे भी जन्मेंगे, चौबिस तीर्थंकर भूतल पे।।
महावीर शिष्य श्रेणिक उनमें से, प्रथम जिनेश्वर पद लेंगे।
जो नगरि अयोध्या में तीर्थंकर ‘‘महापद्म’’ बन जन्मेंगे।।४।।
महावीर के पांचों कल्याणक से, जो जो धरा पवित्र हुईं।
वे आज बनीं गौरवशाली, सुरगण मुनिगण से वंद्य हुईं।।
है गर्भ जन्म तप कल्याणक से, पावन कुण्डलपुर नगरी।
उस निकट जृम्भिका ग्राम में, ऋजुकूला नदि तट है ज्ञानथली।।५।।
राजगृह का विपुलाचल पर्वत, प्रथम देशना स्थल है।
पावापुर का जलमंदिर प्रभु के, मोक्षगमन से पावन है।।
कुण्डलपुर राजगृह पावापुर, जिनवर तीर्थ त्रिवेणी है।
इसमें स्नान करें जो भी, वे आते मोक्ष की श्रेणी में।।६।।
इस नवविधान में सर्वप्रथम, सोलहकारण के अर्घ्य दिया।
जिनको भाकर प्रभु महावीर ने, तीर्थंकर पद प्राप्त किया।।
जिन सोलह स्वप्नों के फल में, माँ ने तीर्थंकर सुत पाया।
उनका वर्णन भी है इसमें, फिर चौंतिस अतिशय दर्शाया।।७।।
अठ प्रातिहार्य आनन्त्य चतुष्टय, गुण हैं जो प्रभु ने पाया।
फिर दोष अठारह नाशक प्रभु को, अर्घ्य चढ़ा मन हरषाया।।
बारह गण के बारह अर्घ्यों में, सिद्धशिला तक पहुँच गये।
इन सात वलय में इक सौ आठ, गुणों के अर्घ्य समर्प्य दिये।।८।।
गुणमाला प्रभु के चरणों में, अर्पण कर निजगुण प्राप्त करूँ।
महावीर प्रभू के चरणों में, वन्दन कर सुख साम्राज्य वरूँ।।
अतिवीर वीर सन्मति भगवन्! मुझको सद्बुद्धि प्रदान करो।
भक्ती में रत निज भक्तों को, संसारजलधि से पार करो।।९।।
हो मनोकामना पूर्ण मेरी, रत्नत्रय मेरा सुदृढ़ बने।
जब तक शिवपद की प्राप्ति न हो, सम्यक्त्व भी मेरा सुदृढ़ बने।।
पूर्णार्घ्य समर्पण करूँ प्रभो! पूजन की इस जयमाला में।
‘‘चन्दनामती’’ भव भव में मुझको, जिनवर भक्ती मिला करे।।१०।।
ॐ ह्रीं अष्टोत्तरशतगुणसमन्विताय मनोवाञ्छितफलप्रदायश्रीमहावीर-जिनेन्द्राय जयमाला महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
-शंभु छंद-
जो भव्य मनोकामनासिद्धि, महावीर विधान करें रुचि से।
प्रभु जी के इक सौ आठ गुणों में, रमण करें तन मन शुचि से।।
वे लौकिक सुख के साथ-साथ, आध्यात्मिक सुख भी प्राप्त करें।
‘‘चन्दनामती’’ जिनवर भक्ती का, फल शिवपद भी प्राप्त करें।।
।।इत्याशीर्वाद:, पुष्पांजलि:।।
जय वीर प्रभो, महावीर प्रभो, की मंगल दीप प्रजाल के
मैं आज उतारूं आरतिया।।टेक.।।
सुदी छट्ठ आषाढ़ प्रभूजी, त्रिशला के उर आए।
पन्द्रह महिने तक कुबेर ने, बहुत रत्न बरसाये।।प्रभू जी.।।
कुण्डलपुर की, जनता हरषी, प्रभु गर्भागम कल्याण पे,
मैं आज उतारूं आरतिया।।१।।
धन्य हुई कुण्डलपुर नगरी, जन्म जहां प्रभु लीना।
चैत्र सुदी तेरस के दिन, वहां इन्द्र महोत्सव कीना।।प्रभू जी.।।
काश्यप कुल के, भूषण तुम थे, बस एकमात्र अवतार थे,
मैं आज उतारूं आरतिया।।२।।
यौवन में दीक्षा धारण कर, राजपाट सब त्यागा।
मगशिर असित मनोहर दशमी, मोह अंधेरा भागा।।प्रभू जी.।।
बन बालयती, त्रैलोक्यपती, चल दिए मुक्ति के द्वार पे,
मैं आज उतारूं आरतिया।।३।।
शुक्ल दशमि वैशाख में तुमको, केवलज्ञान हुआ था।
गौतम गणधर ने आ तुमको, गुरु स्वीकार किया था।।प्रभू जी.।।
तव दिव्यध्वनी, सब जग ने सुनी, तुमको माना भगवान है,
मैं आज उतारूं आरतिया।।४।।
पावापुरि सरवर में तुमने, योग निरोध किया था।
कार्तिक कृष्ण अमावस के दिन, मोक्ष प्रवेश किया था।।प्रभू जी.।।
निर्वाण हुआ, कल्याण हुआ, दीपोत्सव हुआ संसार में,
मैं आज उतारूं आरतिया।।५।।
वर्धमान सन्मति अतिवीरा, मुझको ऐसा वर दो ।
कहे ‘चंदनामती’ हृदय में, ज्ञान की ज्योति भर दो। प्रभू जी.।।
अतिशयकारी, मंगलकारी, ये कल्पवृक्ष भगवान हैं,
मैं आज उतारूं आरतिया।।६।।