मन की निर्मलता
जीवन सहजता का नाम है। मानव व्यवहार और विचार की विशेषता निष्कपट व्यवहार और विचार में निहित है। कपटपूर्ण व्यवहार व्यक्ति को पूर्त बनाता है। दिखावे में वह हितैषी लगता है, परंतु उस पर विश्वास सदैव अहितकर होता है। सभी विद्वान विचारक कपटी व्यक्ति से सावधान रहने की बात कहते हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी ने कपटी लोगों को तुलना भोर से की है। जैसे मोर बाहर से देखने पर अत्यंत कोमल और आकर्षक होता है, परंतु भीतर से इतना कठोर कि बड़े-बड़े जहरीले सांपों को खा जाता है। वैसे ही कपटी लोग बाहर से चिकनी चुपड़ी बाते करते हैं, पर वे अपने हृदय में कपट धारण करते हैं। कपटी व्यक्ति कभी किसी से प्रीतिपूर्वक नहीं मिलते। उनके मिलने में सदैव स्वार्थ और झूठी प्रशंसा होती है।
कपटी व्यक्ति के मन में सदैव दुराव रहता है। हितैषी दिखने का और आवश्यकता पड़ने पर साथ होने का ढोंग करने वाले ऐसे लोग कभी भी सच्ची सहायता नहीं करते। उनके मन में एक गांठ रहती है। वह गांठ कपट की होती है। जैसे गांठ पड़े बांस से बनी बांसुरी से मधुर धुन, नहीं निकल सकती, वैसे ही कपटी व्यक्ति के मन की गांठ उसे सहज एवं सरस नहीं होने देती। बांसुरी से मधुर स्वर निकालने के लिए बांस का गांठ रहित होना आवश्यक है। इसी प्रकार जिस व्यक्ति के हृदय में छल-कपट रूपी गांठ नहीं पड़ी होती; उस व्यक्ति का अंतःकरण बिना गांठ की बांसुरी की तरह स्वच्छ होता है। उसके व्यक्तित्व और विचार में दुराव न होकर, सहज मधुरता होती है।
स्वयं ईश्वर को भी मन की निर्मलता भाती है। रावण ने जब अपने भाई विभीषण को अपमानित कर लंका से निकाल दिया तब भगवान श्रीराम ने शत्रु का भाई होते हुए भी विभीषण को उनके मन की निर्मलता के कारण शरण दी। संकट के समय कपटी व्यक्ति सबसे पहले साथ छोड़ जाते हैं। कपट का संबंध न स्थायी होता है और न ही कल्याणकारी।