मर्यादा
हमें जो सही लगे वह बोलने दीजिए और हम जिसे ठीक समझें वह करने दीजिए। जो जिहा को स्वादिष्ट लगे वह खाने दीजिए, जहां इच्छा करे वहां जाने दीजिए। हम पर इन विषयों में कोई बंधन मत बाँधिए। यह वर्तमान भौतिकवादी युग का जीवन मंत्र बन चुका है। इन परिस्थितियों में जीवित रहना और जीवन को मर्यादा से सुशोभित रखना कोई सामान्य चुनौती नहीं है, लेकिन इस चुनौती को स्वीकार करने में ही हमारी सुरक्षा है। जो लाल बत्ती के पास गाड़ी रोक देने की मर्यादा का पालन नहीं करता, हरी बत्ती होने तक प्रतीक्षा नहीं कर सकता, उसे वाहन चलाने की स्वतंत्रता नहीं दी जानी चाहिए। शरीर हो या जीवन, परिवार हो या समाज या फिर राष्ट्र, ये सभी सुचारु रूप से चल रहे हैं तो उसका संपूर्ण श्रेय यदि किसी एक तत्व को जाता है तो उस तत्व का नाम है मर्यादा।
विचार कीजिए कि आसमान में पतंग उड़ती है हवा के कारण या धागे के बंधन की वजह से ? धागा काट के देखें तो पतंग पल भर में फुर्र हो जाएगी, क्योंकि पतंग आसमान में तभी उड़ सकती है जब तक वह धागे का बंधन स्वीकार करती है। बस इस धागे के बंधन के समान ही है मर्यादा का बंधन। उसे स्वीकार करने में ही हमारे अस्तित्व की सुरक्षा है, हमारे व्यक्तित्व के विकास की उड़ान है और हमारे प्रभुत्व को प्रकट करने की संभावना है। संप्रति स्वतंत्रता के नाम पर स्वच्छंदता का बोलबाला है। हमारे मन को प्रायः निरंकुश अवस्था ही रास आती है। मर्यादा की स्वीकृति एवं मर्यादा के पालन के लिए हमें मन को सदैव अनुशासन की डोर से बांध कर रखना होगा। वस्तुतः हमारा मन राजा है और इंद्रियां प्यादा। प्यादा मर्यादा में ही रहेगा बशर्ते शासक अनुशासन में हो। इंद्रियां भी मर्यादा नहीं लांचेंगी, यदि हमारा मन अनुशासित रहेगा। अनुशासितं एवं मर्यादित जीवन सफलता के शिखर को छूता है। जीवन में संघर्षों से जूझने की शक्ति देती है मर्यादा। भटके राही के लिए दिशा सूचक यंत्र बनती है मर्यादा।
डा. निर्मल जैन