भगवान महावीर के समवसरण में बैठकर प्रथम गणधरदेव श्री गौतमस्वामी ने जिन दण्डकसूत्रों को कहा है वे मुनियों-आर्यिकाओं के लिए दैवसिक (रात्रिक) प्रतिक्रमणरूप में और पाक्षिकप्रतिक्रमणरूप में प्रसिद्ध हैं। उनकी टीका करते हुए टीकाकारों ने बहुत ही श्रद्धा भक्ति से इन प्रतिक्रमण सूत्रों को श्री गौतमस्वामी रचित माना है। आज हम और आप सभी बहुत ही भाग्यशाली हैं, जो कि साक्षात् भगवान महावीर स्वामी के समवसरण की चतुर्थकालीन वाणी को पढ़ने का पुण्ययोग मिल रहा है। उनमें से-
दैवसिक प्रतिक्रमण में प्रतिक्रमणभक्ति के प्रारंभ में ही श्री गौतमस्वामी द्वारा रचित एक सूत्र वाक्य है-
‘णमो णिसीहियाए-३’।।
श्री प्रभाचंद्राचार्य ने इसकी टीका करते हुए इस ‘निषीधिका’ के सत्रह (१७) अर्थ किये हैं पुन: पूर्वाचार्यों के द्वारा कथित प्राकृत गाथा उद्धृत करके इनके प्रमाण भी दिये हैं। चूँकि टीकाकार अधिकतम पूर्वाचार्यों के अनुसार ही टीका करते रहे हैं।इन १७ प्रकार के अर्थों के ही ये १७ मंत्र हैं। श्रद्धा भक्ति से इनके व्रत भी किये जा सकते हैं। इन १७ अर्थों के मंत्रों में सभी कृत्रिम व अकृत्रिम जिनमंदिर व जिनप्रतिमाएं भी आ गई हैं। सभी प्रकार के ऋद्धिधारी साधु व सामान्य साधु आदि तो इनमें गर्भित ही हैं। अवधि, मन:पर्ययी व केवली भगवन्तों से सभी तीर्थंकर भगवान व सभी केवलज्ञानी आ जाते हैं। सिद्ध भगवन्तों का पृथक् मंत्र है ही, साथ ही उनके निर्वाणक्षेत्र, सिद्धशिला, सम्मेदशिखर आदि सिद्धक्षेत्र तथा सभी मुनियों की निर्वाणभूमियाँ आदि भी इसमें गर्भित हैं। कुल मिलाकर इन १७ मंत्रों में तीनों लोकों के समस्त पंचपरमेष्ठी, असंख्यातों-अकृत्रिम-कृत्रिम जिनमंदिर, प्रतिमाएं आदि को वंदन हो जाता है। अर्थापत्ति से इन १७ अर्थों में नवदेवताओं की वंदना भी हो जाती है क्योंकि अवधिज्ञानी, मन:पर्ययज्ञानी व केवली के द्वारा कथित वचन ही जिनागम हैं व वही जिनधर्म है।इसीलिए इस व्रत का ‘महातीर्थ व्रत’ नाम है। भक्तिपूर्वक इस व्रत को करने से अथवा भक्तिपूर्वक इन मंत्रों को पढ़ने से भी महान् पुण्य का संचय होगा, असंख्यात गुणश्रेणीरूप से पाप कर्मों की निर्जरा होगी व परम्परा से स्वर्ग-मोक्ष को प्राप्त करने का सौभाग्य मिलेगा।
इस व्रत में १७ उपवास करके व्रत कर सकते हैं। उपवास में तिथि का कोई नियम नहीं है। अष्टमी, चतुर्दशी या किसी भी तिथि को व्रत कर सकते हैंं। व्रत प्रारंभ करके महीने में एक व्रत अवश्य करना चाहिए। व्रतों में उत्तम विधि उपवास है। मध्यम विधि में अल्पाहार, फल आहार आदि लेकर व्रत करें व जघन्य विधि में एक बार शुद्ध भोजन-एकाशन करके व्रत करें। ध्यान रखें-व्रत के दिन एक बार ही जल, फल या भोजन आदि लेना है, दूसरी बार नहीं। दिगम्बर जैन परम्परा में व्रतों की यही विधि है।
व्रत के दिन भगवान की प्रतिमा का पंचामृत अभिषेक करें अथवा अपनी-अपनी परम्परा अनुसार जल से अभिषेक करें। नवदेवता की पूजा करें और धर्मध्यानपूर्वक दिवस व्यतीत करें।
व्रत के दिन समुच्चय मंत्र की एक माला अवश्य करें, पुन: क्रम-क्रम से एक-एक व्रत में एक-एक मंत्र की जाप्य करें। सुगंधित पुष्पों से या लवंग से या पीले चावल से भी जाप्य कर सकते हैं अथवा चांदी, सोने की माला या सूत आदि की माला से भी जाप्य कर सकते हैं।
समुच्चय मंत्र-ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीतनिषीधिकाभ्यो नम:।
१. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-निषीधिकार्थ-अन्तर्गतकृत्रिमाकृत्रिमजिन-सिद्धप्रतिबिम्बेभ्यो नम:।
२. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-निषीधिकार्थ-अन्तर्गतकृत्रिमाकृत्रिमजिन-सिद्धजिनालयेभ्यो नम:।
३. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-निषीधिकार्थ-अन्तर्गतबुद्ध्यादिलब्धि-सम्पन्नमुनिभ्यो नम:।
४. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-निषीधिकार्थ-अन्तर्गतबुद्ध्यादिलब्धिसम्पन्न-मुनिभिराश्रितक्षेत्रेभ्यो नम:।
५. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-निषीधिकार्थ-अन्तर्गत-अवधिमन:पर्यय-केवलज्ञानिभ्यो नम:।
६. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-निषीधिकार्थ-अन्तर्गत-अवधिमन:पर्ययकेवल-ज्ञानि-ज्ञानोत्पत्तिप्रदेशेभ्यो नम:।
७. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-निषीधिकार्थ-अन्तर्गत-अवधिमन:पर्ययकेवल-ज्ञानि-ज्ञानोत्पत्तिप्रदेशाश्रितक्षेत्रेभ्यो नम:।
८. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-निषीधिकार्थ-अन्तर्गतसिद्धजीवेभ्यो नम:।
९. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-निषीधिकार्थ-अन्तर्गतसिद्धजीवनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो नम:।
१०. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-निषीधिकार्थ-अन्तर्गतसिद्धजीवनिर्वाण-क्षेत्राश्रिताकाशप्रदेशेभ्यो नम:।
११. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-निषीधिकार्थ-अन्तर्गतसम्यक्त्वादिचतुर्गुण-युक्ततपस्विभ्यो नम:।
१२. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-निषीधिकार्थ-अन्तर्गतसम्यक्त्वादिचतुर्गुणयुक्त-तपस्विभिराश्रितक्षेत्रेभ्यो नम:।
१३. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-निषीधिकार्थ-अन्तर्गतसम्यक्त्वादिचतुर्गुणयुक्त-तपस्वित्यक्तशरीराश्रितप्रदेशेभ्यो नम:।
१४. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-निषीधिकार्थ-अन्तर्गतयोगस्थिततपस्विभ्यो नम:।
१५. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-निषीधिकार्थ-अन्तर्गतयोगस्थिततपस्वि-आश्रितक्षेत्रेभ्यो नम:।
१६. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-निषीधिकार्थ-अन्तर्गतयोगस्थिततपस्विमुक्त-शरीराश्रितप्रदेशेभ्यो नम:।
१७. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणाrत-निषीधिकार्थ-अन्तर्गतत्रिविधपंडितमरण-स्थितमुनिभ्यो नम:।
-अथवा-
व्रत के दिन बृहत् मंत्र जो कोई न कर सकें, वे लघु मंत्र भी जप सकते हैं-
समुच्चय जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं निषीधिकायै नम:।
१. ॐ ह्रीं कृत्रिमाकृत्रिमजिनसिद्धप्रतिबिम्बेभ्यो नम:।
२. ॐ ह्रीं कृत्रिमाकृत्रिमजिनसिद्धजिनालयेभ्यो नम:।
३. ॐ ह्रीं बुद्ध्यादिलब्धिसम्पन्नमुनिभ्यो नम:।
४. ॐ ह्रीं बुद्ध्यादिलब्धिसम्पन्नमुनिभिराश्रितक्षेत्रेभ्यो नम:।
५. ॐ ह्रीं अवधिमन:पर्ययकेवलज्ञानिभ्यो नम:।
६. ॐ ह्रीं अवधिमन:पर्ययकेवलज्ञानि-ज्ञानोत्पत्तिप्रदेशेभ्यो नम:।
७. ॐ ह्रीं अवधिमन:पर्ययकेवलज्ञानि-ज्ञानोत्पत्तिप्रदेशाश्रितक्षेत्रेभ्यो नम:।
८. ॐ ह्रीं सिद्धजीवेभ्यो नम:।
९. ॐ ह्रीं सिद्धजीवनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो नम:।
१०. ॐ ह्रीं सिद्धजीवनिर्वाणक्षेत्राश्रिताकाशप्रदेशेभ्यो नम:।
११. ॐ ह्रीं सम्यक्त्वादिचतुर्गुणयुक्ततपस्विभ्यो नम:।
१२. ॐ ह्रीं सम्यक्त्वादिचतुर्गुणयुक्ततपस्विभिराश्रितक्षेत्रेभ्यो नम:।
१३. ॐ ह्रीं सम्यक्त्वादिचतुर्गुणयुक्ततपस्वित्यक्तशरीराश्रितप्रदेशेभ्यो नम:।
१४. ॐ ह्रीं योगस्थिततपस्विभ्यो नम:।
१५. ॐ ह्रीं योगस्थिततपस्वि-आश्रितक्षेत्रेभ्यो नम:।
१६. ॐ ह्रीं योगस्थिततपस्विमुक्तशरीराश्रितप्रदेशेभ्यो नम:।
१७. ॐ ह्रीं त्रिविधपंडितमरणस्थितमुनिभ्यो नम:।