श्रीमते सकलज्ञान, साम्राज्य पदमीयुषे।
धर्मचक्रभृते भत्र्रे, नम: संसारभीमुषे।।
जिनसेन स्वामी ने कहा है-यह युग का आद्य कथानक बताने वाला इतिहास है। सर्वप्रथम भगवान ऋषभदेव ने जहाँ जन्म लेकर दीक्षा ली वह प्रयाग तीर्थ सर्वभाषामय तीर्थ का उद्भव स्थल है। भरत के प्रश्न पर वृषभसेन गणधर ने अनेक उत्तर बताये उसी परम्परा में भगवान महावीर के समवसरण में गौतम गणधर ने राजा श्रेणिक के प्रश्नों पर जो पुराण कहा है। उसी पुराण को महापुराण आचार्यदेव ने बताया गया है, उन्होंने कहा है-
श्रुतं मया श्रुतस्कंधादायुष्मन्तो महाधिय:।
निबोधत पुराणं मे यथावत् कथयामि व:।।
वे कहते हैं-हे श्रेणिक! जैसे भरत के लिए ऋषभदेव ने कहा था, उसी प्रकार मैं आपके लिए कहता हूँ। श्रुतस्कंध के ४ अधिकार हैं-१. प्रथमानुयोग २. करणानुयोग ३. चरणानुयोग ४. द्रव्यानुयोग, जिसमें महापुरुषों का चरित्र हो उसे प्रथमानुयोग कहते हैं। रत्नकरण्ड श्रावकाचार में भी कहा है-
प्रथमानुयोगमर्थाख्यानं, चरितं पुराणमपि पुण्यम्।
बोधि समाधि निधानं, बोधति बोध: समीचीन:।।
देखो! इन महापुरुषों के चरित्र अपने लिए आदर्श हैं। ऋषभदेव, राम आदि का चरित्र सुनकर कोई रावण नहीं बनना चाहेगा। इसमें चारों अनुयोग भी गर्भित समझना चाहिए, क्योंकि इसमें सभी तरह के प्रकरण शामिल हैं। आचार्यश्री ने स्वयं एक स्थान पर कहा है-
पुराणस्यास्य वक्तव्यं, कृत्स्नं वाङ्मयमिष्यते।
यतो नास्माद्बहिर्भूतमस्ति, वस्तु वचोऽपि वा।।११५।। (पर्व २)
अर्थात् पुराण से बहिर्भूत कोई भी विषय नहीं है। जैसे समुद्र से सारे रत्न उत्पन्न होते हैं उसी प्रकार पुराण से सभी कथानक आदि उद्भूत होते हैं। बंध-मोक्ष आदि सबका वर्णन इसमें आ जाता है। इन सबको पढ़-पढ़कर अपनी आत्मा को महान बनाने का पुरुषार्थ करना चाहिए। तीर्थंकरों के आश्रित २४ पुराण हैं इन सबका संग्रह महापुराण है। इसे आदिपुराण और उत्तरपुराण दो भागों में विभक्त किया है। आदिपुराण में ऋषभदेव-भरत-बाहुबली आदि का चरित्र है एवं उत्तरपुराण में अजितनाथ से महावीर तक तेईस तीर्थंकरों का चरित्र है। इसके सुनने से भी महान पुण्य संचित होता है अत: आत्मकल्याणेच्छु को इसका अध्यन, मनन, ध्यान करना चाहिए इसके सुनने से अशुभ स्वप्न नहीं आते हैं, कर्मनिर्जरा होती है। इसलिए सभी भव्यात्माओं को कम से कम एक बार महापुराण का स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए। चौबीसों तीर्थंकर भगवान विश्व में शांति की स्थापना करें तथा इनकी भक्ति-पूजा जन-जन के लिए कल्याणकारी होवे, यही मंगलकामना है।
प्रध्वस्तघातिकर्माण:, केवलज्ञानभास्करा:।
कुर्वन्तु जगतां शान्तिं, वृषभाद्या जिनेश्वरा:।।