श्रीमते सकलज्ञान, साम्राज्य पदमीयुषे।
धर्मचक्रभृते भत्र्रे, नम: संसारभीमुषे।।
जम्बूद्वीप के पश्चिम विदेह की अलका नगरी में राजा महाबल के जन्मदिवस की राजसभा में स्वयंबुद्ध मंत्री आगे कहते हैं कि राजन्! आप के इसी राजवंश में कभी एक राजा दण्ड रहते थे वे अपने पुत्र मणिमाली को राज्य देकर अंत:पुर में रहने लगे। अंत:पुर में रहते हुए उनका धन-सम्पत्ति-स्त्री आदि में राग अत्यधिक बढ़ गया और वे उसी आर्तध्यान से मरकर अपने ही भण्डार में अजगर सर्प हो गये। कुछ दिनों में उस अजगर को जातिस्मरण हो गया कि मैं तो इस भण्डार का स्वामी था। अपनी कुबुद्धि से वहाँ भी वह अपने पुत्र मणिमाली के अतिरिक्त किसी को भण्डार के पास आने नहीं देता था। किसी समय राजा मणिमाली ने एक निमित्तज्ञानीमुनि से अजगर के बारे में प्रश्न किया कि मेरे भगवन्! मेरे भण्डार में एक अजगर है वह अतिरिक्त किसी को भण्डार में जाने नहीं देता है। मुनि ने कहा-वत्स वह और कोई नहीं, तुम्हारे पिता का जीव है, जो कि आर्तध्यान से मरकर अजगर हुआ है। मणिमाली वापस आकर अजगर को सम्बोधित करते हैं-हे भव्यात्मन्! तुम विषय भोगों में लिप्त होकर आर्तध्यान के कारण इस योनि को प्राप्त हुए हो, अब इस धन का मोह छोड़कर धर्म का उपदेश ग्रहण करो। पुत्र की बात और धर्मोपदेश सुनकर अजगर ने सारा मोह त्याग दिया और महामंत्र का स्मरण करते-करते अपनी आयु पूर्ण कर धर्मध्यान के प्रभाव से स्वर्ग में देव हो गया। देखो! आर्तध्यान से राजा भी मरकर तिर्यंचगति में चला गया और धर्मध्यान से अजगर जैसा हिंसक प्राणी भी देवता बन गया। यह ध्यान की महिमा है अत: धर्मध्यान में सदैव अपना उपयोग रखना चाहिए। देवयोनि में अवधिज्ञान से पूर्व भव की बात जानकर देव अपने पुत्र के पास आया और उसके उपकार का स्मरण करते हुए उसने उसे एक दिव्यहार प्रदान किया। स्वयंबुद्ध मंत्री राजा महाबल से कहते हैं कि राजन्! यह वही दिव्य हार आपके कंठ में आज सुशोभित हो रहा है। राजा यह सुनकर अत्यंत गौरवान्वित हुआ। पुनश्च मंत्री ने एक कथा और सुनाई-राजन्! आपके बाबा शतबल सदैव धर्मध्यान में तत्पर रहते थे। एक बार उन्होंने अपने पुत्र अर्थात् आपके पिता अतिबल को राज्य सौंपकर धर्मध्यानपूर्वक शरीर छोड़ा और स्वर्ग में देव हो गये। देखो राजन्! आपको स्मरण होगा कि एक बार जब आप मेरे साथ नन्दनवन में क्रीड़ा करने गये थे तब आपके बाबा का जीव वह देव हम लोगों को मिला था और बताया था कि मैं आपका पितामह मरकर देव हुआ हूँ तथा उन्होंने अनेक प्रकार से धर्म का उपदेश भी सुनाया था। राजन्! इन उदाहरणों से समझना है कि आर्तध्यान रौद्रध्यान से मरकर प्राणी नरक-तिर्यंचयोनि को प्राप्त कराता है और धर्मध्यान स्वर्ग सुख के साथ परम्परा से मोक्ष प्राप्त करता है अत: आपको भी धर्मध्यान का ही आश्रय लेकर अपने मनुष्य जन्म को सार्थक करना है। भव्यात्माओं! मोक्षमार्ग का प्रतिपादन करने वाले चौबीसों तीर्थंकर भगवान विश्व में शांति की स्थापना करें, यही मंगलकामना है-
प्रध्वस्तघातिकर्माण:, केवलज्ञान भास्करा:।
कुर्वन्तु जगतां शांतिं, वृषभाद्या जिनेश्वरा:।।