उर्मिला– बहन त्रिशला ! हमें एक बात बताओ कि प्रायः सभी जैन लोग प्रातः उठकर णमोकार मंत्र का स्मरण करते हैं क्या कारण है ? इससे क्या फल मिलता है ?
त्रिशला–बहन ! णमोकार मंत्र महामंत्र है ” इस महामंत्र से चौरासी लाख मंत्र उत्पन्न होते हैं” वास्तव में इसकी महिमा का तो वर्णन करना ही कठिन है ” देखो ! कुत्ते ने अंत समय में णमोकार मंत्र को सुना,मरकर देव हो गया ”
सुलोचना ने अपनी सहेली को सर्प के डस लेने पर णमोकार मंत्र सुना दिया,वह मरकर गंगादेवी हो गई जिसे सुलोचना के पति जय कुमार के हाथी को नदी में मगर के द्वारा पकरे जाने पर रक्षा कि थी ” एक ग्वाला णमोकार मंत्र जपते हुए मरकर सेठ सुदर्शन हो गया जो कि उसी भव से मोक्ष को प्राप्त कर चुके हैं ” ऐसे दो – चार क्या,अनगिनत उदाहरण भरे पड़े हैं अतः इस मंत्र मंत्र को प्रतिदिन क्या,प्रतिक्षण जपते रहना चाहिये “
उर्मिला– तो क्या खाते-पीते,काम करते या मलमूत्रादि विसर्जन करते समय भी पढ़ सकती हूँ “
त्रिशला– हाँ ! अवश्य ही पढ़ सकती हो,देखो ! श्री उमास्वामी आचार्य ने णमोकार मंत्र के माहात्म्य में लिखा है कि –
उठते हुए,बैठते हुए ,पृथ्वी पर गिरते या लेटते हुए,जागते हुए ,हँसते हुए ,सोते हुए ,वन में डरते हुए ,बैठते हुए ,मार्ग में चलते हुए ,घर पर पद – पद पर कोई भी काम करते हुए,जो हमेशा ही पंचपरमेष्ठी के नामरूप एक मंत्र का स्मरण करते हैं,उनको कौन से मनवांछित कार्य सिद्ध नहीं होते हैं ? अर्थात् सभी मनोरथ सफल हो जाते हैं ”
इस प्रकार से हर हालत में इस महामंत्र का स्मरण करना चाहिये किन्तु मल – मूत्रादि विसर्जन के समय या अपवित्र अवस्था में मन में ही स्मरण करना चाहिये,जिव्हा से उच्चारण नहीं करना चाहिये ” ऐसे हमें माताजी ने बताया है ” कहा भी है कि –
अपवित्र हो चाहे पवित्र,अच्छी स्थिति में हो,चाहे खराब स्थिति में हो हर अवस्था में पंचनामास्कर मंत्र का जो ध्यान करते हैं,वे सभी पापों से छूट जाते हैं “
उर्मिला– इस मंत्र में ऐसा क्या जादू भरा है ” बहन ! इसका कुछ अर्थ तो बताओ “
त्रिशला– हाँ सुनो !
णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं,
णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं,
णमो लोए सव्व्साहूणं
अर्थ– अरिहंतों को नमस्कार हो,सिद्धों को नमस्कार हो,आचार्यों को नमस्कार हो,उपाध्यायों को नमस्कार हो और सर्व साधुओं को नमस्कार हो,इसमें सर्व और लोक शब्द अन्त्यदीपक हैं,अतएव पाँचों में इनका सम्बन्ध करना चाहिये ” जैसे लोक में सभी अरिहंतों को नमस्कार होवे आदि ” इस मंत्र में 35 अक्षर हैं और 58 मात्रायें हैं ” इन 35 अक्षरों के स्मरणार्थ णमोकार पैतीसी नाम का व्रत है,जिसमें तिथि से विधिवत् 35 उपवास करने का विधान है “
उर्मिला– इसके और भी संक्षिप्त लक्षण बताओ “
त्रिशला– अरिहंत-जिन्होंने ज्ञानावरण,दर्श्नावरण,मोहनीय और अंतराय इन चारों कर्मों का नाश कर दिया ऐसे अरि – कर्म शत्रुओं को हनन करने वाले अरिहंत हैं ”
इनके 34 अतिशय,8 प्रातिहार्य,4 अनन्तचतुष्टय ऐसे 46 गुण होते हैं और जन्म,जरा,तृष्णा,क्षुधा आदि 18 दोष नहीं होते हैं ” ऐसे ही सिद्धों के शेष बचे वेदनीय,आयु,गोत्र और अन्तराय ये चार अघातिया कर्म भी नष्ट हो गये हैं,ऐसे आठों कर्मों से रहित और मुख्य आठ गुणों से सहित तथा अनन्तगुणों सहित ऐसे सिद्ध परमेष्ठी सर्वथा जन्म-मरण के दुःखोंसे रहित निरंजन परमेष्ठी लोक के अग्रभाग पर विराजमान हो गये हैं “
उर्मिला– बहन! जब सिद्ध परमेष्ठी अरिहंत से बढ़े हैं तो फिर अरिहंत को पहले क्यों नमस्कार किया है ?
त्रिशला– क्योंकि अरिहंत भगवान उपदेश देने वाले हैं और हम सभी संसारी प्राणी स्वार्थी हैं ” पहले अपने को सच्चे उपदेश देने वाले और सिद्धों की भी महत्ता को बतलाने वाले को नमस्कार किया है
उर्मिला– जब ये आचार्य आदि तीनों परमेष्ठी,आठों कर्मों से सहित संसारी हैं,फिर भी उनको इस महामंत्र में कैसे लिया है ?
त्रिशला–वास्तव में ये तीनों रत्नत्त्रय को पालन करने वाले हैं और अरिहंत-सिद्ध के सच्चे आराधक हैं इनके भी एकदेश कर्मो का बंध नहीं होता है अतः ए भी सर्वथा पूज्य हैं ” इसका विशेष वर्णन धवला की पहली पुस्तक में किया गया है ”
इन पंचपरमेष्ठी के नामों में इतनी शक्ति है कि उनका उचारण करते ही तमाम पाप कर्म पलायमान हो जाते हैं “
उर्मिला– यदि अंतरंग मे श्रद्धा और भावना नहीं है तो केसे फल मिलेगा ?
त्रिशला– कोई भी व्यक्ति मिश्री को यदि बिना श्रद्धा के या बिना भावना के खाता है,तो उसे मीठी लगती है या नहीं ?
उर्मिला– मिश्री तो चाहे कोई जबरदस्ती से किसी के मुख में डालडे या किसी भी तरह से क्यों ना खावे,वह तो मीठी ही लगेगी “
त्रिशला– वैसे ही यह मंत्र किसी भी तरह से क्यों न जपा जाये,अच्छा ही फल देगा ” हाँ ! इतनी बात अवश्य है कि श्रद्धा भाव का फल कुछ विशेष रहेगा “
उर्मिला– यदि कोई इसका अपमान कर दे तो क्या होगा ?
त्रिशला– हाँ ! सुभौम चक्रवर्ती ने समुद्र में व्यन्तरदेव के बहकावे में आकर प्राणों के लोभ में णमोकार मंत्र लिखकर उसे पैर से मिटा दिया ” देव ने उसी समय उसे डुबो दिया जिससे वह चक्रवर्ती मरकर सातवें नरक में चला गया और आज तक दुःख भोग रहा है “
उर्मिला– ओहो ! इतना करने मात्र से नरक चला गया,तब तो इस मंत्र का खूब ही विनय करना चाहिये “
त्रिशला– हाँ देखो ! यदि तराजू के एक पलड़े में णमोकार मंत्र रखो और दूसरी तरफ अनंतगुणों को रख तो दो किन्तु इस महामंत्र का ही पलड़ा भारी रहेगा,ऐसा श्री उमास्वामी आचार्य का वचन है “
उर्मिला– अब मैं भी प्रतिदिन इस मंत्र का जाप्य करुँगी ”