महावीर ने पावापुर से मोक्षलक्ष्मी पाई थी।
इंद्र—सुरों ने र्हिषत होकर, दीपावली मनाई थी।।
पावापुर उद्यान मनोहर, योग निरोध किया सुखकार।
सिद्धशिला पर हुए विराजित, गूंज उठी प्रभु की जयकार।।
इंद्रादिक सुर र्हिषत आये, मन में धारे मोद अपार।
महामोक्ष कल्याण बनाया, अखिल विश्व में मंगलकार।।
तन कपूरवत उड़ा शेष नख, केश रहे इस भूतल पर।
मायामयी शरीर रचा, देवो ने क्षण भर के भीतर।।
अग्निकुमार सुरों ने झुक मुकुटानल से तन भस्म किया।
सर्व उपस्थित जन समूह, सुरगण ने पुण्य अपार लिया।।
र्काित्तक कृष्ण अमावस्या का दिवस मनोहर सुखकर था।
ऊषाकाल का उजियारा कुछ तम—मिश्रित अति मनहर था।।
रत्न ज्योतियों का प्रकाश कर, देवों ने मंगल गाये।
रत्न—दीप की आवलियों से, पर्व दीपमाला लाये।।
इसी दिवस गौतम स्वामी को, संध्यान केवलज्ञान हुआ।
केवलज्ञान लक्ष्मी पाई, पद सर्वज्ञ महान हुआ।।
देवों ने अति र्हिषत होकर, रत्न ज्योति का किया प्रकाश।
हुई दीप मालायें द्विगुणित, जन—जन में छाया उल्लास।।
निर्वाण महोत्सव, धूम मचाता आता है।
जिन मंदिर में पूजन करके, लाडू चढ़ाया जाता है।।
संध्याकाल में सभी घरों में घृत के दीप जलाते हैं।
जग के सारे प्राणी खुशी से, दीपावली मनाते हैं।।
करते हैं लक्ष्मी की पूजन, मुक्ति लक्ष्मी की आशा।
जन्म मरण के कट जाये बंधन, सिद्धपुरी में हो वासा।।
मिट तमस अमावस्या का, गौतम जैसा पावें ज्ञान।
ऊषा काल की स्र्विणम किरणों से अंतस हो ज्योतिर्मान।।
ऐसा दीप जले जीवने में, जिसकी लौ नित जलती रहे।
‘वीर’ चरण की शरण मिले, गौतम सी हमको भक्ति मिले।।
शुभ भावों से गौतम—वीर का करते हैं पूजन—अर्चन।
ज्ञान—दीप की सम्यक् लौ से जगमग हो सबका जीवन।।
जगमग हो सबका जीवन