पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में जहाँ पिच्छीधारी १२५ साधु-संतों का सान्निध्य प्राप्त हुआ, वहीं आर्ष परम्परा के संरक्षक के रूप में विभिन्न भट्टारकगणों का भी मंगल आगमन हुआ। विशेषरूप से दिनाँक २९ फरवरी को कोल्हापुर दिगम्बर जैन मठ के भट्टारक स्वस्तिश्री लक्ष्मीसेन महास्वामीजी एवं उनके साथ कम्मबदहल्ली दिगम्बर जैन मठ के भट्टारक स्वस्तिश्री भानुकीर्ति महास्वामीजी का आगमन हुआ। प्रात: आहारचर्या के उपरांत मध्यान्ह में आयोजित सभा में भट्टारकगणों का समिति द्वारा पादप्रक्षाल एवं अर्घ्य समर्पण किया गया। पुन: महोत्सव अध्यक्ष पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी ने दोनों भट्टारकों को रजत कलश भेंट किया तथा पूज्य माताजी ने साहित्य प्रदान किया।
इस अवसर पर महास्वामीलक्ष्मीसेन जी भट्टारक ने पूज्य माताजी को ‘‘आर्षमार्ग रक्षिका’’ की उपाधि से अलंकृत करके उनके सम्मान में प्रशस्ति पत्र भेंट किया तथा पूज्य माताजी द्वारा रचित ‘‘त्रिकाल तीर्थंकर पूजा विधान’’ को श्री लक्ष्मीसेन दिगम्बर जैन ग्रंथमाला से प्रकाशित करके उसका मंच पर लोकार्पण कराया।
विशेषरूप से इस अवसर पर पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने स्वस्तिश्री लक्ष्मीसेन भट्टारक महास्वामी जी-कोल्हापुर को सद्धर्मवृद्धि आशीर्वाद प्रदान करते हुए उन्हें ‘‘भट्टारक रत्न’’ की उपाधि से विभूषित कर प्रशस्ति पत्र भी भेंट किया।
इसी क्रम में महोत्सव के मध्य दिनाँक-१८ फरवरी को मेलचित्तामूड-जिनकांची दिगम्बर जैन मठ के भट्टारक स्वस्तिश्री लक्ष्मीसेन महास्वामीजी का भी आगमन हुआ एवं सोंदा मठ के भट्टारक स्वस्तिश्री भट्टाकलंक महास्वामीजी का आगमन दिनाँक-१६ फरवरी को हुआ, जिनका यथायोग्य समिति द्वारा पादप्रक्षाल, अघ्र्य समर्पण आदि के साथ महोत्सव का प्रतीकचिन्ह भेंट करके सम्मान किया गया। इसी क्रम में दिनाँक १७ मई २०१६ को ज्वालामालिनी-एनारपुर के भट्टारक स्वस्तिश्री लक्ष्मीसेन स्वामीजी ने भी महोत्सव में पधारकर प्रतिमा का दर्शन किया और पूज्य माताजी का आशीर्वाद प्राप्त किया।