जगत में माँ का स्थान सर्वोच्च है। वे खुशनसीब होते हैं जिन्हें माँ की सेवा करने का अवसर व उसकी मातृछाया में वात्सल्य पाने का सौभाग्य मिलता है। माँ अपनी संतानों के लिए बड़ी पीड़ा सहने के लिए तैयार रहती है। मगर आज की संतान अपनी माँ के प्रति इतना आदर सम्मान नहीं देती है। जो एक दुर्भाग्य का विषय है। ये सच है कि संतान अपनी माँ का कर्ज जीवन भर नहीं चुका पाती मगर अपने माता—पिता की सेवा करके वह उन्हें आदर सम्मान दे सकती है। पुत्र असमर्थ हो या समर्थ, दुर्बल हो या ह्रष्ट पुष्ट, माँ उसकी रक्षा करती है। माता के सिवाय दूसरा कोई विधिपूर्वक या आत्मीयता से उसका पालन पोषण नहीं कर सकता। बच्चों के लिए माँ के समान दूसरी कोई छाया नहीं है अर्थात् माता की छत्रछाया में जो सुख है वह कहीं नहीं है। माँ के तुल्य कोई सहारा नहीं है, माँ सदृश अन्य कोई रक्षक नहीं है तथा माँ के समान दूसरा कोई व्यक्ति नहीं है।
जब भी कस्ती मेरी, मझधार में आ जाती है। माँ दुआ करते हुए, रव्वाब में आ जाती है।।
एक अंधेरा भाग जो मुंह तेरा काला हो गया। माँ ने आँखे खोल दी, घर में उजाला हो गया।।
किसी को घर मिला,हिस्से में या दुकान आई। मैं घर में सबसे छोटा, मेरे हिस्से में माँ आई।।
नारी के अनेक स्वरूपों में माँ ही एक ऐसा स्वरूप है जो कभी बदलता नहीं, वह केवल प्यार की मूर्ति होती है। माँ पुकारने पर जो आदर भाव व्यक्त होता है जिससे बड़े—बड़े दुराचारियों का हृदय बदल जाता है। जिस घर में माँ नहीं होती वह घर, घर नहीं लगता है। यह सत्य तो प्रत्यक्ष है। शास्त्रों में कहा गया है‘‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ पृथ्वी—अग्नि—वायु—आकाश एवं जल सभी को नापना संभव है किन्तु माँ की ममता,प्यार एवं दुलार की गहराई का अनुमान लगाना संभव ही नहीं असंभव है। जो व्यक्ति माता—पिता का भक्त होता है, वही परमात्मा का भक्त होता है। इस्लाम धर्म में भी कहा गया है कि माँ के पैरे के नीचे भी जन्नत होती है। माँ अनमोल प्यार का वो नाम है जिसे कभी मिटाया नहीं जा सकता। कौन ऐसा अभागा है जो माँ शब्द से बाकिब न हो। सच में माँ महान होती है, जहाँ भी हो बच्चे में उसकी जान होती है। माँ की कोई उपमा नहीं होती क्योंकि माँ उप माँ नहीं हो सकती। जब हम माँ के गर्भ में आते हैं माँ निस्वार्थ भाव से हम पर असीम उपकार करती है। माँ कभी मरती नहीं है, वह अजर अमर है तथा चिरस्मरणीय एवं पूज्यनीय है।