तर्ज—चांद मेरे आ जा रे…………….
आरती मांगीतुंगी की,
सिद्धक्षेत्र से, सिद्ध हुए जो, उनकी करूँ आरतिया।।टेक.।।
निज आत्मसिद्धि करने को, श्री पद्म यहां आये थे।
निन्यानवे कोटि मुनी भी, यहाँ से शिवपद पाये थे।।
आरती मांगीतुंगी की।।१।।
मांगी एवं तुंगीगिरि, दोनों आदर्श खड़े हैं।
वहां निर्मित जिनालयों में, जिनबिम्ब अनेक दिखे हैं।।
आरती मांगीतुंगी की।।२।।
पर्वत की तलहटी में जिन, मंदिर आदीश्वर का है।
अतिशयकारी प्रतिमायुत, मंदिर पारस प्रभु का है।।
आरती मांगीतुंगी की।।३।।
मुनिसुव्रत तीर्थंकर का, जिनमंदिर अति विस्तृत है।
श्रेयांससिन्धु सूरी की, यह अमिट हुई स्मृति है।।
आरती मांगीतुंगी की।।४।।
प्रभु ऋषभदेव की इक सौ अठ फुट प्रतिमा निर्मित है।
श्री गणिनी ज्ञानमती की यह चिरस्थायि प्रतिकृति है।।
आरती मांगीतुंगी की।।५।।
प्रभु मेरा यह घृत दीपक, अंतर की ज्योति जलावे।
‘चंदनामती’ सिद्धों की, रज कण मुझको मिल जावे।।
आरती मांगीतुंगी की।।६।।