माइग्रेन या आधासीसी का दर्द मधुमेह तथा दमे की बीमारी से भी ज्यादा पाया जाता है परंतु चालीस लाख भारतीयों में से सिर्फ दो प्रतिशत ही ऐसे हैं जो इस रोग का पूर्णरूप से इलाज करवाते है। पुरुषों की तुलना में, माइग्रेन महिलाओं को ज्यादा होता है। कुछ अध्ययन दर्शाते हैं कि प्रत्येक चार में एक गर्भवती महिला इसका शिकार बनती है। अध्ययन में यह भी पता चला कि पुरुष तो इसका इलाज कराने को तत्पर रहते हैं परंतु महिलाएं ऐसा नहीं करती। वे या तो इस दर्द को झेलती रहती है या फिर दर्दनिवारक गोलियों का सहारा लेकर इससे छुटकारा पा लेना चाहती हैं। अध्ययन के मुताबिक बहुत से लोग मानसिक अवस्था के कारण हुई शारीरिक परेशानी मानकर टालते रहते हैं और इनका इलाज कराने की जरूरत नहीं समझते परंतु आगे चलकर इससे कई गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। चिकित्सकों के अनुसार यह दर्द शरीर के सिरोटोनिन नामक केमिकल के स्तर में बदलाव होने से उत्पन्न होता है जो रक्तवाहिनियों को प्रभावित करता है। जब सिरोटोनिन का स्तर ज्यादा होता है, रक्त वाहिनियों के द्वंद्व—सा छिड़ जाता है, जब वह स्तर कम होता है तो रक्तवाहियां फैल जाती हैं जो दर्द का कारण बनती हैं। सिरोटोनिन का स्तर कई बातों से प्रभावित होता है, जैसे नींद की कमी, तनाव व चिंता , अत्यधिक धूप में रहना, मसालेदार भोजन का सेवन व चॉकलेटयुक्त पदार्थों का सेवन आदि। महिलाओं में यह एस्ट्रोजन नामक हारमोन के स्तर में बदलाव आने से पैदा होता है जीवनशैली में बदलाव लाने से इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है परंतु अफसोस की बात है कि लोग दर्दनिवारक दवाईयों का लगातार सहारा लेते रहते हैं। डॉक्टरों के मुताबिक दर्दनिवारक दवाईयों का अधिक सेवन आगे चलकर गुर्दें की खराबी का कारण बन सकता है अत: जहां तक हो सके, दर्दनिवारक गोलियां लेने से बचें तथा माईग्रेन का सही कारण पता लगाकर उसका इलाज कराएं।
जिनेन्दु ,३ अगस्त, २०१४