भारतीय संविधान की धारा ४७ में मद्यनिषेध के लक्ष्यों का उल्लेख किया गया है। इस नीति के मूल प्रवर्तक राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी थे। इसे बाद में राष्ट्रीय नीति के रूप में अंगीकार कर लिया गया।
अत: मद्य निषेध हमारी राष्ट्रीय नीति व राष्ट्रीय कर्तव्य है, किन्तु खेद है कि महात्मा गाँधी के पदचिन्हों पर चलने की दुहाई देने वाले हमारे जनप्रतिनिधियों व संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेने वाले देश के कर्णधारों ने इस उत्तरदायित्व के प्रति उदासीनता ही दर्शायी और केवल मद्यनिषेध निदेशालय बना कर व नशे के विरुद्ध विज्ञापन व प्रचार करके अथवा सिगरेट के डिब्बे पर वैधानिक चेतावनी लिखवाकर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली।
जो पदार्थ हानिकारक हैं व जनता और समाज के स्वास्थ्य व चारित्रिक पतन का कारण हैं उनका उत्पादन निरन्तर बढ़ क्यों रहा है? ऐसे पदार्थों के उत्पादन व विज्ञापनों पर रोक क्यों नहीं लगाई जाती ? विज्ञापन धूम्रपान के बढ़ते प्रचलन का एक प्रमुख कारण है। ऐसे विज्ञापन जो बार—बार यह बताएं कि धूम्रपान करने वाले अधिक जाँबाज व बहादुरी के कार्य करते हैं व सिगरेट तनाव—मुक्ति व ताजगी प्रदान करती है व सिनेमा, टीवी आदि में हीरो व बुद्धिजीवियों के धूम्रपान करते व शराब पीते हुए दृश्य युवा वर्ग पर अचूक प्रभाव डाल कर उनको इन पदार्थों के सेवन के लिए प्रोत्साहित ही करते हैं।
कुछ अवसरों पर जब देश का संचालन करने वाले कुछ कर्णधार स्वयं धूम्रपान करते अथवा शराब का उपभोग करते हुए जनता के समक्ष आ जाते हैं तो वे अप्रत्यक्षरूप से जनता को इन हानिकारक पदार्थों का उपभोग करने के लिए प्रोत्साहित ही करते हैं। जैसे बच्चा अपने माँ—बाप का व उनकी आदतों का अनुकरण करता है उसी प्रकार जनता अपना आदर्श राजा को मानती है व उसका अनुकरण करती है। ‘यथा राजा तथा प्रजा’ आज भी उतना ही सत्य है जितना प्राचीन काल में रहा है।
प्राय: यह कहा जाता है कि शराब, सिगरेट आदि के उत्पादन पर लगे करों से होने वाली आय हमारी राष्ट्रीय आय में एक प्रमुख स्थान रखती है अत: इन पदार्थों पर रोक लगाने से राष्ट्रीय आय में जो कमी होगी उसकी पूर्ति करना कठिन होगा। ऊपरी तौर पर ऐसा ठीक लगता है लेकिन यदि गम्भीरता से अध्ययन किया जाए तो यह मात्र एक छलावा है। इन पदार्थों से होने वाली आय हमारी राष्ट्रीय आय का स्रोत नहीं है अपितु राष्ट्रीय आय पर बोझ के ही समान है।
धूम्रपान, शराब, आदि मादक पदार्थों से होने वाली आय को आय समझना एक भ्रम और जाल है और एक तरह से जनता को मूर्ख बनाना है क्योंकि इन विनाशकारी पदार्थों के उपभोग के फलस्वरूप जो रोग, अपराध, दंगे, बलात्कार आदि बढ़ते हैं उन्हें कम करने के रूप में औषधालयों, पुलिस, जेल आदि पर जो खर्च होता है वह इन पदार्थों से होने वाली आय से कहीं अधिक है।
भारत में तम्बाकू के उत्पादन के लिए जो भूमि उपयोग की जा रही है उसका क्षेत्रफल लगभग साढ़े चार लाख हेक्टेयर है। यदि इतनी भूमि में कोई अन्य फसल लगाई जाए तो उससे होने वाले उत्पादन से जो आय होगी वह और अलग रही।
जनता द्वारा चुनी हुई सरकार का उद्देश्य जनता की भलाई ही तो है। फिर जनता का स्वास्थ्य, आचरण व चारित्र बिगाड़ कर प्राप्त किया गया धन किस काम का। राष्ट्रीय आय बढ़ाने के लिए पहले जनता को दुर्व्यसनों में फंसाकर रोगों की ओर बढ़ने दें और फिर उस आय से जनता के उपचार के लिए धन व्यय करें यह कहाँ का न्याय है। क्या ऐसे हितैषी से शत्रु ही अधिक अच्छा नहीं ?
सम्भवत: धूम्रपान ही एक ऐसी लत है जो धूम्रपान करने वाले के साथ—साथ उसके परिवार, पत्नी, बच्चों आदि के स्वास्थ्य पर भी उतना ही दुष्प्रभाव डालती है जितना धूम्रपान करने वाले पर। मित्रों की कुसंगति, परिवार के बड़े व्यक्तियों की देखा देखी अथवा अन्य किसी भी कारण से धूम्रपान के चँगुल में पँâसा कोई व्यक्ति भी यह तो कभी नहीं कहता कि धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। वे यह भी जानते हैं कि धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, किन्तु वे इसे उतना हानिकारक नहीं मानना चाहते जितना यह वास्तविकता में है।
वे इसे मूड ठीक कर, आनन्द देने वाला, मन—मस्तिष्क की एकाग्रता ला कर गुत्थी सुलझाने में सहायता करने वाला, चुस्ती—फुर्ती लाने वाला व उच्च वर्ग व अधिकारियों से सम्बन्ध बनाने में सहायता कर आर्थिक लाभ दिलाने में सहयोग करने वाला मानते हैं। सम्भवत: उनकी दृष्टि में आर्थिक लाभ के समक्ष स्वास्थ्य हानि कोई विशेष महत्व नहीं रखती।
अपने प्रत्येक आचरण को उचित ठहराने के लिए कोई न कोई तर्क तो सब ही बना लेते हैं किन्तु पक्षपातपूर्ण दृष्टि से तोड़ मरोड़ कर बनाए गए तर्क प्राय: तर्क ही होते हैं वास्तविकता व सत्य से उनका कोई सम्बन्ध नहीं होता। वास्तविक सत्य तो वही होता है जो निष्पक्ष दृष्टि से तथ्यों, वैज्ञानिक निष्कर्षों को और पूरे विश्व में हुए सर्वेक्षणों व शोधों पर आधारित तथ्यों को आगे की पंक्तियों में दे कर वास्तविक सत्य पाठकों के सम्मुख रखने का प्रयत्न किया जा रहा है। वास्तविक सत्य क्या है इसका निर्णय आप स्वयं करें।
रसायन विज्ञान के अनुसार तम्बाकू एक खतरनाक विष है। रिपोर्ट के अनुसार तम्बाकू में निकोटीन, टार व कार्बन मोनोक्साइड नाम के तीन मुख्य हानिकारक पदार्थ होते हैं। निकोटीन शरीर के टिश्यूज पर विशेषत: केन्द्रीय नर्वस सिस्टम पर दु:ष्प्रभाव डालता है, उससे रक्तचाप व हृदय गति में वृद्धि भी हो जाती है व इससे व्यक्ति को नशे की आदत पड़ जाती है।
कार्बन मोनोक्साइड रक्त की लाल कोशिकाओं में ऑक्सीजन की मात्रा कम कर देती है। निकोटीन व कार्बन मोनोक्साइड के मिलने से लकवे या दिल के दौरे का आक्रमण हो सकता है। टार से फेफड़ों के नाजुक रेशे खराब हो जाते हैं। जब फेफड़ों में टार अधिक मात्रा में जमा हो जाता है तो वैंâसर पैदा हो जाता है।
सिगार, पाईप, हुक्का आदि सभी वस्तुएं समानरूप से हानिकारक हैं। कम टार तथा कम निकोटीन वाली तथा फिल्टर सिगरेट भी किसी मायने में कम हानिकारक नहीं होती। तम्बाकू चबाने से मुँह का वैंâसर व गले और जुबान का वैंâसर भी हो सकता है। पेट व खाने की नली में फोड़ा भी हो सकता है जिससे भूख लगनी कम हो जाती है व वजन भी घट जाता है। तम्बाकू का सेवन करने वाले लोगों और उनके बच्चों में छाती के रोग होने की सम्भावना भी अधिक होती है।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (I.C.M.R,) के अनुसार महिलाओं में तम्बाकू का काफी गंभीर असर होता है। गर्भ—निरोधक गोलियाँ खाने वाली महिलाओं के धूम्रपान से उनमें दिल का दौरा पड़ने, पैर की नसें फूलने तथा लकवे का खतरा १० गुणा अधिक बढ़ जाता है। महिलाओं का गर्भ गिरने और मरा हुआ बच्चा पैदा होने की संभावना भी तीन गुना बढ़ जाती है। बच्चा समय से पहले पैदा हो सकता है जिससे उसका वजन कम होगा और वह बीमार रह सकता है।
तम्बाकू एक तीखा व धीमा जहर है। तम्बाकू में २४ प्रकार के जहरीले पदार्थ पाये जाते हैं। इसके कुछ प्रमुख जहर व उनसे होने वाली बीमारियाँ इस प्रकार हैं—
निकोटिन : यह कई भयंकर रोग उत्पन्न करता है।
कोलीडिन : इससे सिर चकराने लगता है, नसें कमजोर होने लगती हैं।
पायरीडिन : इससे आँतों में खुश्की और पेट में कब्ज पैदा होती है।
कार्बोलिक एसिड : यह अनिन्द्रा, स्मरण—शक्ति में कमी और चिड़चिड़ापन पैदा करता है।
एजोलिन एवं सायनोजन : यह खून खराब करता है।
पूपिक एसिड : यह थकान व उदासी पैदा करता है।
यह विष मनुष्य के शरीर में धीरे—धीरे मिलकर अनेक भयंकर रोगों को जन्म देने का कारण बनते हैं।
तम्बाकू की पत्तियों में निकोटीन नामक अलकोलायड़ होता है। निकोटीन तम्बाकू की सूखी पत्तियों में भी सक्रिय रूप से विद्यमान रहता है। निकोटीन एक घातक विष है। जिसको अधिक मात्रा में यदि किसी व्यक्ति को दिया जाए तो, मात्र कुछ सैकिण्डों में आकस्मिकरूप से श्वसन अंगों तथा केन्द्रीय स्नायुविक प्रणाली के पक्षाघात के कारण उस व्यक्ति की निश्चितरुपेण मृत्यु हो जाती है।
निकोटीन अल्प मात्रा में लेने पर पहले तो शारीरिक प्रक्रियाओं को उत्तेजित करता है तत्पश्चात् शारीरिक शक्तियों को क्षीण बना देता है। तम्बाकू के कुछ दिन लगातार प्रयोग कर लेने पर व्यक्ति उसका आदी हो जाता है, मस्तिष्क के ‘‘इच्छा केन्द्रों’’ में उसकी ललक अपना घर बना लेती है। निकोटीन जहाँ शुरु में मानसिक एकाग्रता लाती है वहीं अपने दीर्घ चरण में मानसिक शिथिलता को जन्म देती है।
निकोटीन का नारी और पुरुष दोनों यौग जननांगों पर समानरूप से कुप्रभाव होता है। निकोटीन का कुप्रभाव गर्भस्थ शिशु पर भी होता है। इस कुप्रभाव के परिणामस्वरूप जन्म लेने वाला शिशु विकलांग तक हो जाता है। निकोटीन, गर्भस्थ शिशु की प्राकृतिक प्रतिशोधक शक्ति का समापन कर देती है।
पान मसाला गुटका या खैनी (तम्बाकू व चूने का मिश्रण) खाने का शौक शुरू करते ही मुंह का स्वाद बिगड़ने लगता है और यह शौक जैसे ही व्यसन का रूप लेने लगता है वैसे ही बीमारी जड़ पकड़ना शुरू कर देती है। पहले दाँत फिर मसूढ़े उसके बाद श्वास नली की बीमारियाँ पैदा होने लगती हैं। मुँह से बदबू आने लगती है, हाजमा बिगड़ जाता है। तम्बाकू और चूने से लगातार मुँह की खाल जलते रहने से उत्पन्न क्षोभ के कारण उस स्थान की त्वचा पर सफेद धब्बे दिखाई देने लगते हैं और अगर उस पर भी ध्यान न दिया जाये तो वही लयुकोप्लेकिया या सबम्यूकस फाइब्रोसिस (वैंâसर के ठीक पहले की स्थिति) नामक जानलेवा बीमारी पनपने लगती है।
पान मसाला एक जेनिटोटोक्सिक पदार्थ है खाने वाले को भविष्य में मुँह के वैंâसर की सम्भावना रहती है। किशोरों एवं युवकों को जरा से स्वाद, शौक एवं शान के पीछे जिन्दगी को बरबाद नहीं करना चाहिए।
उपचार-केवल दृढ़ इच्छा शक्ति ही पर्याप्त है। तम्बाकू और उसकी लत को छुड़ाने के लिए आमतौर पर ‘‘कैलेडियम सेग्युनिम’’ नामक औषधि की ६ अथवा ३० शक्ति का कुछ दिनों तक नियमित प्रयोग का निर्देश होम्योपेथिक साहित्य में किया गया है। विलयम बोरिक के अनुसार, ‘कैंलेडियम’ मानवीय शरीर में तम्बाकू की लालसा को कम करता है।
दूसरी महत्त्वपूर्ण औषधि है—‘‘प्लैंटेगो मेजर’’ विलयम बोरिक के अनुसार ‘प्लैंटेगो मेजर’ मानवीय शरीर में तम्बाकू के प्रति अरुचि उत्पन्न करने में समर्थवान है तथा निकोटिन जनित अनिद्रा और जीर्ण लक्षणों को ठीक करती है। ‘प्लैंटेगो मेजर’ यह कदली (केले) परिवार का पेड़ है।
मादक पदार्थों में शराब सबसे अधिक भयानक है।
आप समझते होंगे शराब अंगूरों का रस है ? शराब अधिकतर गन्दी चीजों से बनती है। शराब के कारखानों के पास से कभी—कभी हमें गुजरना पड़ता है तो दूर—दूर तक दम घोटने वाली दुर्गन्ध आती है।
शराब में एक प्रकार का अल्कोहलरूपी विष होता है। जिस श्रेणी की शराब होती है उसमें उतनी मात्रा में अल्कोहल होता है। वाइन में ४ प्रतिशत, बीयर जो साधारण शराब मानी जाती है उसमें ९ प्रतिशत, व्हीस्की तथा ब्रान्डी में ४२.८ प्रतिशत तक अर्थात् लगभग आधा हिस्सा अल्कोहल होता है।
आश्चर्य की बात यह है कि जिस शराब में अधिक मात्रा में अल्कोहल होती है उतनी अच्छी किस्म की शराब मानी जाती है, क्योंकि उससे अधिक नशा उत्पन्न होता है। सुविख्यात डॉक्टर डॉक का अभिप्राय है कि अल्कोहल एक प्रकार का सूक्ष्म विष है जो क्षण मात्र में सारे शरीर में पैâल जाता है। रक्त, नाड़ियों तथा दिमाग के कार्यो में विघ्न डालता है तथा शरीर के विविध गोलकों (चक्रों) को बिगाड़ देता है।
वैज्ञानिकों ने शराबियों के मृतक शरीर को चीरकर देखा है कि उसके सब अंग विषाक्त हो जाते हैं आँतें प्राय: सड़ जाती है। दिमाग में कमजोरी के निशान हो जाते हैं। रक्त की नाड़ियाँ आवश्यकता से अधिक चौड़ी हो जाती हैं।
शराब का स्वास्थ्य पर प्रभाव-शराब का सबसे पहला दुष्प्रभाव मनुष्य के मस्तिष्क तथा स्नायुतंत्र पर होता है। मस्तिष्क की नसें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। जिस कारण मस्तिष्क की कार्यक्षमता मंद पड़ जाती है। स्नायुतंत्र भी कमजोर पड़ता है और फिर पाचन तंत्र को भी शराब क्षति ग्रस्त कर डालती है। जिगर खराब हो जाता है।
जिससे पाचन शक्ति तो बिगड़ती ही है, साथ ही अनेक प्रकार की और बीमारियाँ भी लग जाती हैं। इन सबके प्रभाव से शराबी मनुष्य मानसिक दृष्टि से असंतुलित व कमजोर होने लगता है। इसकी विचार शक्ति नष्ट हो जाती है। शरीर का वजन घटने लगता है। वह चिड़चिड़ा स्वभाव वाला हो जाता है। सहनशक्ति क्षीण हो जाने से बात—बात में उत्तेजित होता है क्रोध आने लगता है।
लोग अक्सर यह कहते हैं कि शराब पीने से स्फूर्ति आ जाती है। डॉक्टरों का कहना है यह एक प्रकार की भ्रान्ति है और थोड़ी देर बाद वह एकदम निष्क्रिय हो जाता है। इन्टरनेशनल फिजियोलोजिकल कांग्रेस के सदस्य प्रो. डॉ० आन्टेटा श्मेईदर वर्ग का कहना है ‘‘शराब शरीर को संवेदनशून्य अवसादयुक्त कर डालती है।’’ इसीलिए शराब पीकर आदमी दु:ख—दर्द भूल जाता है। मद्यपान के उपरान्त जो थोड़ी—सी उत्तेजना दिखाई पड़ती है वह वस्तुत: अपनी जीवनी शक्तियों में बहुमूल्य पदार्थ को जलाकर चमकाई गई फूलझड़ी मात्र है
शराब से शरीर की श्वेत कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। ये श्वेत कोशिकाएँ ही शरीर में रोगाणुओं के आक्रमण को रोकती है। शराब से रोग—प्रतिरोधी शक्ति कमजोर पड़ती है। शराब से जिगर, दिल और गुर्दे भी खराब हो जाते हैं, फेफड़े कमजोर पड़ जाते हैं, जिसे आम भाषा में ‘‘फेफड़े जल जाना’’ कहते हैं।
अनेक डॉक्टरों ने परीक्षण करके यह पाया है कि शराब के सेवन से व्यक्ति में निष्क्रियता, आलसीपन और जिम्मेदारियों से दूर भागने की वृत्ति पनपती है। वह कोई भी उचित निर्णय लेने में कमजोर और असमर्थ हो जाता है। भावनात्मक दृष्टि से वह असंतुलित, उखड़ा—उखड़ा ढुल—मुल विचारों का, निराश और कुण्ठाग्रस्त हो जाता है।
शराबी का आचरण उग्र, अपराधी और एकान्तप्रिय गुम—सुम जैसा हो जाता है। समाज से भी अलग—थलक पड़ जाता है। इस तरह धीरे—धीरे शराबी के जीवन में उदासी, सुस्ती, निराशा, अकेलेपन की भावना बढ़ने लगती है। वह अपराधी वृत्ति का हीन भावनाग्रस्त हो जाता है और फिर इन परिस्थितियों से निबटने व मन को इनसे भुलाने के लिए और शराब ज्यादा पीने लगता है। ज्यों—ज्यों शराब की मात्रा बढ़ती है, शरीर क्षीण होने लगता है। परिणाम यह होता है कि शराब एक दिन असमय में ही मनुष्य को मौत में धकेल देती है।
दूषित व मिलावटी शराब (Methyl Alcohal) पीने से उल्टी, पेट दर्द, मांसपेशियों में ऐंठन व बेहोशी होने के साथ—साथ आँखों की रोशनी भी (Optic Atrophy) सदा के लिए चली जाती है। तथा यह दूषित व मिलावटी शराब मृत्यु का कारण भी बन सकती है।
कुछ लोगों में मद्यपान एक विलासिता की चीज रही है। कोई भी शराबी पिता अपने पुत्र को, शराबी पति अपनी पत्नी को सहसा शराबी बनाना नहीं चाहता। परन्तु यह बात खुद के लिए भुल जाता है। अहंकार, बड़प्पन, भोग—विलास की उत्तेजना और मन बहलाने के लिए वह खुद शराब के चंगुल में फँस जाता है। बहुत से अज्ञानी लोग यह समझते हैं कि शराब पीने से बड़ा आनन्द अनुभव होता है। मजा आता है।
वास्तव में यह आनन्द एक क्षणिक उत्तेजना जैसा होता है, क्योंकि शराब का अल्कोहल विचार को मंद कर देता है। आदमी विचार शून्यता की स्थिति में पहुँच जाता है और सोचता है, ‘‘आह! कितना आनन्द आ रहा है।’’ असलियत में उसे इसके नुकसानों का पता नहीं है। कुछ लोग तनावों से मुक्त होने के लिए शराब का सहारा लेते हैं। परन्तु यह असलियत नहीं है।
उपचार-नशे की आदतें छुड़ाने में दवाओं के साथ—साथ प्राकृतिक चिकित्सा योग एवं ध्यान का काफी महत्व है, क्योंकि इसके लिए चारित्रिक बल, नियम और संयम, व्यवस्थित दिनचर्या, संतुलित आहार एवं सात्विक विचारधारा की जरूरत होती है, जो केवल प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग के द्वारा ही संभव है। गांधीजी कहा करते थे कि प्राकृतिक चिकित्सा केवल एक उपचार की पद्धति ही नहीं, बल्कि जीवन का सिद्धान्त है।
कोल्ड ड्रिंक्स में प्रयुक्त पदार्थ एवं उनके दुष्प्रभाव आइए, एक नजर जरा उन पदार्थों पर डालें जो कोल्ड ड्रिंक्स तैयार करने में इस्तेमाल होते हैं—
शुगर : इसे कोल्ड ड्रिंक्स को मीठा बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ३०० मि.ली. की एक बोतल एक ही बार में लगभग ३ चम्मच शुगर आपके खून में पहुँचा देती है जो बहुत ही जल्द आपके खून में मिलकर स्वास्थ्य पर दूरगामी दुष्प्रभाव छोड़ जाती है। नतीजा—दांतों की बीमारियाँ, डायबिटीज, मोटापा, बदहजमी जैसे उत्पाती रोग।
केंफीन : कोल्ड ड्रिंक्स में कैंफीन का इस्तेमाल अक्सर स्वाद बढ़ाने और महक बढ़ाने के लिए किया जाता है। कोल्ड ड्रिंक्स ३०० मि.ली. की एक बोतल में लगभग ४० से ७२ मि. ग्रा. केंफीन मिली रहती है। केंफीन लत लगाने वाला ऐसा पदार्थ है जिसे लेने से नाड़ी यंत्र उत्तेजित होता है और हृदयगति बढ़ जाती है। थोड़ी देर के लिए शरीर में ताजगी महसूस होने लगती है। परिणाम में यह अनिद्रा और रक्तचाप बढ़ाता है।
अक्सर आप अधिक शारीरिक श्रम के बाद कोल्ड ड्रिंक्स या चाय, काफी पीते हैं। दोनों तरह के पेय में वैâफीन शामिल है। एक अमरीकी अध्ययन के अनुसार शारीरिक श्रम के बाद वैâफीन मिला पेय आपके शरीर में मौजूद वैâल्शियम और पोटैशियम को क्षति पहुँचाता है। नतीजा—मांसपेशियों एवं जोड़ों में दर्द। वैâफीन के साथ जब शुगर मिला पदार्थ या पेय लिया जाता है तब यह क्षति लगभग दुगुनी हो जाती हैं
एसीड : सभी सॉफ्ट ड्रिंक्स के स्वाद में चटपटा—तीखापन लाने के लिए जिन तेजाबों का प्रयोग किया जाता है उनमें मुख्य हैं फास्फोरिक एवं साइट्रिक एसिड—ये एसिड बंद बोतल में पेय को टिकाऊ बनाये रखने का काम करते हैं। इसका औसत पी. एच. मान ३.४ पाया गया है।
फास्फोरिक एसिड शरीर में कैल्शियम—फास्फोरस के अनुपात को बिगाड़ने का काम करता है जिसके कारण हड्डियों से कैल्शियम गल—गल कर पेशाब के रास्ते बाहर निकलने लगता है। नतीजा—हड्डियों में कमजोरी व आस्टियोपरोशिस नामक रोग।
मनुष्य के पेट में प्राकृतिकरूप से हाईड्रोक्लोरिक एसिड पाचन क्रिया में मदद करता है। कोल्ड ड्रिंक्स में मिला फास्फोरिक एसिड उसे नाकामयाब बना देता है। नतीजा—बदहजमी, पेट फूलना, गैस इत्यादि।
कार्बन डाइऑक्साइड : प्रत्येक श्वास में हम ऑक्सीजन ग्रहण कर कार्बन डाईऑक्साइड बाहर छोड़ते हैं। प्रकृति ने ऐसी व्यवस्था की है कि जरा भी कार्बन डाईऑक्साइड हमारे शरीर के भीतर न रहे। कार्बन डाईऑक्साइड का इस्तेमाल कोल्ड ड्रिंक्स में बुलबुले झाग पैदा करने के लिए किया जाता है। नतीजा—वही कार्बन डाईऑक्साइड इस ड्रिंक्स के माध्यम से पेट से हमारे खून में पहुँचती है। जो अमाशय और अंतड़ियों को नुकसान पहुंचाती है।
एल्कोहल : एल्कोहल का सीधा—सा अर्थ है—शराब।
कोल्ड ड्रिंक्स बनाने वाले ईमानदारी से कभी भी बोतल पर लिखित जानकारी नहीं देते कि उनके पेय में किन—किन पदार्थों (Contents) का इस्तेमाल किया गया है।
अब तक हमने जाना कि मदिरा, चाय, कॉफी व अन्य केंफीन युक्त सौफ्ट ड्रिक्स स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। तथ्यों को देखते हुए यह ठीक भी है, किन्तु प्रश्न यह उठता है कि यदि इन सब पदार्थों को त्याग दें तो फिर आखिर पियें क्या ? क्या कोई ऐसे पेय पदार्थ भी हैं जो हानिकारक नहीं हैं ?
जी हाँ, ऐसे अनेकों पेय पदार्थ हैं जो न केवल लाभप्रद व स्वादिष्ट हैं अपितु अनेकों रोगों के उपचार का कार्य भी करते हैं। अनेक फलों व कुछ साग भाजियों के रस बीमार को तो ठीक करते ही हैं, स्वस्थ मनुष्य को स्वस्थ भी रखते हैं। कुछ मुख्य फलों व सब्जियों के रस के लाभ यहाँ संक्षिप्त में दे रहे हैं, जिन्हें पाठक अपनी सुविधा, स्वास्थ्य व रुचि के अनुकूल हानिकारक पेय पदार्थों के विकल्प के रूप में ले सकते हैं।
पालक का रस : इसमें विटामिन A B C तीनों होते हैं इसमें विटामिन A व लौह तत्व अधिक होता है। पालक एक प्रकार से हरा रक्त ही है। कब्ज दूर करने, दाँतों व मसूढ़ों को मजबूत करने व पायरिया नष्ट करने में विशेष गुणकारी है।
टमाटर का रस : इसमें विटामिन A,B, C, के अतिरिक्त साइट्रिक एसिड, फास्फोरिक तथा मोलिक एसिड जैसे उपयोगी द्रव्य होते हैं इसके रस में कब्ज को मिटाने, रोगग्रस्त यकृत को स्वस्थ करने व रक्त को शुद्ध कर त्वचा को चमकीली बनाने की अद्भुत शक्ति है। यह स्वास्थ्य के लिए अमृततुल्य है।
संतरे का रस : इसमें ए, बी, सी, तीनों विटामिन हैं किन्तु विटामिन ण् अधिक मात्रा में है। १०० ग्राम सन्तरे का रस पूरे दिन की विटामिन C की आवश्यकता की पूर्ति कर देता है। इसके अतिरिक्त इसमें शर्करा, साइट्रिक ऐसिड, फॉस्फोरस, लौह व सोडियम, कैल्शियम, पोटाशियम आदि अन्य अनेकों लाभकारी तत्व हैं। यह उदर में पहुंचते ही पच जाता है, कब्ज का नाश व अंतड़ियों की शुद्धि करता है। रोग प्रतिकार की क्षमता बढ़ाता है व उच्च रक्तचाप, ज्वर, इन्फ्ल्युएन्जा, रक्ताभाव, दमा, जुकाम, अनिद्रा आदि रोगों के लिए भी उत्तम है।
मोसंबी का रस : इसमें बढ़िया फल शर्करा के साथ—साथ साइट्रिक विटामिन A,B, C और उपयोगी क्षार होते हैं। यह बलवर्द्धक व बीमार लोगों के लिए अमृत समान है। थकान, बेचैनी, ऊब आदि को दूर करके स्फूर्ति, रोगनिरोधक शक्ति प्रदान करता है व रक्त बढ़ाता है। चर्म रोगी के लिए भी मोसंबी का रस लाभकारी है।
अनन्नास (पाइनएपल) का रस : इसमें फास्फोरिक एसिड पर्याप्त मात्रा में होता है। लौह, मेग्नीशियम, सोडियम और क्लोराइड ऑफ पोटाशियम के क्षार भी ठीक मात्रा में होते हैं व विटामिन A व C भी होता है। इसके रस में अँतड़ियों में से म्युकस (अम्लता) को बाहर निकालने के गुण हैं। यह अन्त:स्रावी ग्रंथियों को पुष्ट रखता है, ब्रोन्काइटिस, कफ, दमा, अजीर्ण, भेद वृद्धि, उच्च रक्तचाप आदि से पीड़ितों के लिए गुणकारी है। धूम्रपान करने वालों के खून में अकसर विटामिन ण् की कमी हो जाती है ऐसे लोगों को धूम्रपान छोड़कर अनन्नास का रस पीकर विटामिन ‘सी’ की कमी पूरी करनी चाहिए।
अनार का रस : इसमें उच्चकोटि का सोडियम तथा पर्याप्त प्रमाण में लौह, विटामिन ण् एवं टोनिक एसिड भी है। ये तत्व रक्त—शक्तिवर्धक होने से शरीर को पुष्ट करते हैं, अतिसार, दस्त एवं संग्रहणी में बहुत लाभदायी हैं। आँतों के कृमियों के लिए अकसीर उपाय है। इससे यकृत (लिवर) की शक्ति बढ़ती है, आँतों की क्रियाशीलता बढ़ती है। उच्च रक्तचाप, सन्धिवात, पेचिश आदि में इसका रस तत्काल असर करता है। यह त्रिदोष—नाशक, शुक्रवर्द्धक, बुद्धिवर्द्धक एवं बलप्रद है।
सेब का रस : इसमें विटामिन A, B, B, B, P और C आदि एवं खनिज तत्व अधिक मात्रा में होते हैं। यदि सुबह खाली पेट लगभग २५० ग्राम ताजा सेब का रस पिया जाए तो वह शरीर को समस्त प्रकार के विष से मुक्त कर देता है। इसके रस से पीलिया के बाद बिगड़ा लिवर भी कार्यशील हो जाता है। हृदय—रोग व उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए बेहद उपयोगी है। यह अँतड़ियों को मजबूत सक्षम बनाता है, भूख बढ़ाता है, नर्वस सिस्टम को तनाव मुक्त कर शान्त करने की जो सामर्थ्य सेब में है वह अन्य किसी भी फल या औषधि में शायद ही हो। यह रोग निरोधक शक्ति भी बढ़ाता है।
१. टमाटर तथा सेब का रस बराबर मात्रा में ले कर उसमें एक चम्मच चाशनी मिलाने से स्वादिष्ट काकटेल बनता है।
२. दो—तीन नाशपाती के रस में दो तीन चम्मच नींबू रस तथा दो चम्मच चाशनी मिलाकर स्वादिष्ट काकटेल बनता है।
इसी प्रकार अपनी रुचि अनुसार विभिन्न फलों के रस मिलाकर अथवा विभिन्न शाक—सब्जियों के रस मिलाकर उनमें नींबू का रस, पुदीने का रस व चाशनी आदि जैसा जिसको रुचे व स्वादिष्ट लगे, अनेकों कॉकटेल बन सकते हैं जो स्वास्थ्यवर्धक होने के साथ—साथ ताजगी व स्फूर्ती भी प्रदान करेंगे।
तुलसी की चाय : अँतड़ियों के लिए उत्तम टॉनिक है, कृमिनाशक, हृदय—रोग को होने से रोकने वाला व वैंâसर को रोकने में व पीलिया, मंदाग्नि, गैस, अस्थमा आदि रोगों के उपचार में गुणकारी है।
तुलसी : मलेरिया, खाँसी, दमा आदि में लाभकारी है, कृमिनाशक है, स्मरण शक्ति व किडनी की कार्य शक्ति बढ़ाने वाली है। सर्दी, जुकाम, सिरदर्द, मोटापा आदि रोगों के लिए गुणकारी व ब्लड—कोलेस्टरोल को तेजी से सामान्य करने वाली है।
इन दोनों गुणकारी पदार्थों को पानी में उबाल कर व इसमें एक दो काली मिर्च व इलायची आदि भी डाली जा सकती है।
मसाले वाली चाय : सुलभ प्राकृतिक चाय को सर्दी, जुकाम, वात, दमा आदि रोगों के लिए औषधि बताया गया है। यह चाय नित्य पीने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
सौंफ | १६ भाग | आंव व पेचिश में लाभकारी |
बड़ी इलायची | ८ भाग | मस्तिष्क व टी. बी. के रोगों में लाभकारी |
वनप्सा | २ भाग | कफ को समन करने वाली |
ब्राह्मी बूटी | ८ भाग | स्मरण शक्ति बढ़ाने वाली |
लाल चन्दन | १६ भाग | रक्त को बढ़ाने वाला व वात रोगों में लाभकारी |
मुलेठी | ४ भाग | कफ साफ करती है |
सोंठ | २ भाग | वात रोगों को दूर कर रक्त संचालन करती है |
काली मिर्च | १ भाग | कफ को दूर करती है। |
उपरोक्त पदार्थों को अलग—अलग कूट कर छान लें फिर सब को एक साथ मिलाकर रख लें। आधा लीटर पानी में एक चम्मच उपरोक्त मसाला चाय मिलाकर कुछ देर खौलाएं, फिर दूध और इच्छानुसार देशी शक्कर या चीनी मिला कर पिएं।
चाशनी, नींबू पानी : नींबू में निहित विटामिन ‘सी’ रोग—प्रतिकार शक्ति बढ़ाता है, शरीर के विष को निकालता है व कब्ज, रक्तविकार, मंदाग्नि आदि अनेक रोगों के उपचार करने के साथ—साथ थकान, सुस्ती दूर कर स्फूर्ति देता है। चाशनी शक्ति एवं उष्णता प्रदान करता है, थकान, बेचैनी या कमजोरी में तत्काल शक्ति देता है।
नारियल का पानी : सुबह चाय के बदले नारियल के पानी में नींबू का रस मिलाकर पीने से शरीर की गर्मी मूत्र एवं मल के साथ निकल जाती है और रक्त शुद्ध होता है।
सूप : विभिन्न हरी सब्जियों, पत्तेदार सब्जियों , गाजर, टमाटर व दालों का अलग—अलग अथवा मिक्स सूप।
छाछ या मट्ठा दही की लस्सी, मिल्क शेक, मैंगोशेक, अमरस, बादाम की ठंडाई, गुलाब, खस आदि के शर्बत, कच्चे आम या इमली का पन्ना आदि अनेक ऐसे पेय हैं जो पाठकगण अपनी रुचि, स्वास्थ्य व सामर्थ्य के अनुसार ले सकते हैं।
डिब्बे बन्द रस से बचें : अकसर बन्द डिब्बों के फलों के रस में व जैम, जेली, अचार इत्यादि में बैन्जोइक एसिड व सोडियम बेन्जौइक मिलाया जाता है जो हानिकारक है। अत: स्वास्थ्य सुरक्षा की दृष्टि से डिब्बे बन्द रस का प्रयोग न करके ताजे निकाले हुए रस का प्रयोग करना ही उचित है।