Food accepting by saints without causing any trouble to others.
भ्राम्री वृत्ति; भौरे जिस तरह पुष्पों को कष्ट दिए बिना रस लेते है, वेसे साधु आहार लेते हुए दाता को कष्ट नई देते है” इसलिए इनकी आहार चर्या माधुकरी भिक्षावृत्ति कहलाती है