वटवृक्ष के नीचे गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी की दीक्षा से सार्थक ‘माधोराजपुरा’
(प्रेरणास्रोत-पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी)
गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की आर्यिका दीक्षा से पवित्र धार्मिक स्थल है ‘माधोराजपुरा’। माधोराजपुरा एक सामान्य कस्बा है, जहाँ पर अत्यन्त प्राचीन दिगम्बर जैन मंदिर बने हुए हैं और यह गुलाबी नगरी के नाम से प्रसिद्ध जयपुर से मात्र ५० किमी. की दूरी पर फागी तहसील के अन्तर्गत स्थित है। एक सामान्य कस्बा होने के बावजूद माधोराजपुरा, पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी की दीक्षा भूमि होने के कारण भक्तों के लिए विशेष वंदना के योग्य माना जाता है। इस नगर में वैशाख कृ. दूज, सन् १९५६ की वह तिथि अत्यन्त शुभ सिद्ध हुई, जब आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के प्रथम पट्टाचार्य श्री वीरसागर जी महाराज के करकमलों से क्षुल्लिका श्री वीरमती माताजी ने आर्यिका दीक्षा को प्राप्त करके ‘‘आर्यिका ज्ञानमती’’ नाम प्राप्त किया था। आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज एवं संघस्थ मुनिवर श्री शिवसागर जी महाराज, श्री धर्मसागर जी महाराज, श्री नेमिसागर जी महाराज, श्री पद्मसागर जी महाराज एवं अनेक आर्यिकागण व त्यागीवृत्तियों के सान्निध्य में वटवृक्ष के नीचे बने विशाल पाण्डाल में सम्पन्न हुई यह दीक्षा अत्यन्त ही पवित्र एवं चमत्कारिक बनकर आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी के जीवन में सार्थक हुई और आज वे ही पूज्य ज्ञानमती माताजी सारे विश्व में बीसवीं सदी की सर्वप्राचीन दीक्षित आर्यिका के रूप में प्रसिद्ध हैं, जिनकी लेखनी से २५० से अधिक ग्रंथ प्रसूत हुए और जिनागम का महान संरक्षण, संवर्धन और विकास हुआ। साथ ही पूज्य माताजी की ही पावन प्रेरणा से सारे देश में तीर्थंकर भगवन्तों की विभिन्न कल्याणक तीर्थभूमियों के ऐतिहासिक विकासकार्य संस्कृति संरक्षण के प्रतीक स्वरूप में बीसवीं-इक्कीसवीं सदी के लिए वरदान साबित हुए हैं। ऐसी पावन तीर्थभूमि माधोराजपुरा में लगभग ५० परिवारों की दिगम्बर जैन समाज के हृदय में पिछले अनेक वर्षों से पूज्य माताजी के नाम से एक तीर्थ के विकास हेतु भावनाएँ व्याप्त थीं, जिस पर उन्होंने अनेक बार पूज्य माताजी के पास आकर निवेदन भी किया लेकिन पूज्य माताजी द्वारा अपने नाम से कोई तीर्थ बनाने की अनुमति नहीं देने के कारण भक्तों की भावनाएँ सफल न हो सकीं। अन्ततोगत्वा पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी की प्रेरणा से एवं पीठाधीश क्षुल्लक श्री मोतीसागर जी महाराज के विशेष प्रभाव से माधोराजपुरा की जैन समाज को माधोराजपुरा में एक तीर्थ निर्माण हेतु स्वीकृति प्राप्त हुई और २१ नवम्बर से २६ नवम्बर २०१० तक पूज्य पीठाधीश क्षुल्लक श्री मोतीसागर जी महाराज एवं कर्मयोगी ब्र.रवीन्द्र कुमार जैन (स्वामी जी) के सान्निध्य में ‘‘गणिनीप्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती दीक्षा तीर्थ’’ के नाम से नवनिर्मित तीर्थ का पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव सानंद सम्पन्न हुआ। तीर्थ पर सम्मेदशिखर पर्वत की सुन्दर प्रतिकृति का निर्माण किया गया है जिसमें पर्वत की चोटी पर १५ फुट उत्तुंग भगवान पाश्र्वनाथ की अत्यन्त मनोहारी एवं चमत्कारिक खड्गासन प्रतिमा विराजमान की गई है। साथ ही २४ तीर्थंकर भगवन्तों की टोंक स्वरूप पर्वत पर चैत्यालय में प्रतिमाएँ विराजमान की गई हैं। पर्वत के नीचे गुफा मंदिर भी बनाया गया है, जिसमें जिनचैत्यालय, पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी के चरण चिन्ह, पूज्य माताजी के जीवनदर्शन की चित्र प्रदर्शनी तथा भगवान पाश्र्वनाथ के शासन यक्ष-यक्षिणी पद्मावती माता व धरणेन्द्र देव को भी विराजमान किया गया है। विशेषरूप से गुफा मंदिर में पूज्य माताजी के गुरुणांगुरु चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज एवं दीक्षागुरु आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज की प्रतिमाएँ दर्शनीय एवं वंदनीय है। इस तीर्थ क्षेत्र का विकास श्री ऋषभदेव जन सेवा संस्थान (रजि.), माधोराजपुरा (राज.) के द्वारा किया गया है। यहाँ पर यात्रियों के ठहरने हेतु फ्लैट्स का निर्माण भी किया गया है और आगे भी चल रहा है। इस प्रकार माधोराजपुरा में यह आर्यिका दीक्षा तीर्थ जयपुर से मालपुरा रोड पर ५० किमी. दूर, सांगानेर से ३५ किमी. दूर तथा पद्मपुरा से ५० किमी. व तहसील फागी से ८ किमी. दूर स्थित है, जिसके दर्शन हेतु नियमित भक्तजन पधारकर पुण्य की प्राप्ति करते हैं।