भगवान आदिनाथ के साथ चार हजार राजाओं ने बिना कुछ समझे-बूझे दिगम्बरी दीक्षा ले ली। भगवान छह महीने तक ध्यान में लीन थे। तब ये सब साधु भूख-प्यास की वेदना से भ्रष्ट हो गये उनमें से एक मरीचि कुमार महामानी था। मानकषाय से उसने अनेकों पाखण्ड मत चलाये। भगवान को केवलज्ञान होने पर सब भ्रष्ट साधु फिर से दीक्षित होकर स्वर्ग, मोक्ष चले गये किन्तु मरीचि ने पुन: दीक्षा नहीं ली और कहा कि मैं भी अपने मत का प्रसार करके इन्द्र द्वारा पूजा को प्राप्त करूँगा। इस प्रकार से उसने भगवान के वचनों का अनादर कर दिया। मिथ्यात्व का त्याग नहीं किया। इस मान कषाय और मिथ्यात्व के फलस्वरूप असंख्यातों भवों तक त्रस, स्थावर योनियों में भटकता रहा और बहुत ही दु:ख उठाया। कालांतर में सिंह की पर्याय में ऋद्धिधारी मुनि के उपदेश से पंच अणुव्रत और सम्यक्त्व को ग्रहण कर अन्त में मरकर स्वर्ग चला गया। वही जीव सिंह से आगे दशवें भव में भगवान महावीर बन गया।
इस कथा को सुनकर मान कषाय का त्याग कर देना चाहिए।