तर्ज—तुमसे लागी लगन……………
तीर्थ अर्चन करें, जो भी वन्दन करें, इसको ध्याएं।
आरती थाल हम लेके आए।।टेक.।।
जिस धरा पर जनमते हैं जिनवर।
तीर्थ वह ही कहाता है शुभतर।।
वन्दना तीर्थ की, वृद्धि निज कीर्ति की, हम कराएं।।
आरती थाल हम लेके आएं ।।१।।
मल्लिप्रभु, नमिप्रभू जन्मभूमी,
धन्य मिथिलापुरी की धरा थी।
जन्म उत्सव करें, फिर महोत्सव करें, इन्द्र आए।।
आरती थाल …………।।२।।
दोनों जिनवर के चार कल्याणक,
इस ही भू पर हुए तीर्थ पावन।।
आत्मचिंतन किया, मोक्षपद को लहा, सिद्धि पाए।
आरती थाल …………।।३।।
इस जनमभूमि की वंदना से।
आत्मशक्ती मिले अर्चना से।।
तीर्थभूमी नमें, जन्म सार्थक करें, प्रभु को ध्याएं।।
आरती थाल …………।।४।।
रत्नत्रय निधि की पूर्ती हो मेरी।
होवे भवसंतती खण्डना भी।।
‘‘चंदनामति’’ यही, आश करते सभी, मुक्ति पाएं।।
आरती थाल …………।।५।।